पौड़ी :उत्तराखंड अलग राज्य बने हुए करीब 22 साल हो चुके हैं। राज्य पूर्ण रूप से यौन अवस्था मे आ गया है। लेकिन जिस मकसद से राज्य की मांग की गयी थी, कि पहाड़ के गांवों का विकास होगा, कृषि में आमदनी दुगनी होगी, कई सपने संजोए थे, लेकिन दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियाँ कांग्रेस और भाजपा बारी-बारी से सत्ता सुख भोगती गयी और इस पहाड़ी राज्य की समस्याएं पहले से बत्तर हो गयी।
आज हम बात कर रहे हैं, पौड़ी विधानसभा की पट्टी मनियारस्यूं के ग्राम बुटली की। जो इस क्षेत्र में खेती के लिए जाना जाता था। परन्तु यहाँ से ज्यादातर पलायन मूलभूत समस्या पानी की कमी के चलते हुआ। गांव के नजदीक 30 करोड़ की लागत से बनी चिनवाड़ी डांडा पेयजल पम्पिंग योजना भी ग्रामीणों की प्यास नही बुझा सकी। गांव में आज भी पीने के पानी का प्राकृतिक जल स्रोत ही सहारा है। जिसमे गर्मी के दिनों में पानी काफी कम हो जाता है। और उससे भी बड़ी समस्या यह है कि यह स्रोत गांव से करीब दो मील नीचे है, जहाँ से खड़ी चढ़ाई पर पानी का बर्तन भर कर लाना सबके बस की बात नहीं होती। यही कारण है कि अब बड़े बुर्जर्ग भी गांव से पलायन कर कोटद्वार, देहरादून, दिल्ली, चंडीगढ़ आदि शहरों में रहने को मजबूर हो गए हैं।
हालाँकि अब भी इस गाँव में कुछ गिन चुने लोग रह रहे हैं। इस गाँव के एक युवा गौतम रावत लॉकडाउन में गांव आए थे, तब से वह गांव में ही है। इसके अलावा परमानंद हैं जो बकरी पालक है। वही गांव के भेड़ पालक विक्रम सिंह कहना है कि मैं तो बकरी और भेड़ पालकर अपना परिवार का भरण पोषण करता हूँ। कोई सरकार आए जाये उन पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। एक अन्य युवा आशीष गुसाई का कहना है कि युवाओं के लिए गांव में मनरेगा के मात्र 100 दिन के अलावा कोई रोजगार नही है। चुनाव के दौरान गाँव में नेता आते हैं और जो हम मांग करते उन पर बड़े बड़े वादे करके चले जाते हैं। और जीतने के बाद दुबारा कभी गांव की सुध नही लेते है। तीसरा विकल्प न होने से दोनो दल बारी-बारी से हमारे मत का लाभ उठा लेते है। जिस कारण एक बार भाजपा एक बार कांग्रेस को लोग वोट दे देते है। हालाँकि कुछ का कहना था कि इस बार इन दो बड़ी पार्टियों के अलावा उत्तराखंड क्रांति दल, आम आदमी पार्टी तथा कई निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में हैं। अब देखना होगा कि लोगों का रुख किस तरफ रहता है।
जगमोहन डांगी की रिपोर्ट