Maun Mela : उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में मेलों की अपनी विशिष्टता और महत्व है। यहाँ अगल अगल क्षेत्रों में अपनी लोक संस्कृति एवं परम्परा से जुड़े छोटे-बड़े सैकड़ों मेले हर साल आयोजित किये जाते हैं। ऐसा ही एक ऐतिहासिक और पारम्परिक मेला उत्तराखंड के मसूरी के जौनपुर क्षेत्र में करीब 156 वर्षों से हर साल जून के अंतिम सप्ताह में मनाया जाता है। इस मेले की शुरुआत टिहरी नरेश नरेंद्र शाह के समय से मानी जाती है। हालाँकि कोविड महामारी के चलते पिछले दो साल यह मेला आयोजित नहीं हो पाया था। इस बार यह मेला रविवार 26 जून को धूमधाम से मनाया गया। मछली पकड़ने के इस अनूठे मेले को मौण मेला के नाम से जाना जाता है।
रविवार को मसूरी के नजदीक जौनपुर रेंज में अगलाड़ नदी में ऐतिहासिक मौण मेला धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान लगभग 20 हजार से ज्यादा लोग मछलियां पकड़ने नदी में कूदे। स्थानीय ग्रामीणों के साथ-साथ मसूरी घूमने आये पर्यटक भी मछलियाँ पकड़ने नदी में उतरे।
इस बार ऐतिहासिक राजमौण मेले में टिहरी जिले के जौनपुर विकास खंड, देहरादून के जौनसार, उत्तरकाशी जिले के गोडर-खाटर क्षेत्र, विकासनगर व मसूरी सहित आसपास के 114 गांव के करीब 20 हजार लोगों ने सामूहिक मछली पकड़ने के इस अनूठे त्योहार में भाग लिया। ऐसा अनुमान है कि लगभग 20 से 25 हजार किलो मछलियां पकड़ी गयी होंगी।
क्या है मौण और कब से मनाया जाता है मौण मेला
मौण एक प्रकार के पाउडर को कहते हैं। जो पहाड़ी क्षेत्रों मे उगने वाले औषधीय टिमरू के पौधों के पत्तियों और टहनियों को पीस कर बनाया जाता है। जिसका प्रयोग मछलियों को बेहोश कर पकड़ने के लिए किया जाता है। मौण के नदी में डालने से मछलियां बेहोश हो जाती हैं और लोग आसानी से मछलियों को पकड़ सकते हैं। टिमरू एक औषधीय पौधा होता है, जिससे मछलियाँ मरती नहीं है बल्कि कुछ समय के लिए बेहोश हो जाती है। टिहरी जनपद के जौनपुर क्षेत्र में बहने वाली अगलाड़ नदी में करीब 156 वर्षों से प्रत्येक साल जून के अंतिम सप्ताह में मछली पकड़ने का सामूहिक त्योहार मौण मेला टिहरी रियासत काल से मनाया जाता रहा है।
टिमरू की छाल से मौण को तैयार करने की जिम्मेदारी अलग अलग पट्टियों की होती है। इस बार मौण तैयार करने की बारी सिलवाड़ पट्टी के ग्रामीणों की थी। रविवार को सुबह 12:30 बजे अगलाड़ नदी में विशेष पूजा अर्चना के बाद करीब 8 क्विंटल टिमरू का पाउडर नदी में डाला गया। जिस पर बच्चे, युवा व बुजुर्ग एक साथ मछली पकड़ने के लिए नदी में उतरे। नदी के करीब पांच किमी के दायरे तक सैकड़ों लोग मछली पकड़ते नजर आए।
जिस टिमरू पाउडर को ग्रामीण मछली पकड़ने के लिए नदी में डालते हैं, उसको बनाने के लिए गांव के लोग एक माह पूर्व से तैयारी में जुट जाते है। प्राकृतिक जड़ी बूटी और औषधीय गुणों से भरपूर टिमरू के पौधे की तने की छाल को ग्रामीण निकालकर सुखाते हैं फिर छाल को ओखली या घराट में बारीक पीसकर पाउडर तैयार करते हैं। टिमरू का पाउडर जल पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता है। इससे मात्र कुछ समय के लिए मछलियां बेहोश हो जाती हैं जिन्हें ग्रामीण पकड़ते हैं, जो मछलियां पकड़ में नहीं आ पाती हैं। वह बाद में ताजे पानी में जीवित हो जाती हैं। मौण मेला नदी के पर्यावरण संतुलन के लिए भी उपयुक्त बताया जाता है। हजारों की संख्या में जब लोग नदी की धारा में चलते हैं तो नदी के तल में जमा काई और गंदगी साफ होकर पानी में बह जाती है और मौण मेला होने के बाद नदी बिल्कुल साफ नजर आती है।