पौड़ी : उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में आलू की व्यवसायिक खेती परंपरागत रूप से सदियों से होती आ रही है। इन दोनों पहाड़ी क्षेत्रों में पौष्टिक व स्वादिष्ट पहाड़ी लाल आलू की खेती भारी मात्रा में होती है। जिसकी बाजार में अधिक मांग रहती है। गांवों में कृषक पहाड़ी लाल आलू को निकाल कर बाजार में बेचता है। पहाड़ में तलहटी वाले गांवो में जहां सिंचित खेती होती है। वहां साथ-साथ आलू की भी खेती होती है। क्योंकि आलू की खेती मात्र तीन माह में तैयार हो जाती हैं। लेकिन इस बार थाली नही देखेगी आलू की थिंचोड़ी।
अज्ञात बीमारी के कारण पहाड़ी गांवो में इस बार आलू की फसल बर्बाद हो गयी है। इस बीमारी से उद्यान एवं कृषि विभाग अनजान हैं। जबकि आलू की खेती करने वाले कास्तकार कहते हैं कि कोई झुलसा रोग लग गया जिससे आलू की पौध पूरी तरह झुलस गई है। पौडी जनपद के सभी विकास खण्डों के तलहटी गांवो के ज्यादातर कास्तकारों की यही शिकायत है। कल्जीखाल विकास खण्ड के किस्मोलिया गांव के कास्तकार गम्भीर सिंह राणा एवं चंदन सिंह राणा जिनकी आलू की खेती आजीविका भी है, का कहना है कि उन्होंने करीब एक कुंतल आलू बीज बोया था, और बीज बुवाई के समय आलू बाजार में 25 रुपया किलो के हिसाब से खरीदना पड़ता है।
लेकिन इस बार आलू की खेती कर अपनी कृषि आजीविका चलाने वाले कास्तकारों को काफी निराशा हाथ लगी। कल्जीखाल विकास खण्ड के ग्राम थनुल जहां भारी मात्रा में आलू की खेती होती है। वहां के ग्राम प्रधान रिटायर्ड कैप्टन नरेन्द्र सिंह नेगी जो स्वयं भी कास्तकार हैं, बताते हैं कि उनकी ग्राम पंचायत में थनुल, किसमोलिया, ठंगरधार में आलू की खेती होती है। लेकिन गत चार वर्षों कोई अज्ञात बीमारी ने कास्तकारों की कमर ही तोड़ दी है। जबकि जंगली जानवरों की सुरक्षा के लिए कृषि विभाग ने घेरबाड़ दे दी है। लेकिन इस अज्ञात बीमारी से निजात नही दिला पा रहे हैं।
कहीं बार कास्तकारों की खेती की मिट्टी कृषि विभाग द्वारा प्रशिक्षण के लिए सैम्पललिंग की गई। लेकिन आजतक रिपोर्ट नही आई है। जिन गांवो में पारम्परिक आलू की खेती होती है उनमे से थनुल, किसमोलिया, कुनकली, अलासू, पलासू, उजेडगांव, भटकोटी, सरासू, सरोड़ा, मरोड़ा, बुंगा, सीला, बंघाट आदि गांवो में आलू की फसल खराफ होने की जानकारी मिली है।
जगमोहन डांगी