उत्तराखंड में मुख्यमंत्री एवं मुख्यमंत्री आवास से जुड़े दो मिथक हैं। जो लम्बे समय से चले आ रहे हैं। पहला मिथक तो यह है कि अलग उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से अब तक करीब के 20 साल के सफर में राज्य में नौ मुख्यमंत्री बने हैं, लेकिन संयोग ही रहा कि स्व. नारायण दत्त तिवारी के अलावा किसी भी मुख्यमंत्री ने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया।
दूसरा मिथक है न्यू कैंट रोड स्थित मुख्यमंत्री आवास, जो भी मुख्यमंत्री इस नए आवास में रहने आया, वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ज्यादा दिन टिक नहीं पाया। इस आवास में रहते हुए पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशक और विजय बहुगुणा की सत्ता बीच में ही चली गई। विजय बहुगुणा के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हरीश रावत ने तो इस आवास की तरफ देखा तक नहीं, लेकिन त्रिवेंद्र रावत इस घर में निवास करने आए और 4 साल पूरे करने की तरफ बढ़ ही रहे थे कि उनकी भी कुर्सी चली गई।
इस नए भवन का निर्माण पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने शुरू करवाया था। परन्तु उनके 5 साल का कार्यकाल पूरा होने तक यह भवन बनकर तैयार नहीं हुआ था। जिसके चलते उन्हें इस आवास में निवास करने का अवसर नहीं मिला पाया। इस अवास का निर्माण और शुभारम्भ एनडी तिवारी के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री बने भुवन चंद्र खंडूड़ी ने किया था। कहा जाता है कि तभी से यहाँ निवास करने वाले मुख्यमंत्री अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाते हैं।
एनडी तिवारी 2002 से 2007 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे। उनके बाद 07 मार्च 2007 को उत्तराखंड में बीजेपी की ओर से भुवन चंद्र खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया गया। खंडूड़ी का कार्यकाल महज दो साल चार महीने के करीब ही चला। भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व ने 27 जून 2009 में खंडूड़ी की जगह पर रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया गया था। निशंक मुख्यमंत्री के तौर पर अपना कार्यकाल 10 सितंबर 2011 तक महज सवा दो साल ही पूरा कर पाए थे कि उनकी जगह पर वापस भुवन चंद्र खंडूड़ी को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बना दिया गया। खंडूड़ी का यह कार्यकाल महज छह महीने का ही रहा।
2012 में जब तीसरी बार विधानसभा का चुनाव हुआ, तो कांग्रेस सत्ता में आई और कांग्रेस ने कद्दावर नेता विजय बहुगुणा को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया। कांग्रेस में भी पार्टी के अंदर का सत्ता संघर्ष खुलकर सामने आया और 2013 की आपदा के बाद विजय बहुगुणा को भी कुर्सी गंवानी पड़ी।
विजय बहुगुणा के बाद हरीश रावत को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। परन्तु उनके लिए भी यह पद मुश्किलों भरा रहा। उनकी पार्टी के नौ मंत्री और विधायक बगावत कर गए। उत्तराखंड को राष्ट्रपति शासन का दंश झेलना पड़ा। रावत कोर्ट की बदौलत अपना कार्यकाल पूरा कर पाए लेकिन खुलकर शासन करना उनके लिए भी संभव नहीं हो पाया। और अब त्रिवेंद्र सिंह रावत के बतौर मुख्यमंत्री चार साल पूरे होने में नौ दिन बचे थे कि उनकी भी कुर्सी चली गई। और एक बार फिर नए मुख्यमंत्री की तलाश शुरू हो गई है।
उत्तराखंड का अगला मुख्यमंत्री कौन बनेगा? इसके लिए आप लोगों को कल तक इंतजार करना पड़ेगा। अभी फिलहाल चर्चाओं का बाजार गर्म है।
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