review petition in Kiran Negi murder case

दिल्ली के नजफ़गढ़ क्षेत्र में 10 साल पहले हुए गैंगरेप और हत्या के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीनों आरोपियों को बरी किये जाने वाले फैसले के से आहत उत्तराखंड समाज के लोगों द्वारा आज दिल्ली के गढ़वाल भवन में गढ़वाल हितेशणी सभा के अध्यक्ष अजय बिष्ट की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गयी।

बैठक में पीडिता के माता-पिता के साथ करीब 200 लोग शामिल हुए। बैठक में इस मामले में आगे की लड़ाई कैसे लड़ी जाये, इस पर सभी ने अपने अपने स्तर पर सुझाव दिये। जिनमें उत्तराखंड जर्नलिस्ट फोरम के अध्यक्ष सुनील नेगी, बीजेपी मयूर विहार के जिलाध्यक्ष विनोद बछेती, गढ़वाल हितेशणी सभा के अध्यक्ष अजय बिष्ट, पवन मैठाणी, धीरेन्द्र प्रताप, संयोगिता ध्यानी अदि ने कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए।

सबसे पहले पॉइंट यह था कि इस मामले में रिव्यू पेटिशन डालकर इस केस को दुबारा ओपन किया जाये। दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा यह था कि अब जब कि तीनों आरोपी बरी हो चुके हैं और जैसा कि पीड़िता के माता पिता का कहना है कि आरोपियों ने उनको पहले ही जान से मारने की धमकी दी थी। तो अब उनके परिवार को सुरक्षा कौन देगा। इसके अलावा एक और सुझाव था कि इस मुद्दे को देश का मुद्दा बनाया जाये न कि उत्तराखंड का। ज्यादातर लोगों ने कहा कि इस मुद्दे को पहाड़ या उत्तराखंड की बेटी बोलकर सीमित ना किया जाये बल्कि इस मुद्दे को अब देश की बेटी बनाकर एक बड़ा आन्दोलन बनाकर चलाने की जरुरत है।

जिसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट बार असोसिएशन के सेक्रेटरी एडवोकेट संदीप शर्मा की अध्यक्षता में एक लीगल कमेटी बनाई गयी है। इसमें कौन कौन सदस्य होंगे इसका फैलसा जल्दी ही लिया जायेगा। यह कमेटी सुप्रीम कोर्ट के कल दिए गए फैसले की रिव्यू पेटिशन डालेगी।

बैठक के दौरान लोगों का कहना था कि 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली का निर्भया कांड भी इसी तरह का था। परन्तु जब वह देश का मुद्दा बना तो करीब 7 साल बाद तीनों आरोपियों को फांसी की सजा मिली। और नजफ़गढ़ की निर्भया के केस में 10 साल बाद आरोपी बरी कर दिए गए।

लोगों का यह भी कहना था कि केस हमारे देश की न्याय प्रणाली पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा रहा है। लोगों का कहना है कि कोर्ट से ज्यादातर मामलों में फांसी की सजा तब मिलती है जब अपराध रेयर ऑफ़ रेयरेस्ट की श्रेणी में आता हो। और नजफ़गढ़ की निर्भया के केस में निचली अदालतों (जिला कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट) ने इस केस को भी रेयर ऑफ़ रेयरेस्ट की श्रेणी का मानते हुए आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी। जाहिर सी बात है कि कोर्ट ने आरोपियों के इबाले जुर्म वाले बयान भी लिए ही होंगे। तो फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को 8 साल तक लटकाने के बाद इन आरोपियों को कैसे बरी कर दिया, अगर सुप्रीम कोर्ट को यह मामला फांसी की सजा के लायक नहीं लग रहा था तो कम से कम उम्र कैद तो दी होती। लोगों का कहना है कि या तो निचली अदालतों का फैसला गलत था, या फिर सुप्रीम कोर्ट का फैसला गलत है। पर कुल मिलाकर यह पूरी न्याय पालिका पर सवाल खड़े करने जैसा है।

बैठक में दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के महासचिव एडवोकेट संदीप शर्मा, जगदीश ममंगई, डॉ.विनोद बछेती, अजय बिष्ट, पवन कुमार मैठाणी, महावीर सिंह राणा, देवेन्द्र जोशी, रामचन्द्र सिंह भण्डारी, प्रकाश जोशी, लक्ष्मण सिंह रावत,  बृजमोहन उप्रेती, उदय सिंह नेगी,  कुसुम कंडवाल भट्ट, दिगमोहन सिंह नेगी, हरीश असवाल, हरीश अवस्थी, अनिल पंत, मनवर सिंह रावत, चारू तिवारी, वी.एन. शर्मा, सतेंद्र रावत, सुनील नेगी, टीएस भंडारी, देवेन्द्र बिष्ट, ललित ढौंडियाल, सुधीश नेगी, राजिंदर चौहान, खुशाल सिंह बिष्ट, लक्ष्मी नेगी, वीना नयाल, रोशनी चमोली, रेनू जखमोला उनियाल, कुसुम बिष्ट, गीता गुसाईं, लक्ष्मी नेगी, सरिता रावत, प्रेमा धोनी, एसएन शर्मा, पत्रकार, कलाकार, रंगकर्मी, महिला, युवा शक्ति आदि बड़ी संख्या में शामिल हुए।