दिनेश शास्त्री

करोड़ों हिंदुओं की आस्था के केंद्र और हिमालय में स्थित विश्व प्रसिद्ध ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग श्री केदारनाथ धाम के कपाट इस वर्ष अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर शुक्रवार 10 मई को प्रात: 7 बजे श्रद्धालुओं के लिए खुलेंगे। भगवान केदारनाथ के शीतकालीन पूजा स्थल ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में महाशिवरात्रि के पावन पर आज केदारनाथ धाम के कपाट खोलने का मुहूर्त निकाला गया। भगवान केदारनाथ की पंचमुखी भोग मूर्ति की 5 मई को पंचकेदार गद्दी स्थल श्री ओंकारेश्वर मंदिर में विशेष पूजा की जायेगी और उसी दिन भैरव नाथ जी की पूजा होगी। भगवान की पंचमुखी डोली 6 मई को ऊखीमठ से श्री केदारनाथ धाम के लिए प्रस्थान करेगी। उस दिन डोली का रात्रि विश्राम गुप्तकाशी स्थित विश्वनाथ मंदिर में होगा। अगले दिन सात मई को फाटा, आठ मई को गौरा मंदिर गौरीकुंड और नौ मई शाम को डोली केदारनाथ धाम पहुंचेगी। आज पंचकेदार गद्दीस्थल श्री ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ में रावल भीमाशंकर लिंग, श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति अध्यक्ष अजेंद्र अजय, तमाम हक हकूकधारियों और मंदिर समिति के अधिकारियों की उपस्थिति में आयोजित धार्मिक समारोह में कपाट खुलने की तिथि तय हुई।

केदारनाथ और बदरीनाथ के साथ ही गंगोत्री और यमुनोत्री सहित चारधाम यात्रा को उत्तराखंड की आर्थिकी के ग्रोथ इंजन कहा जा सकता है। इन धामों की यात्रा के चलते यहां की अर्थव्यवस्था को हमेशा से पंख लगते रहे हैं और हरिद्वार से लेकर चारों धामों के यात्रा मार्गों को न सिर्फ जीवंतता मिलती है बल्कि रोजगार के द्वार खुलते हैं। नतीजतन लाखों लोगों की आजीविका चलती है। यह क्रम आज से नहीं बल्कि शताब्दियों से चला आ रहा है। आम लोगों के रोजगार के साथ ही एक नजर केदारनाथ धाम में मंदिर समिति की आय पर एक नजर डालें तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। पिछले वर्ष बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति को इस धाम से 18 करोड़ रुपए की आय हुई थी जबकि बदरीनाथ मंदिर को 16 करोड़ रुपए की आय हुई। यह पहला मौका था जब केदारनाथ मंदिर की आमदनी बदरीनाथ से ज्यादा हुई। शताब्दियों से बदरीनाथ की आय केदारनाथ से ज्यादा रहती आई किंतु केदारनाथ धाम के नवनिर्माण के बाद यह रिकॉर्ड टूटा है। मंदिर समिति को यह आय श्रद्धालुओं के दान, चढ़ावा और प्रोटोकॉलधारी यात्रियों से प्राप्त शुल्क के रूप में मिला है। इसी तरह बीते यात्रा में बदरीनाथ मंदिर को 16 करोड़ रुपए की आय हुई।

अब एक शताब्दी पूर्व की व्यवस्था में झांकें तो आप दांतों तले अंगुली दबाने को बाध्य हो सकते हैं। ठीक एक शताब्दी पहले केदारनाथ मंदिर की आमदनी मात्र 49 हजार रुपए थी। वह भी तब जब हरिद्वार में कुंभ जैसा महापर्व था और कदाचित आर्थिक दृष्टि से श्रद्धालु संपन्न रहे होंगे। वरना वार्षिक चढ़ावा आमतौर पर नौ से दस हजार रुपए तक आता था। तब ब्रिटिश गढ़वाल के साठ गांवों की मालगुजारी यानी लगान के 1090 रुपए, अल्मोड़ा के 45 गांवों की मालगुजारी से 808 रुपए और टिहरी रियासत के गूंठ गांवों से 250 रुपए की मालगुजारी केदारनाथ मंदिर को मिलती थी। इस तरह मालगुजारी के 2148 रुपए और दस से बीस हजार रुपए चढ़ावा मंदिर को मिलता था। जब कभी कुंभ पर्व हो या लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई हो तो कुल आमदनी अधिकतम 49 हजार रुपए तक रही है। सन 1909 में महाराजा कीर्ति शाह के वजीर नियुक्त हुए पंडित हरिकृष्ण रतूड़ी ने अपनी पुस्तक गढ़वाल का इतिहास में इस तथ्य पर विस्तार से प्रकाश डाला है। तुलना करें तो पिछले वर्ष अकेले केदारनाथ मंदिर की आमदनी में 3634 गुणा से अधिक की वृद्धि दर्ज हुई।

लोगों की धार्मिक आस्था और ब्रिटिश गढ़वाल में टिहरी रियासत का दखल अंग्रेजों को बर्दाश्त न हुआ तो 1939 में उन्होंने केदारनाथ और बदरीनाथ मंदिरों का नियंत्रण अपने हाथ में लेने के लिए श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति एक्ट बनाया और टिहरी रियासत को एक तरह से नाममात्र का कस्टोडियन सा बना दिया। हालांकि उस समय की दोनों मंदिरों से मिलने वाली करीब एक लाख रुपए की आमदनी भी कम न थी। अंग्रेज इस धन पर अपना नियंत्रण चाहते थे तो उन्होंने एक्ट के जरिए मंदिरों का अधिकार अपने हाथ में ले लिया। लोग इस फैसले का विरोध न करें, इसके लिए हक हकूक से उन्होंने छेड़छाड़ नहीं की। बदरीनाथ का मुहूर्त टिहरी नरेश की उपस्थिति में करवाने, तेल कलश की व्यवस्था जैसी रस्म राजा के पास रख कर बाकी नियंत्रण अपने पास रखा। उससे पहले बदरीनाथ और केदारनाथ के रावलों का पट्टाभिषेक भी टिहरी दरबार में होता रहा। सन 1815 से पूर्व यह सब श्रीनगर दरबार से होता था। महाराजा अजयपाल द्वारा सन 1512 में दरबार देवलगढ़/ श्रीनगर लाए जाने से पूर्व चांदपुर गढ़ी से समस्त व्यवथाएं संचालित होती थी। इसीलिए गढ़वाल नरेश को बोलांदा बदरीनाथ भी कहा जाता था। खैर यह एक अलग प्रसंग है।

वर्ष 2013 की आपदा में केदारनाथ धाम तहस नहस हो गया था। नव निर्माण के बाद पूरे क्षेत्र में नई आशा, उम्मीद और विश्वास का संचार होने से केदारनाथ मंदिर को रिकॉर्ड आय हुई। धाम में अवस्थापना सुविधाओं के विस्तार के साथ ही लोगों के जीवन स्तर में भी सुधार हुआ। केदारघाटी में पिछले एक दशक के दौरान हुए बदलाव को प्रमाण को देखा जा सकता है। छप्पर वाली चट्टी के स्थान पर सुविधासंपन्न टेंट, प्री फेब्रिकेटेड हाउस और अट्टालिकाएं सब कुछ बता रही हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में चारधाम यात्रा में नित नए आयाम जुड़ेंगे और देवभूमि उत्तराखंड की देश दुनिया में बेहतर छवि स्थापित होगी।