Himalaya Diwas 2023: हिमालयी प्रदेश उत्तराखंड आज हिमालय दिवस की 14वीं वर्षगांठ मना रहा है. उत्तराखंड में हर साल 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाया जाता है. दरसल हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र और क्षेत्र को संरक्षित करने के उद्देश्य से हिमालय दिवस मनाया जाता है। वर्ष 2010 में आज ही के दिन यानी 9 सितंबर को आधिकारिक तौर पर उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने हिमालय दिवस के रूप में घोषित किया था. हिमालय और पहाड़ की प्रकृति को बचाने और बनाए रखने के लिए हिमालय दिवस मनाने का लक्ष्य रखा गया था. तभी से हर साल 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाया जाता है.

हिमालय दिवस के मौके पर आज प्रदेश के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने प्रदेशवासियों को हिमालय दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि पर्वतराज हिमालय भारत ही नहीं, अपितु पूरे विश्व की अमूल्य धरोहर है। मानव जीवन की सुरक्षा, सभ्यता और संस्कृति के केंद्र हिमालय के संरक्षण के लिए जनसहभागिता जरूरी है। उन्होंने कहा कि हिमालय का संरक्षण हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को हिमालय दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हिमालय के संरक्षण में हम सभी की भागीदारी जरूरी है। हिमालय न केवल भारत बल्कि विश्व की बहुत बड़ी आबादी को प्रभावित करता है। यह हमारा भविष्य एवं विरासत दोनों है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से हिमालय को सुरक्षित रखना हम सब की जिम्मेदारी है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में सामाजिक विकास की आवश्यकता है, हमें इकॉलोजी एवं इकोनॉमी को साथ में रखते हुए कार्य करना होगा एवं हिमालय की जैव विविधता को संरक्षित करना होगा। जब हिमालय बचा रहेगा, तभी जीवन बचा रहेगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमालय का किसी राज्य व देश के लिये ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिये महत्व है। हिमालय के संरक्षण का दायित्व, हम सभी का है। हिमालय के संरक्षण के लिये यहां की संस्कृति, नदियों व वनों का संरक्षण जरूरी है। विकास के साथ ही प्रकृति के साथ भी संतुलन बनाना होगा। प्रकृति के संरक्षण के लिये हिमालय का संरक्षण आवश्यक है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण उत्तराखण्ड वासियों के स्वभाव में है, हरेला जैसे पर्व, प्रकृति से जुड़ने की हमारे पूर्वजों की दूरगामी सोच का परिणाम है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि पर्यावरण में हो रहे बदलावों, ग्लोबल वार्मिंग के साथ ही जल, जंगल, जमीन से जुड़े विषयों पर समेकित चिंतन की जरूरत है। सामाजिक चेतना तथा समेकित सामूहिक प्रयासों से ही हम इस समस्या के समाधान में सहयोगी बन सकते हैं।