श्रीनगर गढ़वाल : दीपावली के 14 दिन बाद कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी पर श्रीनगर गढ़वाल के पौराणिक कमलेश्वर महादेव मंदिर मे संतान प्राप्ति के लिए किये जाने वाला खड़ दिया अनुष्ठान आज विधि-विधान एवं प्राचीन मान्यताओं के साथ आयोजित किया गया। शाम 5.35 बजे गोधूलि बेला पर कमलेश्वर मंदिर में खड़ा दिया अनुष्ठान प्रारंभ हुआ। मंदिर के मंहत आशुतोष पुरी ने गोधूलि बेला पर नि:संतान दंपतियों को श्रीफल देकर अनुष्ठान का शुभारंभ कराया। इस बार 147 दंपति खड़ दिया अनुष्ठान में शामिल हुए। हालाँकि अनुष्ठान के लिए कुल 185 दंपतियों ने पंजीकरण कराया था। पिछले वर्ष कोरोना महामारी के बावजूद भी 125 दम्पति खड़ दिया अनुष्ठान में शामिल हुए थे।
इस अवसर पर कमलेश्वर महादेव मंदिर सहित अन्य शिवालयों में 365 रुई की बत्तियां भगवान शिव को अर्पित की गईं। निसंतान दंपति जलते दीये को हाथ में लेकर आज रात भर खड़े रह कर भगवान शिव की आराधना करेंगे। गुरुवार को तड़के अलकनंदा नदी में दीपदान कर स्नान के बाद मंहत जी दंपतियों को आशीर्वाद देकर पूजा संपन्न करेंगे। मान्यता है कि खड़ा दिया अनुष्ठान से निसंतान दंपतियों को संतान प्राप्ति होती है। अनुष्ठान में शामिल होने के लिए उत्तराखंड के अलावा उत्तर प्रदेश, दिल्ली, तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश व गुजरात आदि राज्यों से कई नि:संतान दंपति पहुंचे हैं।
क्या है मान्यता और कैसे पड़ा कमलेश्वर नाम
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार देवासुर संग्राम के दौरान जब देवता दानवों से पराजित हो गए, तब भगवान विष्णु दानवों पर विजय प्राप्त करने के लिए यहाँ पर भगवान शिव की तपस्या करने आए। पूजा के दौरान वह शिव सहस्रनाम के अनुसार शिवजी के नाम का उच्चारण कर सहस्र (एक हजार) कमलों को एक-एक करके शिवलिंग पर चढ़ाने लगे। विष्णु की परीक्षा लेने के लिए शिव ने एक कमल पुष्प छुपा लिया। एक कमल पुष्प कम होने से यज्ञ में कोई बाधा न पड़े, इससे भगवान विष्णु चिंतित हुए, फिर उन्हें ध्यान आया कि उन्हें कमल नयन नाम से भी पुकारा जाता है, यही सोचकर विष्णु ने अपना एक नेत्र निकालकर यज्ञ में अर्पित करने का संकल्प लिया। इससे प्रसन्न होकर शिव ने भगवान विष्णु को अमोघ सुदर्शन चक्र दिया। जिससे विष्णु ने राक्षसों का विनाश किया। सहस्र कमल चढ़ाने की वजह से इस मंदिर को कमलेश्वर महादेव मंदिर कहा जाने लगा। इस पूजा को एक निसंतान दंपति देख रहे थे। मां पर्वती के अनुरोध पर शिव ने उन्हे संतान प्राप्ति का वर दिया। तब से यहां कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी (बैकुंठ चतुर्दशी) की रात संतान की मनोकामना लेकर लोग पहुंचते हैं।
इस बार नहीं हो पाया ऐतिहासिक वैकुण्ठ चतुर्दशी मेला
“खड़ दिया” पूजा के अलावा वैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व पर नगरपालिका परिषद श्रीनगर द्वारा स्थानीय जीएंडटीआई ग्राउंड में लगभग 5-6 दिनों तक व्यापक खेलकूद प्रतियोगिताओं व स्थानीय संस्कृति पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।
हालाँकि इस वर्ष श्रीनगर में वैकुण्ठ चतुर्दशी का मेला आयोजित नहीं किया जा रहा है। इस बार यह मेला राजनीति की भेंट चढ़ गया। नगर पालिका अध्यक्ष पूनम तिवाडी का कहना है कि राज्य सरकार और अधिकारियों के नाकारत्मक रूख के कारण इस बार मेला आयोजित नहीं हो पाया है। जबकि भाजपा एवं सभासदों ने नगर पालिका अध्यक्ष पर आरोप लगाते हुए कहा कि संवादहीनता के चलते से मेले का आयोजन नहीं हुआ। कुल मिलाकर इस साल श्रीनगर का ऐतिहासिक वैकुण्ठ चतुर्दशी मेला राजनीति की भेंट चढ़ गया।