Grand statue of Veer Bala Teelu Rauteli inaugurated in Kotdwar city

कोटद्वार: कोटद्वार की सामाजिक संस्था वीरबाला तीलू रौतेली विचार मंच (रजि.) द्वारा आज कोटद्वार के वीर बाला तीलू रौतेली चौक पर उत्तराखंड की वीरांगना वीर बाला तीलू रौतेली की भव्य प्रतिमा का लोकार्पण किया गया।

वीरबाला तीलू रौतेली विचार मंच के अध्यक्ष कमांडेंट (रिटा.) साबर सिंह रावत ने बताया कि उन्होंने वर्ष 2012 में इस संस्था के गठन के समय वीर बाला तीलू रौतेली की एक भव्य प्रतिमा कोटद्वार शहर के मध्य में स्थापित करने का ख्वाब देखा था, जो आज पूरा हो गया है। आज कोटद्वार शहर के लाल बत्ती चौराहा जिसे वीर बाला तीलू रौतेली चौक के नाम से भी जाना जाता है, पर आयोजित एक भव्य कार्यक्रम के दौरान वीर बाला तीलू रौतेली की 17 फीट ऊंची मूर्ति का विधिवत अनावरण किया गया। इस मौके पर मुख्य अतिथि महापौर हेमलता नेगी, अति विशिष्ट अतिथि ले. जन. जगमोहन सिंह रावत व पूर्व मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी व पूर्व विधायक शैलेंद्र सिंह रावत, पार्षद कविता मित्तल व नगर आयुक्त वैभव गुप्ता विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद थे।

कौन थी तीलू रौतेली

त्तराखण्ड के पौड़ी गढ़वाल की एक ऐसी वीरांगना, क्षत्राणी जो मात्र 15 वर्ष की आयु में रणभूमि में कूद पड़ी थी और जिसने 15 -22 वर्ष की आयु में अपने से कई ताकतवर शाशकों से सात युद्ध लड़े और सभी में फतह हासिल की। तीलू रौतेली का जन्म 8 अगस्त 1661 में पौड़ी गढ़वाल के गुराड गाँव में भूपसिंह (गोर्ला) रावत के घर हुआ था। तीलू बचपन से अद्भुत प्रतिभा से युक्त बडी साहसी निडर तथा दृढ़ इच्छाशक्ति से ओत-प्रोत थी। उसकी अतुलनीय साहसिक वीरता के कारण उसे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता है। 15 वर्ष की आयु में तीलू रौतेली की सगाई ईड़ा गाँव (पट्टी मोंदाडस्यु) के भुप्पा सिंह नेगी के पुत्र के साथ हुई। इन्ही दिनों गढ़वाल में कत्यूरियों के लगातार हमले हो रहे थे, तीलू के पिता भूपसिंह गुराड चौंदकोट के थोकदार थे। इन हमलों में कत्यूरों के खिलाफ लड़ते-लड़ते तीलू के पिता ने युद्ध भूमि में अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। उनके प्रतिशोध में तीलू के मंगेतर और दोनों भाई (भग्तू और पर्थ्वा) भी कत्यूरों के साथ लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए। statue of Teelu Rauteli inaugurated in Kotdwar

कहा जाता है कि कुछ ही दिनों में कांडा गाँव में कौथीग (मेला) लगा और बालिका तीलू इन सभी घटनाओं से अंजान कौथीग में जाने की जिद करने लगी तो उसकी माँ ने रोते हुये ताना मारा कि जा पहले अपने भाईयों और पिता की मौत का प्रतिशोध ले फिर जाना कौथीग। बस यही बात बालिका तीलू के कोमल मन में चुभ गई और उसने कौथीग जाने का ध्यान तो छोड़ ही दिया और प्रतिशोध की धुन पकड़ ली। उसने अपनी सहेलियों के साथ मिलकर एक सेना बनानी शुरू कर दी और पुरानी बिखरी हुई सेना को एकत्र करना भी शुरू कर दिया। प्रतिशोध की ज्वाला ने तीलू को घायल शेरनी बना दिया था, हथियारों से लैस सैनिकों तथा “बिंदुली” नाम की घोड़ी और अपनी दो प्रमुख सहेलियों बेल्लु और देवली को साथ लेकर युद्धभूमि के लिए प्रस्थान किया।

सबसे पहले तीलू रौतेली ने खैरागढ़ (वर्तमान कालागढ़ के समीप) को कत्यूरों से मुक्त करवाया, उसके बाद उमटागढ़ी पर धावा बोला, फिर वह अपने सैन्य दल के साथ “सल्ड महादेव” पंहुची और उसे भी शत्रु सेना के चंगुल से मुक्त कराया। चौखुटिया तक गढ़ राज्य की सीमा निर्धारित कर देने के बाद तीलू अपने सैन्य दल के साथ देघाट वापस आयी। कालिंका खाल में तीलू का शत्रुओं से घमासान संग्राम हुआ, सराईखेत में कत्यूरों को परास्त करके तीलू ने अपने पिता के बलिदान का बदला लिया, इसी जगह पर तीलू की घोड़ी “बिंदुली” भी शत्रु दल के वारों से घायल होकर तीलू का साथ छोड़ गई।

शत्रु को पराजय का स्वाद चखाने के बाद जब तीलू रौतेली लौट रही थी तो जल श्रोत को देखकर उसका मन कुछ विश्राम करने को हुआ, कांडा गाँव के ठीक नीचे पूर्वी नयार नदी में पानी पीते समय उसने अपनी तलवार नीचे रख दी और जैसे ही वह पानी पीने के लिए झुकी, उधर ही छुपे हुये पराजय से अपमानित रामू रजवार नामक एक कत्यूर सैनिक ने तीलू की तलवार उठाकर उस पर हमला कर दिया। निहत्थी तीलू पर पीछे से छुपकर किया वार प्राणघातक साबित हुआ और इस तरह मात्र 21-22 वर्ष की अल्पायु में ही उत्तराखण्ड की वीरांगना तीलू रौतेली सदा सदा के लिए अमर हो गई।

उनकी याद में आज भी कांडा ग्राम व बीरोंखाल क्षेत्र के निवासी हर वर्ष कौथीग (मेला) आयोजित करते हैं और ढ़ोल-दमाऊ तथा निशाण के साथ तीलू रौतेली की प्रतिमा का पूजन किया जाता है। तीलू रौतेली की स्मृति में गढ़वाल मंडल के कई गाँव में थड़िया गीत गाये जाते हैं। उत्तराखण्ड सरकार भी वीरांगना तीलू रौतेली के जन्म दिन पर राज्य में कई प्रतियोगिताये आयोजित करती है और पुरस्कार वितरित करती है। वीरांगना तीलू रौतेली के पराक्रम की गाथाओं को झांसी की रानी जैसा स्वरूप देकर बीरोंखाल, उनके पैत्रिक गॉव गुराड़ व जणदा देवी में उनकी भव्य मूर्तियों का स्थापित हैं। आज कोटद्वार शहर में भी तीलू रौतेली की भव्य मूर्ति स्थापित हो गयी है।