श्रीनगर गढ़वाल: हिंदी दिवस एवं साहित्य के सूर्य स्व. चंद्र कुंवर बर्त्वाल की पुण्यतिथि के अवसर पर हिमालयन साहित्य एवं कला परिषद्, श्रीनगर गढ़वाल द्वारा एक भव्य साहित्यिक आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. उमा मैठाणी ने की, जिसमें क्षेत्र के प्रतिष्ठित मनीषियों, लेखकों, कवियों, रचनाकारों एवं बुद्धिजीवियों ने उत्साहपूर्वक सहभागिता की।

आयोजन का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन एवं वेद मंत्रों, श्लोकों के उच्चारण के साथ हुआ। डॉ. प्रकाश चमोली, राजेन्द्र प्रसाद कपरवाण, प्रवेश चमोली आदि विद्वतजनों ने स्वास्ति वाचन, वेद मंत्रों, श्लोकों का उच्चारण कर परिवेश को आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण कर दिया।

डॉ. दीपक द्विवेदी ने हिंदी भाषा की महत्ता को रेखांकित करती रचना ‘भाषा का गौरव रचें योजित शब्द शटीक वर्ण, व्याकरण, भावक्रम, ध्वनियां तथा प्रतीक। ध्वनियां तथा प्रतीक गूंथें जीवन शैली में, संस्कृतियों का सार बोलियों की थैली में। का काव्य पाठ कर आयोजन का सात्विक शुभारंभ किया।

इसके बाद नीरज नैथानी ने हिंदी भाषा की वैश्विक उपादेयता और स्व. चंद्र कुंवर बर्त्वाल के जीवन व साहित्यिक यात्रा पर प्रकाश डाला।

डॉ. आर.पी. थपलियाल ने “मुझको पहाड़ ही प्यारे हैं” जैसी भावपूर्ण रचना प्रस्तुत कर वातावरण को साहित्यिक रसधारा से सराबोर किया। वहीं अशोक थपलियाल ने हिंदी पत्रकारिता के विभिन्न अनुभव साझा किए।

डॉ. विमला चमोला ने ”देवों की वाणी संस्कृत सबको प्यारी है। उसकी बेटी ही हिन्दी रामदुलारी है। ये सब भाषाऐं संविधान के गहने है। हिन्दी भाषा की सब बहनें हैं। मन के दक्षिण भावों सा उत्तर, उत्तर है। उत्तर का भी दक्षिण होना श्रेयस्कर है।” रचना प्रस्तुत कर हिंदी दिवस की सार्थकता को पुष्ट किया। मीनाक्षी चमोली ने हिंदी भाषा का गुणगान करतीं कविता सुनाई।

संस्था के वरिष्ठ संरक्षक कृष्णा नंद मैठाणी ने स्व० चंद्र कुंवर बर्त्वाल की जन्म स्थली, शैक्षणिक सोपानों, लखनऊ, इलाहाबाद,पांवलिया,मालकोटि आदि की महत्वपूर्ण गतिविधियों पर विचार प्रकट किए।

प्रो. उमा मैठाणी ने स्व. चंद्र कुंवर बर्त्वाल की स्मृति में स्थापित संस्था के कार्यों और अपने दस वर्षीय अनुभव साझा करते हुए हिंदी साहित्य की व्यापकता पर चर्चा की।

सतीश चन्द्र बहुगुणा ने अबोध बंधु बहुगुणा के हिंदी-गढ़वाली साहित्य पर प्रकाश डाला, जबकि प्रो. आर.एन. गैरोला ने राष्ट्र भाषा हिंदी की व्यापकता पर स्वरचित मुक्तक प्रस्तुत किए। पार्षद प्रवेश चमोली ने हिंदी साहित्य के विभिन्न युगों का संक्षिप्त उल्लेख किया। प्रो. सम्पूर्ण सिंह रावत ने साहित्यकारों की स्मृतियों को साझा किया।

प्रोफेसर सम्पूर्ण सिंह रावत ने वाणी विलास डबराल, शिव प्रसाद डबराल चारण, कर्मठ नेगी, हीरा बल्लभ थपलियाल आदि विभूतियों के लैंसडाउन प्रवास की गतिविधियों से जुड़ी स्मृतियां पटल पर प्रस्तुत कीं।

डॉ. प्रकाश चमोली ने गढ़वाली गीत प्रस्तुत किया, पीसी चक्रवर्ती  ने हिंदी दिवस के साथ ही चंद्र कुंवर बर्त्वाल के रचना संसार पर विस्तार से विचार रखे।

डॉ. कृष्ण उनियाल ने शाइनी कृष्ण उनियाल की रचना प्रस्तुत कर साहित्यिक संध्या को अविस्मरणीय बना दिया। आयोजन में कृष्ण बल्लभ थपलियाल, केशव प्रसाद काला, उम्मेद सिंह मेहरा समेत अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहे।