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पौड़ी : कोरोना संकट काल में पहाड़ लौटे प्रवासियों को पहाड़ में ही रोकने तथा राज्य से बाहर जा चुके अन्य लोगों को रिवर्स पलायन हेतु प्रेरित करने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा बड़े-बड़े दावे किये जा रहे हैं। परन्तु हकीकत यह है कि पहाड़ी क्षेत्रों के ज्यादातर गांवों में आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में लोग अस्पताल पहुँचने से पहले ही दम तोड़ जाते हैं। अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं के बिना आखिर कैसे साकार होगा पहाड़ में रिवर्स पलायन का सपना या एक बड़ा सवाल है जिसका जवाब प्रदेश सरकार को सबसे पहले खोजना होगा। अन्यथा सरकार रिवर्स पलायन का सपना मात्र सपना ही बनकर रह जायेगा।

पहाड़ों में स्वास्थ्य एवं सड़क सुविधाओं के अभाव में किस तरह लोग रस्ते में ही दम तोड़ देते हैं इसका ताजा उदहारण अभी दो दिन पहले ही 17 अगस्त को पौड़ी जनपद के कल्जीखाल विकासखण्ड की थनगढ घाटी स्थित ग्राम किसमोलिया में देखने को मिला। वैसे तो सड़क और अन्य सुविधाओं के अभाव में इस गाँव के ज्यादातर लोग पहले ही गाँव से पलायन कर चुके हैं। लेकिन इसी गांव के रिटायर्ड ऑनरी कैप्टन व वर्तमान ग्राम सभा थनुल के प्रधान नरेन्द्र सिंह नेगी ने यहाँ वर्षों से बंजर पड़े खेतों को अबाद कर गाँव के अन्य लोगों को भी वापस गाँव लौटकर खेती करने के लिए प्रेरित किया। जिसके चलते गाँव के ही सेवा निवृत्त बैंक कर्मी श्रीचन्द राणा भी गांव में मकान बनाकर रहने लगे। वैसे कोरोना संकट काल में इन दिनों कई प्रवासी गाँव पहुंचे हैं।

इसबीच बीते 17 अगस्त को श्रीचन्द राणा की गाँव में अचानक तबियत खराब हो गई। स्वास्थ्य एवं सड़क सुविधाओं के अभाव में गाँव के युवाओं ने उन्हें कंधों में बिठाकर सड़क तक पहुँचाया। जिसके बाद उन्हें सड़क मार्ग से सतपुली (चमोलीसैण) हंस अस्पताल ले जाया गया जहाँ से प्राथमिक उपचार एवं जांच के बाद उन्हें कोटद्वार रैफर किया गया। इस बीच उनके लड़के जोकि दिल्ली में रहते हैं, उन्हें लेने कोटद्वार आए। परन्तु कोविड-19 के नियमों के कारण उन्हें कोटद्वार सीमा पर ही रुकना पड़ा। इधरजिसके बाद गांव के युवाओं ने  बीमार बुजुर्ग को दिल्ली के लिए कोटद्वार सीमा पर उनके पुत्रो को सुपर्त किया। परन्तु दुर्भाग्यवश बुजुर्ग श्रीचन्द राणा ने दिल्ली जाते वक्त मेरठ के पास रास्ते में ही दम तोड़ दिया।  पहाड़ो में सड़क एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में वक्त पर इलाज न मिलने के चलते अक्सर ऐसे ही कई लोग असमय मौत के मुहं में पहुँच जाते हैं। इस तरह की घटनाएँ सरकार के रिवर्स पलायन को लेकर किये जा रहे दावों पर सवालिया निशान खड़े करती हैं।

जगमोहन डांगी जीरो ग्राउंड से