hariyali mandir-jasoli gaon

कर्णप्रयाग : वेद हों चाहे ग्रंथ, सभी में उत्तराखंड का विशेष महत्व है। इसका वर्णन पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। चाहे वो देवताओं का प्रवास हो या जड़ी बूटियों का इतिहास सभी किसी न किसी रूप में उत्तराखंड की धरती से जुड़े है। यही कारण है कि यहाँ के लोग भी देवतुल्य ही होते हैं, साथ ही यहाँ अनेकों तीर्थस्थल व धर्म स्थल भी है, जिनमे से एक रुद्रप्रयाग जिले के जसोली गांव डांडाखाल क्षेत्र में स्थित है, जहां एक अदभुत प्रसिद्ध धार्मिक एवं पवित्र शक्तिपीठ स्थित है, इस शक्तिपीठ को माता हरियाली देवी के नाम से जाना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब वासुदेव जी की पत्नी देवकी माता की सातवीं संतान के रूप में महामाया ने जन्म लिया था तो मथुरा नरेश कंस ने महामाया को धरती पर पटक दिया था। जिससे उनके शरीर के टुकड़े पूरी पृथ्वी पर बिखर गए। कहते हैं महामाया जी का हाथ डांडाखाल क्षेत्र में गिरा जिसकी वजह से यह स्थान “हरियाली सिद्धपीठ” के नाम से जाना जाने लगा।  इस मंदिर में मूलरूप से उत्तराखंड के तीन आराध्य देव,  हरियाली देवी, क्षेत्रपाल और हित देवता के रूप में विराजमान है। स्थानीय लोगों के अनुसार हरियाली देवी को “सीता माता”, “बाला देवी” और “वैष्णो देवी” के नाम से भी जाना जाता है। भारत के 58 सिद्धपीठों में से यह एक प्रसिद्ध सिद्धपीठ है साथ ही एक खूबसूरत पर्यटक स्थल भी।

जसोली गांव में स्थित यह प्रसिद्ध सिद्धपीठ शंकराचार्य के समय से निर्मित होना बताया जाता है। और यही कारण है कि इस सिद्धपीठ से कई पौराणिक मान्यताएं भी जुडी हुई है। यह सिद्धपीठ वास्तुकला के महत्त्व की बजाय अध्यायत्मिक व धार्मिक महत्त्व के लिए जाना जाता है। यहाँ वर्ष में दो बार कृष्ण जन्माष्टमी एवं दिवाली को भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है। जन्माष्टमी को तीन दिन का और दिवाली पर दो दिन के मेलों के अवसर पर देश-विदेश से भक्त व शैलानी अपनी आस्था व मन्नत लेकर माँ के दरवार में आशीर्वाद लेने आते हैं। इस दौरान मां हरियाली देवी की डोली को 7 किलोमीटर की दूरी पर “हरियाली कांठा” तक ले जाया जाता है। यात्रा के दौरान भक्तों के द्वारा दी गई भेंट से मां की डोली बहुत भारी हो जाती है जिससे डोली का भार इतना ज्यादा हो जाता है कि उठाना भी मुश्किल होता है पर मां की कृपा से भक्त जन नंगे पांव दिन और रात यात्रा करने के बाद सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही वहां पहुँचते हैं। इस यात्रा की एक खास बात यह है की यात्रा में केवल पुरुष ही शामिल हो सकते हैं, यात्रा जब हरियाली कांठा पहुँचती है तो डोली को मंदिर के अंदर नहीं रखा जाता। इसका जब हमने कारण जानना चाहा तो स्थानीय निवासी दिनेश थपलियाल का कहना था कि यदि मां की डोली को मंदिर के अंदर रखा तो माँ अपना आसन वहीँ जमा लेंगी। दिवाली के दिन माँ की पूजा अर्चना के बाद भोग लगाया जाता है और पूरे क्षेत्रवासी पूरे दिन ब्रत रखकर मां की डोली का उनके ससुराल जसोली पहुँचने का इंतज़ार करते है इस दौरान भक्त बड़ी संख्या में जसोली पहुंचते हैं। जब डोली यहाँ पहुँचती है तो सभी ग्रामवासी अपने पशुओं यानि गाय-बेलों की पूजा करते हैं और पूजा अर्चना के बाद ही सभी श्रद्धालु खुद प्रसाद ग्रहण करते हैं, खाना खाते हैं। जो श्रद्धालु बाहर से आए होते है उनके लिए यहाँ भंडारे की व्यवस्था भी होती है। मां हरियाली देवी को हरियाली, सौभाग्य और सौहार्द का प्रतीक माना जाता है आपको कभी अवसर मिले तो इस दिव्य धाम में दर्शनों के लिए अवश्य जाएं।

कैसे पहुंचें

हरियाली देवी मंदिर समुद्र तल से लगभग 1400 मीटर की ऊंचाई पर विशाल पर्वत श्रंखलाओं से घिरा हुआ है और यह उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग से 37 किलोमीटर दूर है। रुद्रप्रायग से कर्णप्रयाग मार्ग के लिए चलने पर कुछ ही दूरी पर नगरासू गांव है, नगरासू बाजार से थोड़ा आगे जाने पर दाईं और को एक सड़क सीधा हरियाली देवी के लिए जाती है। “हरियाली सिद्धपीठ” पहुँचने के लिए आप ऋषिकेष से रुद्रप्रयाग होते हुए एवं गैरसैण या बागेश्वर ग्वालदम से कर्णप्रयाग होते हुए मोटर मार्ग से जा सकते हैं।

रिपोर्ट: द्वारिका चमोली