उत्तराखंड में सरकार का दावा है कि वर्ष 22-23 में राज्य में सेब का उत्पादन 64 हजार मैट्रिक टन हुआ। नीम्बू वर्गीय फलों (माल्टा, गलगल, चकोतरा आदि) का उत्पादन उत्तराखंड में 86 हजार मेट्रिक टन प्रति वर्ष होता है। उत्तराखंड के माल्टा से गोवा में बनेगी वाइन, तैयार हो रहा प्रस्ताव।

वर्ष 2011- 12 के फल उत्पादन आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में फल उत्पादन के अंतर्गत क्षेत्र फल 200727 हैक्टेयर तथा उत्पादन 802124 Mt दर्शाया गया है। जो हिमाचल के 372820 Mt उत्पादन से अधिक है।

वर्ष 2015-16 की प्रगति आख्या के अनुसार राज्य नाशपाती, आड़ू, प्लम एवं खुवानी फल उत्पादन में देश में प्रथम स्थान पर तथा अखरोट उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। विभाग के वर्ष 2018-19 के आंकड़ों के अनुसार राज्य में फ़ल उत्पादन के अन्तर्गत 180468.79 हैक्टर क्षेत्र फल तथा उत्पादन 664555.41 मैट्रिक टन दर्शाया गया है।

फल उत्पादन आंकड़ों की हकीकत

योजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी पलायन आयोग उत्तराखंड की जनपद पौड़ी, टिहरी व अल्मोड़ा की रिपोर्ट के अनुसार विभाग द्वारा फल उत्पादन के अन्तर्गत दर्शाये गये फल उत्पादन के आंकड़ों से काफी कम पाया गया।

पलायन आयोग की पौड़ी जनपद की रिपोर्ट के अनुसार, जनपद में उद्यान विभाग द्वारा फल उद्यान के अन्तर्गत वर्ष 2015-16 में 20301 हैक्टियर क्षेत्रफल दर्शाया गया है। पलायन आयोग के वर्ष 2018-19 सर्वे में पाया कि पौड़ी जनपद में मात्र  4042 हैक्टेयर क्षेत्रफल में उद्यान हैं, याने दर्शाये गये क्षेत्रफल से 16259 हैक्टेयर कम। किन्तु निदेशालय के फल उत्पादन के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019-20 में भी पौड़ी जनपद में फल उत्पादन के अंतर्गत क्षेत्र फल बढ़ाकर 21647 हैक्टेयर दर्शाया जा रहा है।

पलायन आयोग की टिहरी जनपद की रिपोर्ट के पृष्ट संख्या 86 के अनुसार जनपद में वर्ष 2015-16 में सेब का क्षेत्रफल जो 3820 था, वर्ष 2017-18 में घटकर 853 हैक्टर, नाशपाती का 1815 से घटकर 240 हैक्टर, पुल्म का 2627 से घटकर 240, खुबानी का 1498 से घटकर 162 तथा अखरोट का 4833 से घटकर 422 हैक्टर रह गया है। टेहरी जनपद में वर्ष 2015-16 में शीतकालीन फलों के अन्तर्गत 14593 हैक्टेयर क्षेत्रफल था, जो वर्ष 2017-18 में घटकर 1902 हैक्टेयर रह गया। याने 12691 हैक्टेयर क्षेत्र फल कम हुआ।

अल्मोड़ा जनपद की रिपोर्ट के पृष्ट संख्या 87 में उद्यानीकरण में निरंतर कमी होना लिखा गया है। यही हाल अन्य सभी जनपदों का है।

पूर्व में पटनायक बक्सी कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार उद्यान विभाग द्वारा फलों के अन्तर्गत दर्शाये गये क्षेत्रफल व उत्पादन के आंकड़े मात्र 13% ही सही हैं। खराब फल पौध व अनुचित तरीके से पैकिंग व कृषकों के खेत तक फल पौध ढुलान गलत तरीके से करने के कारण 40% पौधे पौध लगाने के प्रथम वर्ष में ही मर जाते हैं। विभाग योजनाओं में लगाये गये पौधों के हिसाब से हर वर्ष पौध रोपण का क्षेत्रफल व फलों का उत्पादन बढता रहता है। इसलिए दर्शाते गये आंकड़े सही नहीं है।

जव हम चारधाम यात्रा या उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के भ्रमण पर गर्मियों में जाते हैं बहुत कम स्थानों में ही स्थानीय उत्पादित फल यात्रा सीज़न याने मई से सितम्बर माह तक बिकते हुए दिखाई देते हैं। कुमाऊं मण्डल में भवाली, गर्मपानी, नैनीताल, रानीखेत व कुछ अन्य स्थानों में स्थानीय उत्पादित फल बिकते हुए दिखाई देते हैं।  जनपद उत्तरकाशी व राज्य के हिमाचल से लगे देहरादून व टेहरी जनपदों के ऊंचाई वाले क्षेत्रों  तथा  पिथौरागढ़, चमोली जनपदों के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सेब के नये बाग विकसित हुए हैं जिनसे अच्छा उत्पादन हो रहा हैं।

वहीं दूसरी ओर यदि हिमाचल राज्य का भ्रमण करते हैं तो मई से सितम्बर तक सड़क के दोनों ओर आडू ,प्लम खुवानी नाशपाती सेब आदि फलों के स्टाल लगे हुए दिखाई देते हैं।

कहने का अभिप्राय यह है कि उत्तराखंड में, नाशपाती, आडू, प्लम, खुबानी के बहुत कम बाग व फल देखने को मिलते हैं। फिर भी फल उत्पादन के आंकडो में उत्तराखंड देश में प्रथम स्थान पर है।

फल उपलब्ध न होने के कारण खाद्य प्रसंस्करण यूनिटें व कोल्ड स्टोर बन्द पड़े

फर्जी फल उत्पादन के आंकड़ों के सहारे लगी ज्यादातर बड़ी खाद्य प्रसंस्करण यूनिटें व कोल्ड स्टोर बन्द पड़े हैं। अल्मोड़ा जनपद के मटेला में करोंड़ों रुपए की लागत से बना कोल्ड स्टोरेज फल उपलब्ध न होने के कारण बन्द पडा है। रानीखेत चौबटिया गार्डन की एपिल जूस प्रोसिसिग यूनिट बन्द पड़ी है। चमोली जनपद के कर्णप्रयाग में  एग्रो द्वारा फूड प्रोसेसिंग यूनिट खुली और बन्द हुई। रुद्रप्रयाग जनपद के तिलवाड़ा में भी गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई वह भी बन्द पड़ी है। इसके अलावा कई स्वयंम सेवी संस्थाओं एवं परियोजनाओं के माध्यम से फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई किन्तु फल उपलब्ध न होने के कारण नहीं चल पाई।

पर्वतीय क्षेत्रों में कहीं कहीं पर व्यक्तिगत Small scale prossesing unit लगी है, किन्तु अधिकांश यूनिटें पहाड़ी क्षेत्रों में फल न उपलब्ध होने के कारण मैदानी क्षेत्रो हरिद्वार आदि स्थानों से किन्नो संतरा का पल्प/जूस इक्ट्ठा कर संतरा जूस के नाम पर बेच रहे हैं।

राज्य बनने के 23 बर्षो बाद भी उद्यान विभाग के पास नहीं है वास्तविक फल उत्पादन के आंकड़े

शासन वर्ष 2003 से लगातार उद्यान विभाग को फल उत्पादन के वास्तविक आंकड़े सार्वजनिक करने के निर्देश दे रहा है, किन्तु विभाग द्वारा फल उत्पादन के वास्तविक आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए जा रहे हैं। शासन के पत्रांक 088/ग्रा०वि०/उद्यान/2003-04 दिनांक 14 नवम्बर,2003 एवं इसके परिपालन में निदेशालय के पत्रांक 3552/एच०डी०एस०-बै०/03 दिनांक चौबटिया नवंम्बर,25/2003 द्वारा सभी जिला उद्यान अधिकारियों को सर्वे कर फल उत्पादन के वास्तविक आंकड़े दर्शाने के निर्देश दिए गए।

इस कार्य में शासन के निर्देशानुसार राजस्व विभाग के सहयोग से जनपदों में फल उत्पादन के आंकड़े एकत्रित किए गए हैं  जो विभाग द्वारा दर्शाये गये आंकड़ों से बहुत कम हें जिन्हें सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है, सच को छुपाये रखने के लिए निदेशालय स्तर से पुराने आंकड़ों को ही प्रति वर्ष योजनाओं में किए गए व्यय की दर से बढ़ा कर दर्शाया जा रहा है।

उद्यान विभाग द्वारा राजस्व विभाग के सहयोग से एकत्रित किए गए फल उत्पादन के आंकड़ों को सार्वजनिक करने हेतु जब शासन को लिखा जाता है तो उद्यान निदेशालय से टालने वाला जबाव मिलता है कि,अर्थ एवं संख्या निदेशालय उत्तराखण्ड द्वारा उक्त विषयक एक सैम्पल सर्वे कराया जाना है, जिस हेतु विभाग द्वारा अर्थ एवं संख्या निदेशालय उत्तराखण्ड से समन्वय किया जा रहा है। सैम्पल सर्वे के उपरान्त ही विभागीय औद्यानिक फसलों के क्षेत्रफल / उत्पादन के आकड़े सार्वजनिक किये जा सकेंगे।

औद्योगिक फसलों के आंकड़ों में फर्जीवाड़ा कृषि एवं उद्यान मंत्री के भी संज्ञान में है, किन्तु वास्तविक आंकड़े कब तक सार्वजनिक होंगे इसका जवाब किसी के पास नहीं। राज्य बने 23 साल हो गये हैं, इन 23 बर्षो में जब उत्पादन के वास्तविक आंकडे ही नहीं लिये जा सके तो राज्य में नियोजन कैसे होगा यह विचारणीय है। किसी भी राज्य के सही नियोजन के लिए आवश्यक है कि उसके पास वास्तविक आंकड़े हों तभी भविष्य की रणनीति तय की जासकती है। काल्पनिक (फर्जी) आंकड़ों के आधार पर यदि योजनाएं बनाई जाती है तो उससे आवंटित धन का दुरपयोग ही होगा जैसे अभी तक होता आ रहा है। बिना वास्तविक फल उत्पादन आंकड़ों के औद्यानिकी सैक्टर में राज्य में भविष्य का सही नियोजन होगा सोचना बेमानी है।

डॉ. राजेंद्र कुकसाल, कृषि एवं उद्यान विशेषज्ञ, पूर्व लोकपाल (मनरेगा)