डॉ. राजेंद्र कुकसाल।

बीस -तीस सालों से नवम्बर-दिसम्बर माह आते ही हर बर्ष विपणन की समस्या को लेकर माल्टा फल चर्चाओं में आ जाता है। कभी गढ़वाल एवं कुमाऊं मंडल विकास निगम द्वारा माल्टा बेचने की बात हुई, कभी तिलवाड़ा जनपद रुद्रप्रयाग में गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा माल्टा फल के प्रोसेसिंग की बात, कभी मटैला अल्मोड़ा में कोल्ड स्टोरेज की बात, तो कभी किसानों को कलेक्स सेन्टर पर पहुंचाने पर 7-8-9 रुपये प्रतिकिलो समर्थन मूल्य देने की बात और अब उत्तराखंड के माल्टा से गोवा में बनेगी बाइन, माल्टा को जीआई टैग आदि इतने सारे  सरकारों के प्रयास से इस बर्ष भी माल्टा उत्पादकों के चेहरे अच्छे भाव न मिल पाने के कारण उदास है। सरकारों की कोई दीर्घकालिक योजना न होने के कारण माल्टा उत्पादक हतास व निराश हैं।

एक रिपोर्ट

उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में 1000 मीटर से 2000 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थानों में माल्टा के बाग देखने को मिलते हैं। उद्यान विभाग के बर्ष 2019-20 के फल उत्पादन के आंकड़ों के अनुसार राज्य में नीम्बू वर्गीय फल (माल्टा संतरा, नींबू आदि) के उत्पादन के अन्तर्गत कुल 21739 हैक्टेयर क्षेत्र फल है. जिससे 91177 मैट्रिक टन का उत्पादन होता है। अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग,  जनपदों में माल्टा का उत्पादन अधिक होता है।

माल्टा खट्टा-मीठा रसीला फल है जो पौष्टिक व स्वास्थ्यवर्धक  है। माल्टा फल औषधीय गुणों से भरपूर है, इसमें विटामिन-सी प्रचुर मात्रा में पाई जाती है, इसमें एंटीसेप्टिक, एण्टी आक्सीडेट गुणों के साथ साथ यह शरीर को डी टोक्स करने में भी मदद करता है। माल्टा रोग प्रतिरोधी फल है, इसमें प्रोटीन, आयरन, फाइबर और विटामिन भरपूर मात्रा में पाया जाता है, इसलिए इसका सेवन इम्यूनिटी को मजबूत करता है,  साथ ही सर्दी, खांसी और जुकाम होने पर इसका सेवन लाभदायी होता है। माल्टा का छिलका सौन्दर्य प्रसाधन में उपयोग किया जाता है। माल्टा के फल, छिलके, रस और बीज के तेल से कई तरह की दवाएं बनाई जाती हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में रसायनिक खादों व दवाओं का प्रयोग कम किया जाता है. इस प्रकार यहां का उत्पादित माल्टा विशुद्ध रूप जैविक होता है।

माल्टा फल में इतने सारे स्वास्थ्यवर्धक व औषधीय गुण होने के बावजूद माल्टा उत्पादकों को इसका उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। राज्य सरकार द्वारा इस बर्ष माल्टा का समर्थन मूल्य Minimum Support Price ( MSP) निर्धारित किया गया है।  परन्तु इस दर पर किसान सरकार द्वारा बनाए गए कलेक्शन सेंटरों तक माल्टा फल लाने को तैयार नहीं है। अधिकतर माल्टा फल विगत वर्षों की भांति पेड़ों से गिर कर वहीं सड़ रहे हैं।

इस बर्ष माल्टा को भौगोलिक संकेतांक Geographical Identification (GI Tag) मिला है। इससे राज्य में उत्पादित माल्टा की वैश्विक पहचान मिलेगी। जिससे बाजार में यहां के उत्पादित माल्टा की मांग बढ़ने के अवसर बढ सकते हैं।

सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम उन्नयन योजना (पीएम एफएवाई)। योजना शुरू की गई है। इस योजना के तहत व्यक्तिगत, स्वयं सहायता समूह और एफपीओ को सूक्ष्म खाद्य उद्यमों के लिए 35 प्रतिशत अधिकतम 10 लाख रुपये की सब्सिडी प्रदान की जाती है। कई युवाओं द्वारा इस योजना का लाभ लिया जा रहा है तथा माल्टा फलों का प्रोसेसिंग किया जा रहा है।

वोकल फौर लोकल का आह्वान मई 2020 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश के नागरिकों से किया गया था। यह स्थानीय रूप से उत्पादित व निर्मित उत्पादों को बढ़ावा देने और उपयोग करने का एक आह्वान है, जिससे घरेलू व स्थानीय अर्थव्यवस्था को समर्थन मिलता है। वोकल फॉर लोकल के पीछे का विचार स्थानीय व्यवसायों को बढ़ावा देना, रोजगार के अवसर पैदा करना और आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करना है।

वोकल फॉर लोकल या लोकल के लिए वोकल को सफल बनाने के लिए  सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक स्थानीय स्तर पर बने उत्पादों एवं उत्पादन की गुणवत्ता है। यदि स्थानीय उत्पाद घटिया गुणवत्ता के होंगे तो लोग उन्हें नहीं खरीदेंगे। इसलिए, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि स्थानीय उत्पाद या उत्पादन आयातित या अन्य जगहों के स्थानीय बाजार में बिकने वाले उत्पादों के समान गुणवत्ता वाले हों।

इसी मौसम नवंबर दिसंबर में बाजार में वाहरी राज्यों पंजाब, हिमाचल से किन्नू व संतरे फल आने के कारण यहां उत्पादित माल्टा फल की मांग कम रहतीहै। जिस कारण पहाड़ों में उत्पादित माल्टा अच्छे दामों में नहीं बिक पाता। किन्नू फल जो कि किंग और विल्लो लीफ के संकरण से तैयार की गई संतरे की किस्म है, इसके फल आसानी से छीले जा सकते हैं। फल ज्यादा मीठा व रसीला होने के साथ ही बीज कम होते हैं, फल अच्छी गुणवत्ता के कारण बाजार में इसको उचित दाम याने 80 – 100 रुपए प्रति किलो तक मिल जाते हैं, इसी प्रकार संतरा भी अच्छे दामों पर बिकता है।

माल्टा की उन्नत किस्में  माल्टा व्लडरेड, जाफा, वासिंगटन नेवल, पाइन एपिल, वैलैन्सिया लेट आदि हैं। उत्तराखंड में उत्पादित अधिकतर माल्टा की कोई किस्म नहीं है। यह माल्टा कामन के नाम से प्रचलित है। यहां के उत्पादित माल्टा के अधिकतर फल आकार में छोटे, कम मीठे, खट्टे तथा अधिक बीज वाले होते हैं। माल्टा फल का उपयोग धूप में बैठ कर पिसा हुआ नमक मिलाकर किया जाता है।

माल्टे के पौधे आसानी से उत्पादित हो जाते हैं। क्योंकि इनका बीज आसानी से स्थानीय प्रोसेसिंग यूनिटों में मुफ्त में या कम दामों पर उपलब्ध हो जाता है। संतरे में बीज कम होते हैं तथा इसके बीज उपलब्ध नहीं हो पाते। अस्सी के दशक तक पहाड़ी जनपदों में नारंगी, संतरा का अच्छा उत्पादन होता था। उद्यान विभाग की उदासीनता से आज नारंगी के पुराने बाग समाप्त हो गये हैं, नये बाग विकसित नहीं हो पाये। उत्पादित नारंगी की बिक्री की कोई समस्या नहीं है। यह स्थानीय बाजार में ही अच्छे दामों पर बिक जाती है।

कहने का अभिप्राय यह है कि उद्यान विभाग द्वारा विगत कई वर्षों से योजनाओं में निम्नस्तर की माल्टा फल पौध बांटने का यह असर है। कभी कभी तो संतरे की पौध के नाम पर योजनाओं में माल्टे की ही पौध बांट दी जाती है। जिसका असर यह हुआ कि संतरे के बाग धीरे-धीरे कम होने लगे और माल्टा अधिक होने लगा।

राज्य के पास फल उत्पादन के सही, वास्तविक आंकड़े ही नहीं है। बिना वास्तविक सही आंकड़ों के सही नियोजन की बात करना बेमानी है। विभागीय फल उत्पादन के बर्ष 2015 -16 के आंकड़ों के अनुसार पौड़ी जनपद, जिसको एक जनपद एक उत्पाद के अन्तर्गत नीम्बू वर्गीय फलों के अन्तर्गत चुना गया है, 2700.00 हैक्टेयर क्षेत्र फल में 5545.00 मैट्रिक टन उत्पादन दर्शाया गया है. जबकि पलायन आयोग की बर्ष 2016-17 की रिपोर्ट के अनुसार नीम्बूवर्गीय फल 831.06 हैक्टेयर क्षेत्र फल में 4710.00 मैट्रिक टन ही उत्पादन दर्शाया गया है। याने विभागीय आंकड़ों से 4714.00 हैक्टेयर कम  यही हाल सभी जनपदों का है।

सुझाव –

  1. उत्पादित माल्टा का समर्थन मूल्य बढ़ाया जाय। वर्तमान में कम दरों पर माल्टा उत्पादक कलैक्शन सैन्टर तक माल्टा पहुंचाने में असमर्थ हैं।
  2. राज्य में कई संगठन व संस्थाएं अच्छा कार्य कर रहे हैं, 2021में मुझे हिलांस फल प्रसंस्करण ग्रोथ सेन्टर कनालीछीना पिथौरागढ़ केन्द्र “ध्वज आजीविका स्वायत्त सहकारिता कनालीछीना पिथौरागढ़” को अवलोकन करने का अवसर मिला यह संस्थान,एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना (ILSP) के तकनीकी सहयोग से चलाया जा रहा है। इस केन्द्र पर जनपद में हर मौसम में उत्पादित स्थानीय फलों जैसे माल्टा, बीजू आम,बीजू आंवला के साथ-साथ बुरांस एवं लिंगुडा का भी प्रोसेसिंग किया जाता है । इनसे कई तरह के पेय एवं अचार के साथ ही विभिन्न संस्थाओं एवं कम्पनियों के लिए पल्प की भी आपूर्ति की जाती है। इस केन्द्र द्वारा हर मौसम के जनपद में उत्पादित फलों का प्रसंस्करण इस मौसम में (नवम्बर दिसम्बर) जहां अन्य जनपदों में माल्टा को बाजार न मिलने की चर्चाएं हैं वहीं “ध्वज आजीविका स्वायत्त सहकारिता कनालीछीना पिथौरागढ़”आस पास क्षेत्र के सभी स्थानीय फल उचित दामों में क्रय कर प्रोसेसिंग कर कई लोगों को स्थाई रोजगार के साथ ही समूह से जुड़े सभी सदस्यों को आत्मनिर्भर बना रहा है इसी की तर्ज पर राज्य में अवस्थित राजकीय फल संरक्षण केन्द्रों से कार्य लिया जा सकता है।
  3. अच्छी गुणवत्ता वाली पौध हेतु राज्य में अच्छी गुणवत्ता युक्त नीम्बूवर्गीय पौधों के बीजों से न्यूसेलर सीडलिंग के पौधों का उत्पादन कर योजनाओं में वितरण किया जाय। अधिकांश सिट्रस प्रजातियां बहुभ्रूणी होती हैं अर्थात जिनमें एक बीज से 2 – 3 या अधिक भ्रूण निकलते हैं। इनमें से केवल एक लैंगिक भ्रूण होता है बाकी सभी दूसरे भ्रूण न्यूसेलस की कोशिकाओं से बनते हैं इन्हें न्यूसेलर सीडलिंग कहा जाता है। अनुवांशिकी रूप से ये मातृ वृक्ष के ही समान होते हैं।
  4. कृषि विज्ञान केन्द्र जाखधार रुद्रप्रयाग के बैज्ञानिकों द्वारा माल्टा व नारंगी के न्यूसेलर सीडलिंग वाले पौधे तैयार किए जाते हैं यह प्रयास अन्य कृषि विज्ञान केन्द्रों राजकीय उद्यानों एवं स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा भी किया जा सकता है।
  5. माल्टा फलों को गर्मियों तक सुरक्षित रखने हेतु माल्टा उत्पादित ऊंचे, ठडें छाया दार स्थानों में सस्ती टैक्नोलॉजी वाले कूल हाउसों का निर्माण कराया जा सकता है।
  6. हर बर्ष एक करोड़ यात्री व पर्यटक उत्तराखंड में अप्रेल से लेकर अगस्त – सितंबर तक भ्रमण पर आते हैं उस समय अधिकतर यात्रा रूट्स में कोई भी स्थानीय फल नहीं दिखाई देता,माल्टा के स्थान पर गर्मियों व बर्षात के मौसम में तैयार होने वाले फलों, आडू प्लम खुवानी आदि का रोपण सेब मिशन योजना की तरह करवाने के प्रयास होने चाहिए। नैनीताल व रामगढ़ क्षेत्रों में स्टोन फ्रुट्स (आड़ू प्लम खुवानी) का स्थानीय लोगों के प्रयास से अच्छा उत्पादन हो रहा है व इससे फल उत्पादक पर्यटकों को बेचकर अच्छी आय भी अर्जित कर रहे हैं।

डॉ. राजेंद्र कुकसाल।

मो ० 9456590999