moti bagh

पौड़ी गढ़वाल:  कृषि पंड़ित विद्यादत्त शर्मा की खेती-किसानी की कहानी विश्व पटल पर छा गई है। एक साधारण व्यक्ति की असाधारण श्रम-साधना पर बनी डॉक्यूमेंट्री ’’मोतीबाग’’ को केरल में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय शार्ट फिल्म समारोह में प्रथम स्थान मिला है। गांव के किसान की कहानी को मुकाम देने वाले निर्देशक निर्मलचंद्र डंडरियाल ने गढ़वाल मुख्यालय में डॉक्यूमेंट्र्री की स्क्रीनिंग की। डॉक्यूमेंट्री निर्माण में तीन बार के राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता निर्मलचंद्र की डॉक्यूमेंट्र्री मोतीबाग को उपस्थित खास दर्शक दीर्द्या ने खूब सराहा। पलायन, पर्यावरण, खेती-किसानी, श्रम साधना की महत्ता और वर्तमान व्यवस्था पर चोट करती डॉक्यूमेंट्री एक आम किसान के इर्द-गिर्द घटते घटनाक्रम की जीवंत कहानी है। पौड़ी जनपद कल्जीखाल ब्लाक की असवालस्यूं पट्टी के सांगुड़ा गांव में बर्ष 1967 को स्थापित उद्यान मोतीबाग के माध्यम से निर्देशक ने  समाज को एक 83 बर्षीय बुजुर्ग किसान विद्यादत्त शर्मा उनियाल के माध्यम से संदेश देने की कोशिश की है कि श्रम और संकल्प की प्रतिबद्धता तमाम विपरीत परस्थितियों को परास्त कर सकती है।

बयोबृद्ध किसान विद्यादत्त शर्मा ने साबित किया है कि पलायन की मार झेल रहे पहाड़ो पर हरियाली लौटाई जा सकती है। कागजों में विकास के झंडे गाढ़ रही धरती को हकीकत में लहलहाया जा सकता है, सरसब्ज किया जा सकता है। निर्देशक ने कृषक विद्यादत्त शर्मा और आम ग्रामीणों की जुबानी गांव की वर्तमान दशा और दिशा का जीवंत प्रदर्शन डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से किया है। पौड़ी मुख्यालय से मात्र 30 किलोमीटर दूर स्थित मोतीबाग पर बनी यह डॉक्यूमेंट्री एक स्वावलंबी किसान के माध्यम से सरकार और व्यवस्था के सामने भी सवाल खड़ी करती है कि एक 83 बर्षीय बृद्ध अपनी श्रम साधना से समाज का मार्गदर्श्ान कर सकती है उन्हें श्रम करने के लिए प्रेरित कर सकती है तो सरकारी योजनाएं आखिर क्यों फाइलों में दम तोड़ रही हैं। डॉक्यूमेंट्री में गढ़वाल में नेपाली मजदूरों पर आश्रित व्यवस्था, पलायन रोकने के लिए छितरी खेती को एकमुश्त समेटने, वर्तमान भौतिकवादी मानसिकता, महिलाओं की गांव-समाज से विमुखता, श्रम-साधना से स्वस्थ जीवन की अवधारणा, पर्यावरण, जैविक खेती की महत्ता को संजीदगी से प्रस्तुत किया गया है।

एसएसबी के डीआईजी उपेंद्र बलोदी ने भी डॉक्यूमेंट्री के विमर्श में कहा कि हां गढ़वाल की धरती सोना उगल सकती है, उजड़ते गांव को बसाया जा सकता है उसके लिए आवश्यकता है बुजुर्ग किसान विद्यादत्त शर्मा जैसी संकल्पशक्ति की उनके जैसे जीवट व्यक्तित्व की और नौकर बनने की प्रवृत्ति त्यागकर श्रम-साधना के प्रति समर्पित होने की। पूर्व चीफ मुख्य वन संरक्षक राजेंद्र प्रसाद तंगवान ने कहा कि वाकई यह डॉक्यूमेंट्री नई पीढ़ी को स्वावलंबी बनने की प्रेरणा देती है। एक बृद्ध किसान उत्तराखण्ड राज्य की सरकार को झकझोरता है कि गांव के पलायन को रोका जा सकता है, प्रकृति की अकूत धरोहर राज्य के लिए बरदान साबित हो सकती है। साहित्यकार डॉ.अशोक पांडेय ने प्रदर्शित डॉक्यूमेंट्री मोतीबाग को उच्चकोटि की डॉक्यूमेंट्री बताते हुए कहा कि वे कुमायूं मंडल में कम से कम सौ क्षेत्रों में इस डॉक्यूमेंट्री का प्रदर्शन करवाएंगे। कहा कि डॉक्यूमेंट्री समाज को अपने कर्तव्यों और उन्हें स्वावलंबी बनने के लिए उद्धेलित करती है। स्क्रीनिंग के बाद आयोजित विमर्श में कई बुद्धिजीवियों ने अपने विचार रखे। प्रमोद रावत के संयोजन में हुई स्क्रीनिंग में मुख्य विकास अधिकारी दीप्ति सिंह व तमाम जिला स्तरीय अधिकारी, डॉक्यूमेंट्री के किरदार त्रिभुवन उनियाल, मंजु उनियाल, प्रणय उनियाल, पत्रकार अरविंद मुद्गल, पूर्व कर्मचारी नेता एसपी खर्कवाल, शिक्षाविद विमल बहुगुणा, सर्वेश उनियाल, राजकुमार पोरी, लोक गायक अनिल बिष्ट, निर्देशक गणेश बीरान, नागेंद्र बिष्ट, नमन चंदोला, नवीन भट्ट, जगमोहन डांगी आदि ने प्रतिभाग किया। संचालन गणेश खुगशाल गणी ने किया।

देवभूमिसंवाद.कॉम के लिए पौड़ी से जगमोहन डांगी की रिपोर्ट

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