दिनेश शास्त्री

देश की राजधानी दिल्ली में निर्माणाधीन केदारनाथ मंदिर के बहाने शुरू हुए विवाद के बाद उत्तराखंड में कांग्रेस केदारनाथ बचाओ यात्रा पर निकल गई है, दूसरे शब्दों में कहें तो कांग्रेस का हिंदुत्व इस बरसात में सारी सीमाएं लांघने को आतुर गाड़ गधेरों की तरह उफान पर है। हर की पैड़ी हरिद्वार में गंगा स्नान के बाद केदारनाथ धाम तक यह यात्रा धार्मिक कम और राजनीतिक ज्यादा है। हाल के वर्षों में इसी तरह की दो और यात्राएं हम देख चुकी हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा स्पष्ट कर चुके हैं कि यह यात्रा एक पखवाड़े की होगी। विभिन्न पड़ावों से होकर गुजरने वाली इस यात्रा में कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेता एवं कार्यकर्ता सम्मिलित होंगे किंतु यात्रा का दारोमदार गणेश गोदियाल पर रहेगा। बाकी नेता टुकड़ों टुकड़ों में यात्रा में शामिल होंगे।

कांग्रेस ने इस यात्रा को “केदारनाथ धाम प्रतिष्ठा रक्षा यात्रा” नाम दिया गया है। पूर्व सीएम हरीश रावत ने भी पैदल यात्रा का पूर्व समर्थन किया है। हरीश रावत ने खुद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा है कि वह केदारनाथ धाम बचाओ यात्रा में ऋषिकेश और अगस्त्यमुनि में भाग लेंगे। वे आगे कहते हैं कि धाम और शंकराचार्यों के सम्मान को बचाने की लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है। भाजपा में धाम बनाने की होड़ लगी है। खुद प्रदेश अध्यक्ष करन महरा भी इन “यात्रियों” का मनोबल बढ़ाने के लिए साथ देंगे।

अब जबकि मामले का एक तरह से पटाक्षेप हो चुका है, राज्य सरकार देश के किसी अन्य भाग में केदारनाथ धाम का विरोध कर चुकी है तो कांग्रेस की भी अपनी जिद है लेकिन कांग्रेस इस मुद्दे को जिंदा रखना चाहती है। यह उसकी जरूरत भी है। कांग्रेस का दो टूक कहना है कि जब तक भाजपा अपने इस अपराध के लिए माफी नहीं मांगती है तब तक केदारनाथ धाम बचाओ संघर्ष जारी रहना चाहिए।

वैसे देखा जाए तो धामी सरकार ने यह उड़ता तीर खुद लिया है। इधर आपकी एक विधायक की अर्थी अंत्येष्ठि की प्रतीक्षा में थी और उधर दिल्ली में केदारनाथ धाम का शिलान्यास हो रहा था तो कांग्रेस के हाथ एक बड़ा मौका लगना ही था। बदरीनाथ सीट पर मिली जीत से उत्साहित कांग्रेस को बैठे बिठाए मुद्दा पकड़ा दिया है। अब कुछ महीनों बाद केदारनाथ विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव होना है तो तब तक इस मामले को चर्चा में बनाए रखना उसकी पहली जरूरत है। इस बहाने पार्टी भी थोड़ा गतिशील हो सकती है वरना राजनीतिक आंदोलन तो कांग्रेस का मिजाज नहीं है। लम्बे समय तक सत्ता सुख भोगने के कारण कांग्रेस के नेता सांकेतिक धरना प्रदर्शन तक ही सीमित देखे गए हैं। कांग्रेस के नेता चौबीस घंटे के धरने पर तो शायद ही किसी ने देखे हों।

केदारनाथ धाम प्रतिष्ठा बचाओ यात्रा का जुआ बड़ी चतुराई से गणेश गोदियाल के कंधे में रखा गया प्रतीत होता है और देखा जाए तो फिलहाल दूर दूर तक पार्टी में ऐसा कोई नेता दिखता भी नहीं है जो किसी अभियान को आगाज से अंजाम तक पहुंचा सके। बदरीनाथ विधानसभा के उपचुनाव में सीजनल नेता तो सभी उपलब्ध थे किंतु शुरू से आखिर तक अगर कोई नेता दिखा तो वह गणेश गोदियाल ही थे। लिहाजा केदारनाथ सीट की फील्डिंग के लिए भी उन्हें ही लगाया गया है, यह अलग बात है कि जब पेड़ पर फल लगेंगे तो “फल वितरण” के मौके पर वे आगे रहेंगे या नहीं, इसमें संदेह बना रहेगा। कांग्रेस का इतिहास तो यही बताता है, वरना उत्तराखंड विधानसभा के पहले चुनाव के बाद नेतृत्व किसी और के हाथ में हो सकता था और बाद में भी तो वही सब तो हुआ जो अनपेक्षित था। पार्टी ने तो हर बार चौंकाया ही तो है।

देखा जाए तो केदारनाथ धाम की प्रतिष्ठा यथावत है। वह न कभी कम हुई, न कभी कम होगी। केदारनाथ धाम ज्योतिर्लिंग है, उसकी प्रतिकृति देश के कई हिस्सों में है लेकिन महिमा केदारनाथ की ही है।

पुराणों में एक प्रसंग आता है कि महाबली रावण कैलाश पर्वत को लंका ले जाना चाहता था किंतु ले जा न सका। आखिर अचल, अविनाशी शिव को कौन अपने माफिक कर सकता है? उसी तरह केदारनाथ धाम वहीं है और वहीं रहेगा, उसके लिए चिंतित होना केवल अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश है, उससे अधिक कुछ नहीं और दूसरी बात यह कि किसी को इस पर आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए। बड़े संदर्भ में देखें तो यह एक तरह से अपनी प्रतिष्ठा बचाने की यात्रा है। हाल के दिनों में सनातन पर चौतरफा प्रहार हुए हैं। किसी ने समूल विनाश का आह्वान करते हुए डेंगू मलेरिया जैसा बताया तो किसी ने कुछ और। देशवासियों ने यह भी देखा कि देश की सबसे बड़ी पंचायत में हिंदू को हिंसक, असत्य और न जाने क्या कुछ कहा गया तो उस लिहाज से वह दाग धोने का समय भी है और केदारनाथ के नाम पर जो लूज बॉल धामी ने फेंकी उसे बाउंड्री पर भेजने का मौका क्यों चूका जाए। उस दृष्टि से खाली हाथ बैठी पार्टी को बेहतरीन मौका हाथ लगा है तो अब “फेंक जहां तक भाला जाए” का अवसर आया है तो कौन नहीं भुनाना चाहेगा। इससे पार्टी का सनातनियों से कनेक्ट बढ़ेगा तो देश के दूसरे भागों से हिंदुत्व पर किए गए प्रहारों को न्यूनतम किया जा सकेगा। ऊपर से श्रावण माह का पुण्य अर्जन। तिहरा लाभ और कहां मिलेगा। हरिद्वार से केदार तक पद यात्रा से स्वास्थ्य बेहतर होगा, पार्टी की संभावना अच्छी होगी और दूसरे नेताओं द्वारा लगाए गए दाग धुलेंगे। एक साथ इतने काम घाटे का सौदा थोड़े ही है। बस कमी एक रहेगी कि इस यात्रा में एक अदद सेकुलर शंकराचार्य की। चातुर्मास चल रहा है, इस कारण वह नहीं दिख पाएंगे। वे साथ होते तो मजमा कुछ और ही होता। फिलहाल तो उनके बयानों से काम चलाना पड़ेगा। बयान देने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी है।

बहरहाल केदारनाथ धाम की प्रतिष्ठा की रक्षा के इस अभियान में कई नेताओं की प्रतिष्ठा की रक्षा प्राथमिकता में है। भगवान रक्षा करे, सावन की इस झड़ी में जब सिरोबगड़ जैसे नासूर का पिछले ढाई दशक में इलाज नहीं हुआ है। फाटा के पास डौल्या देवी के पास और चीरवासा भैरव तथा कुछ अन्य स्थानों पर यात्रा मार्ग जानलेवा बना हुआ है, ऐसे मौसम में पदयात्रियों की निरापद यात्रा की कामना की जानी चाहिए। यात्रा का पुण्य जो चाहे बटोर ले अंतिम फैसला केदारनाथ के लोगों को करना है। बाबा केदार तो सबके हैं, सबके लिए हैं। उनका आशीर्वाद संत भी ले सकता है, गृहस्थ भी, शंकराचार्य भी, राजा भी – रंक भी, अमीर भी – गरीब भी, राजनीतिक लोग भी यानी हर कोई उनका कृपापात्र है। बाबा सब पर कृपा बनाए रखें। हम तो यही कामना करते हैं।