Dr. Indira Hridayesh : कुमाऊं की आयरन लेडी के रूप में विख्यात उत्तराखंड के कद्दावर नेताओं में शुमार डॉ. इंदिरा हृदयेश का पार्थिव शरीर आज रानीबाग के चित्रशिला घाट पर पंचतत्व में विलीन हो गया। इस दौरान उनके अंतिम दर्शन के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी।
इससे पहले आज सुबह मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सहित भाजपा और कांग्रेस के कई नेता स्व. इंदिरा हृदयेश को भावपूर्ण श्रद्धांजलि देने पहुंचे। जिसके बाद उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई और चित्रशिला घाट पहुंचकर स्व. इंदिरा हृदयेश का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।
उत्तराखंड विधानसभा में विपक्ष की नेता इंदिरा हृदयेश का रविवार को नई दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। 80 वर्षीय वरिष्ठ कांग्रेस नेता पार्टी बैठक में शामिल होने के लिए दिल्ली गई थी और वह उत्तराखंड सदन में ठहरी हुई थीं।
डॉ. इंदिरा हृदयेश का जीवन परिचय
7 अप्रैल 1941 को सामान्य कुमाऊंनी परिवार में जन्मी इंदिरा ने शिक्षक के रूप में अपना सफर शुरू किया। वह 1960 के दशक में पौड़ी के एक अशासकीय विद्यालय में अध्यापिका बनीं। इसी विद्यालय में हृदयेश कुमार भी कार्यरत थे, जिनसे बाद में उनका विवाह हुआ। उनका मूल निवास (मायका) पिथौरागढ़ के बेड़ीनाग विकासखंड का बेड़ीनाग गांव है। यह गांव कुमाऊं की प्रसिद्ध न्याय की देवी कोटगाड़ी मंदिर (धरमघर-पांखू) के निकट है।
उनके पिता पंडित टीकाराम पाठक आजादी की लड़ाई के महानायकों में एक थे। उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन में शिरकत की और गांधी जी के साथ दांडी मार्च में भाग लेकर कई पदयात्राएं कीं। पंडित टीकाराम पाठक कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता थे। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पंडित टीकाराम पाठक को 1936 में संयुक्त प्रांत का कांग्रेस कमेटी का सदस्य मनोनीत किया था। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को मदद करने वाले कई समाचार पत्रों का संपादन भी किया। डॉ. इंदिरा हृदयेश को देशसेवा, सच्चाई, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा अपने पिता से विरासत में मिली थीं। उनकी माता रमा पाठक गृहिणी थीं।
इंदिरा ने 1962 में राजनीति में प्रवेश किया। गढ़वाल के कद्दावर कांग्रेस नेता हेमवती नंदन बहुगुणा के संपर्क में आने पर उनका राजनीति में रुझान हुआ और पहली बार मात्र 32 वर्ष की आयु में वह गढ़वाल कुमाऊं शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से उतर प्रदेश विधान परिषद की सदस्य बनीं। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1974 में वह स्नातक शिक्षक कोटे से उत्तरप्रदेश विधान परिषद में चुनीं गईं एमएलसी। लगातार चार बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद सदस्य के लिए निर्वाचित हुईं। वर्ष 2000 में राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में बनी अंतरिम सरकार में उन्हें विधायक का दर्जा देकर कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया और वह नेता प्रतिपक्ष बनीं। 2002 में हल्द्वानी विधानसभा से चुनाव जीता और कांग्रेस के सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की सरकार में उनको पीडब्ल्यूडी, संपदा, सूचना संसदीय कार्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री बनाया गया। 2007 में वह चुनाव हार गईं और 2012 में कांग्रेस के पुन: सत्ता में आने पर उन्हें वित्त मंत्री बनाया गया। 2017 में भाजपा सरकार के सत्ता में आने पर उनके अनुभवों को देखते हुए उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया गया। करीब 47 सालों से राजनीति में सक्रिय हृदयेश वर्तमान में हल्द्वानी से कांग्रेस विधायक थीं।