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पौड़ी गढ़वाल: उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों के गुलदार का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है। पौड़ी गढ़वाल में भी आये दिन गुलदार के हमले की घटनायें सुनाई देती हैं। ताजा मामला पौड़ी-श्रीनगर क्षेत्र से है। जानकारी के मुताबिक कल देर शाम एक दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार पौड़ी से स्कूटी में सवार होकर अपने घर श्रीनगर लौट रहे थे। इसीबीच शाम 7 बजे खंडाह के नजदीक घात लगाये बैठे गुलदार ने अचानक पत्रकार पर हमला कर दिया। गुलदार द्वारा किये गए अचानक हमले में उन्हें सम्भलने का मौका तक नही मिल सका। और वह स्कूटी से नीचे गिर गए. इस बीच सामने से आ रहे दुपहिया वाहन चालकों द्वारा शोर मचाने पर गुलदार भाग गया। जिसके बाद स्थानीय लोगों ने उन्हें घायल अवस्था में संयुक्त चिकित्सालय श्रीनगर में भर्ती कराया। जहां उपचार के बाद उनकी हालत में सुधार आने पर उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। घटना के बाद आज डिप्टी रेंजर मंगल सिंह और वन बीट अधिकारी जगदीश सिंह गुलदार के हमले में घायल हुए पत्रकार को देखने उनके घर गए हैं।

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इस घटना के बाद से खंडाह क्षेत्र में दहशत का माहौल है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि इस क्षेत्र में आये दिन गुलदार की धमक दिखाई देती है। गुलदार मवेशियों को तो निवाला बना ही रहे हैं साथ ही इंसानों पर हमला करने से भी नहीं चूकते हैं। यहाँ शाम होते ही गुलदार सड़क पर चल रहे दोपहिया वाहन चालकों पर भी हमले कर देते हैं। यह कोई पहली घटना नहीं है इससे पहले भी इस क्षेत्र में गुलदार द्वारा कई दोपहिया वाहन चालकों पर हमला किया जा चुका है। जिसके चलते लोगों में दहशत का माहौल है। स्थानीय लोगों ने वन विभाग से गुलदार के आतंक से निजात दिलाने की मांग की है।

बता दें कि मण्डल मुख्यालय में कुछ पत्रकार रोज श्रीनगर से आवाजाही करते है। वहीँ कुछ ग्रामीणों क्षेत्रों से से भी आते हैं। ग्रामीण पत्रकार जगमोहन डांगी एवं प्रमोद खण्डूरी का कहना है। उन्हें कहीं बार खबरों को कवर करने में देर रात हो जाती है। ऐसे में उन्हें जान जोखिम में डालकर दो पहिया वाहनों से आवाजाही करनी पड़ती है। जिसमे हमेशा जंगली जानवरों का भय बना रहता है। जगमोहन डांगी बताते हैं कि एक बार वर्ष 2016 में शाम करीब 5 बजे ही उन पर गुलदार ने झपटा मारा था। हालाँकि कि उनकी किस्मत अच्छी रही जो उसी समय अचानक सामने से कोई गाड़ी आ गयी। जिस कारण गुलदार को भागना पढ़ा। इस हमले में वे बुरी तरह से जख्मी हो गए थे। और उन्हें दो माह तक जिला अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा था। लेकिन उन्हें वन विभाग की ओर से उनकी शरीर की क्षति पूर्ति पर एक रुपया की राशि मदद नही दी गई।

जगमोहन डांगी