seeta mata mandir Phalaswadi Sitonsyun Patti

पौड़ी : पौड़ी गढ़वाल के कोट ब्लॉक के अंतर्गत सितोनस्यूं पट्टी के फलस्वाड़ी गाँव स्थित पौराणिक सीता माता मंदिर में आगामी 13 नवंबर द्वादशी के दिन मंसार मेला आयोजित होना निश्चित हुआ है. गौरतलब है कि फलस्वाड़ी गॉंव मे हर साल मंगसीर माह की द्वादशी तिथि को मंसार मेला मनाया जाता है। मेले के दिन देवल मंदिर से ढोल दमाऊ, भंकोर आदि वाद्य यंत्रों के साथ देव यात्रा निकलती है। मान्यता है कि सीता माता ने एक समय फलस्वाड़ी गॉंव मे निवास किया था। यह मेला उनकी याद में मनाया जाता है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार मां सीता का फलसाड़ी में मायका, देवल में ससुराल और कोटसाड़ा में ननिहाल माना जाता है। मां सीता के नाम से ही ब्लाक कोट की सितोन्स्यूं पट्टी का नामकरण किया गया।
मान्यता है कि जिस दिन मेले का आयोजन होता है, उस दिन फलसाड़ी गांव के किसी व्यक्ति के सपने सीता माता दर्शन देती है, और उन्हें अपने स्वरूप के बारे में बताती है। दूसरे दिन जिस खेत में मां सीता का पत्थर निकलता है, उस दिन खेत की दीवार पर पीपल का पेड़ उगता है. और उसके पत्तों पर ओंस की बूंदे रहती हैं। इसके बाद देवल गांव से निशान ढोल दमाऊं के साथ निकलते है, और देवल मंदिर से मां सीता के जयजय कारा होता है। फलसाड़ी गांव में निशांन पहुंचने के बाद के खेत में खुदाई होती है। जहा मां सीता का एक पत्थर निकलता है। जिसके दर्शन का लोग बेसर्बी से इंतजार करते हैं। दर्शन करने के बाद श्रद्धालु बबलू का रेशे छिनते हैं
और इसे प्रसाद के रूप में स्वीकार करते हैं। फलस्वाड़ी गाँव के दांयी तरफ गदेरे के पार बना गुम्बदनुमा मंदिर बाल्मीकि मंदिर है और इसका काल लगभग सातवीं सदी बताया जाता है!

फलस्वाड़ी गाँव में सीता के धरती में समाने से सम्बन्धित जो कहानी सामने आती है वह यह है कि यहीं पर राजा राम के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को लव और कुश ने पकड़ लिया था और राजा राम की सेना को परास्त कर स्वंय राम को यहां आने के लिए विवश कर दिया था। जब राजा राम अपने घोड़े को छुड़ाने यहां आये तो लव और कुश उनसे काफी तर्क-वितर्क करने लगे। कहते हैं कि बात को बढ़ता देख सीता माता ने लव-कुश से कहा कि बेटा यही श्री राम हैं और ये तुम्हारे पिता हैं। सीता की बात सुनकर लव-कुश तो मान गये कि श्री राम हमारे पिता हैं। लेकिन श्री राम को फिर भी शंका हुई कि ये दोनो बालक मेरे ही पुत्र हैं। बाल्मीकि ऋर्षि के समझाने पर भी जब श्री राम को विश्वास नही हुआ तो श्री राम ने सीता माता को पुन: प्रमाण देने के लिए कहा। सीता माता ने धरती माता से विनती की कि हे… धरती माता मैं जिन्दगी भर मुसीबतों का सामना करते हुए अपने पतिव्रता धर्म को निभा रही हूँ आज तो मुझे राज महलों में होना चाहिए था लेकिन मैं तपोवन में इन श्री राम की धरोहर इन बच्चों का पालन पोषण कर रही हूँ। मैं जब रावण की कैद में थी तो तब श्री राम ने मेरे सतीत्व की अग्नि परीक्षा ली थी लेकिन आज फिर श्री राम को मुझपर विश्वास नही हो रहा है। इसलिए हे माता अब मेरे पास प्रमाण देने के सिवाय कुछ भी बाकी नहीं रह गया है। यदि मैं सच्ची पतिव्रता धर्म निभा रही हूँ तो अब आप मुझे अपनी गोद में ले लीजिये। बस फिर क्या था अचानक जोरदार आवाज के से साथ धरती फट गई और सीता माता खड़े-खड़े पृथ्वी में धंसने लगी रामचन्द्र जी ने सीता जी को ऊपर खींचने की कोशिश की लेकिन उनके हाथ सिर्फ सीता जी के बाल ही आये । तब से अब तक यहां पर सीता जी की मन इच्छा पूर्ति के कारण मनसार का मेला लगता है।