पौड़ी: पद्मश्री से सम्मानित, प्रकृति प्रेमी व पर्यावरणविद शिक्षक कल्याण सिंह रावत द्वारा शुरू किये गए मैती आंदोलन से प्रेरित होकर लोग धीरे-धीरे इस आंदोलन से जुड़ रहे हैं।

इसी कड़ी में पौड़ी गढ़वाल में तमलाग गाँव के कवि गीतकार प्रदीप रावत खुदेड़ ने भी मैती आंदोलन से प्रेरित होकर अपनी भांजी संगीता के विवाह में विदाई के वक्त खेत में पेड़ लगाकर गगवाड़स्यूँ पट्टी में इस आंदोलन की शुरूआत की।

क्या है मैती आंदोलन

उत्तराखंड के चमोली जिले के बैनोली गांव निवासी, देश के प्रतिष्ठित पुरुष्कार पद्मश्री से सम्मानित, मैती आन्दोलन के जनक, प्रकृति प्रेमी व पर्यावरणविद शिक्षक कल्याण सिंह रावत (मैती) ने साल 1994 में पर्यावरण से जुड़े मैती आंदोलन की शुरुआत की थी। उन्होंने शिक्षक रहते हुए स्कूली बच्चों को मैती आंदोलन के लिए प्रेरित किया। फिर धीरे-धीरे समूचे गांव के लोगों को प्रेरित करने का कार्य किया। पर्यावरण संरक्षण की अनूठी सौगात के लिए उन्हें 26 जनवरी 2020 को राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया गया।

गढ़वाल में मैत का अर्थ होता है मायका और मैती का अर्थ होता है मायके वाले। मैती के तहत जब किसी बेटी की शादी होती है। तो विदाई के समय दूल्हा-दुल्हन को एक फलदार पौधा दिया जाता है। वैदिक मंत्रों के द्वारा दूल्हा इस पौधे को रोपित करता है तथा दुल्हन इसे पानी से सींचती है। फिर ब्राह्मण द्वारा इस नव दंपत्ति को आशीर्वाद दिया जाता है। इसके जरिए वह पर्यावरण संरक्षण के साथ ही अपने मायके में गुजारी यादों के साथ-साथ विदाई लेती है। पेड़ को लगाने के एवज में दूल्हे द्वारा दुल्हन की सहेलियों को कुछ पैसे दिये जाते हैं। जिसका उपयोग पर्यावरण सुधारक कार्यों में और समाज के निर्धन बच्चों के पठन-पाठन में किया जाता है। दुल्हन की सहेलियों को मैती बहन कहा जाता है। जो भविष्य में उस पेड़ की देखभाल करती हैं।

इस भावनात्मक आंदोलन के साथ शुरू हुआ पर्यावरण संरक्षण का यह अभियान आज उत्तराखंड के साथ ही पूरे देश में चल रहा है। पर्यावरण संरक्षण की अनूठी सौगात देने वाले मैती आंदोलन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नें भी सराहा था।