दिल्ली : कोरोना महामारी ने चलते देशभर में किये गए लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार गरीब एवं मध्यमवर्गीय परिवारों पर पड़ी है। बीते 70 दिन से ज्यादा समय से चल रहे लॉक डाउन के चलते लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं, तथा कई लोगों के काम धन्धे चौपट हो गए हैं। ज्यादातर मजदूरों व प्रवासी लोगों का दिल्ली/एनसीआर से पलायन हो चुका है क्योंकि बिना कामकाज के यहाँ परिवार चलाना उनके लिए संभव नहीं था। लेकिन जिनके उधोग धंधे यहीं पर है और उनका कारोबार दिल्ली/एनसीआर में ही फैला हुआ है, उनके लिए यह समय बेहद संकट भरा है। वे लोग अपने बिज़नस को बंद कर गाँव भी नहीं जा सकते हैं। इन्हीं में से कुछ पहाड़ी उत्पादों का स्टाल लगाकर बेचने वाले उत्तराखंड मूल के प्रवासी हैं जो यहाँ होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों, आयोजनों व मेलों में पर निर्भर रहते थे। यहीं से उनका गुजरा चलता था। परन्तु कोरोना का जो संकट इस समय देश में फैला हुआ है उसे देखकर लगता नहीं है कि अगले 6 महीनों में भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों, मेलों का आयोजन संभव हो पायेगा।
हालाँकि अभी सोशलडिस्टेंसिंग का पालन करते हुए कुछ हद तक ऑफिस/बाजारों को खोला जा रहा है। परन्तु अभी भी लोग डरे सहमे हुए हैं और कम ही लोग बाहर निकल रहे। कोरोना वायरस की दहशत इस कदर लोगों के दिमाग में घर कर गई है कि अगले 6 महीने बाद भी बाजारों में पहले जैसी रौनक नहीं होगी।
सुनिए अपनी पीड़ा को किस तरह से रखा है पहाड़ी फ्रेश संस्थान के एम एस रावत ने
पिछले 10 वर्षों से दिल्ली/एनसीआर में उत्तराखंड के उत्पादों के लिए मशहूर पहाड़ी फ्रेश संस्थान के मनवर सिंह रावत ने हमे अपनी पीड़ा बताई कि कैसे उनका पहाड़ से इकठ्ठा कर लाया हुआ लाखों का माल गोदामों में पड़ा हुआ है, और बिक्री न होने के कारण सड़ कर बर्बाद हो रहा है। उनका कहना है कि हमारी कहीं कोई सुनवाई नही हो रही। उनके साथ जुड़े दर्जनों कर्मचारी भी सड़क पर आ गए हैं। हम लोग कर्मचारियों को सैलरी भी नही दे पा रहे हैं। ज्यादातर लोग गांव चले गए लेकिन हम लोग कैसे लाखों का समान सड़ने के लिए छोड़कर कैसे गाँव चले जाएँ। इस लॉकडाउन में हमारी कमाई का कोई और साधन नही है, परिवार का पालन पोषण करना बड़ा मुश्किल हो रहा है। हम लोग पहाड़ों से उत्पाद एकत्रित कर यहाँ लाते थे और यहाँ रह रहे प्रवासियों को अपने उत्तराखण्ड के स्वाद से रूबरू कराते थे। लेकिन लॉकडाउन में सरकारों की ओर से हम लोगों के बारे में नही सोचा गया। जो बड़े दुर्भाग्य की बात है। आखिर हम भी उत्तराखण्ड की संस्कृति, परम्पराओं को बचाने में अपनी भागीदारियों को बखूबी निभाते हैं।
एमएस रावत ने आगे कहा कि जिस प्रकार ठेली वाले, पटरी वाले, खोमचे वाले, सरकार की लिस्ट मे आते हैं, और सरकार उनके बारे में सोचती है। सरकार ने 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी। मै आपके माध्यम से सरकार से दर्ख्वास्त करता हूँ कि हमारी पहाड़ों की स्पेशियलिटी समान की दुकानें जो कि पिछले 22 मार्च से बंद हैं, उनकी ओर भी ध्यान दिया जाये।
हम पहाड़ों के ऑर्गेनिक उत्पादों (खाद्य पदार्थ) को पहाड़ के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर छोटे-छोटे किसानो से एकत्रित कर यहाँ रह रहे लोगों तक पहुचाते थे। इस लम्बी चेन में लोगों को रोजगार मिले के साथ-साथ स्वरोजगार को भी बढ़ावा मिल रहा था। परन्तु फिल्हाल तो सब चौपट होता दिखाई दे रहा है। हमने किराये पर गोदाम लेकर उसमे पहाड़ों से एकत्रित किया हुआ 3 महीने का समान रखा है। जो अब सड़ने लगा है। जिन समूहों से समान आया था, उनकी देनदारी बाकी है, ऊपर से गोदाम का किराया भी नहीं दे पा रहे हैं। पहाड़ी फ्रेश ने दर्जनों लोगों की आजीविका को फिर से खड़ा करने के लिए सरकार एवं समाज के लोगों से मदद की गुहार लगाई है।