Dehradun tea garden land

देहरादून। देहरादून में चाय बागान की जमीन की अवैध रूप खरीद फरोख्त को लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट में एक जनहित याचिक दायर की गई थी, जिस पर गुरुवार को कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने जमीन की खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी है।

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने देहरादून में चाय बागान की जमीन की खरीद फरोख्त के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने चाय बागान की भूमि की खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए सरकार, कमिश्नर गढ़वाल और डीएम देहरादून को 11 सितंबर तक विस्तृत जवाब पेश करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई अब 12 सितंबर को होगी।

बता दें कि इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में हुई। देहरादून के विकेश सिंह नेगी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर सरकार में निहित जमीन को खुर्द बुर्द करने का आरोप लगाया है।

वहीं, जनहित याचिका में कहा गया है कि राजा चंद्र बहादुर सिंह की जमीन जो सरप्लस लैंड है, उसको 1960 में सरकार में निहित करा जाना था, लेकिन लाडपुर, नथनपुर और रायपुर समेत अन्य जमीन को भूमाफिया द्वारा बेचा जा रहा है। याचिका में कहा गया कि करीब 350 बीघा जमीन की खरीद फरोख्त पर रोक लगाई जाए, ये जमीन सरकार तत्काल अपने कब्जे में ले और जमीन खरीदने और बेचने वालों पर कार्रवाई की जाए।

तहसील में विवादित भूमि के दस्तावेज ही नहीं

  • आरटीआई में खुलासा, दून की 350 बीघा भूमि का मामला
  • इंद्रावती बनाम कुंवर चंद्र बहादुर चकरायपुर की जमीन संबंधी दस्तावेज गायब

देहरादून के चकरायपुर और उसके आसपास की लगभग 350 बीघा जमीन को लेकर विवाद है। यह सरकारी भूमि है लेकिन इसे निजी संपत्ति के तौर पर संतोष अग्रवाल बेचने के प्रयास कर रहा है। कई लोगों को भूमि बेच भी दी गयी है। आरटीआई में खुलासा हुआ है कि तहसील में इस संपत्ति के दस्तावेज ही मौजूद नहीं हैं। एडवोकेट विकेश नेगी के मुताबिक दस्तावेज न होने से साबित होता है कि यह भूमि सरकारी है और इसको खुर्द-बुर्द किया जा रहा है।

देहरादून के रिंग रोड पर सूचना भवन के आसपास की जमीन पर कई बोर्ड लगे हैं कि यह संपत्ति संतोष अग्रवाल की है। जबकि इस भूमि को लेकर 1974 में ही विवाद था और इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। सीलिंग से बचने के लिए इस जमीन पर चाय बागान लगाने की कोशिश की गयी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दस अक्टूबर के बाद इस भूमि की कोई सेलडीड बनती है तो यह जमीन सरकार की मान ली जाएगी।

एडवोकेट विकेश नेगी के मुताबिक इंद्रावती अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद 17 जून 1988 को 35 बीघा जमीन की सेल डीड बना दी और इस भूमि का दाखिला खारिज 19 मार्च 2020 को हुआ। इस आधार पर यह गैरकानूनी है। एडवोकेट विकेश नेगी ने के अनुसार उन्होंने इस भूमि को लेकर सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी कि इसके सत्यापित दस्तावेज उपलब्ध कराए जाएं। लेकिन अपर तहसीलदार सदर ने बताया कि वाद संख्या 75/87 इंद्रावती बनाम कुंवर चंद्र बहादुर मौजा चकरायपुर का फैसला जो कि 17 जून 1988 को किया गया था उसके दस्तावेज नहीं हैं।

आरटीआई एक्टिविस्ट विकेश नेगी के अनुसार साफ है कि इस भूमि को लेकर गोलमाल है और इसके पीछे बड़ी साजिश है। इसका उच्चस्तरीय जांच से ही खुलासा हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह भूमि बेशकीमती है और सरकार चाहे तो इस जमीन पर उन विभागों के कार्यालय बना सकती है जो विभाग किराए के भवन में चल रहे है। इससे सरकार का किराया भी बचेगा और सरकारी जमीन को खुर्द-बुर्द भी नहीं किया जा सकेगा।