सोमवारी पूर्णमासी और श्रवण नक्षत्र होने से बहुत फलदाई योग
भाई-बहन के पवित्र रिश्ते के प्यार का त्यौहार रक्षाबंधन इस बार 3 अगस्त अर्थात सोमवार को मनाया जाएगा. वर्ष 1991 के बाद श्रवण नक्षत्र एवं सावन चंद्रमास के अंतिम सोमवार को सोमवारी पूर्णमासी पर यह पर्व पढ़ने से अति विशिष्ट संयोग बन रहा है.
राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज आईडीपीएल के संस्कृत प्रवक्ता आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल ने बताया कि इस दिन प्रातः 9:28 तक भद्रा रहेगी. शास्त्रानुसार भद्रायमहेन कर्तव्य श्रावणी फाल्गुनी अर्थात प्रातः 9:28 के बाद दिनभर बहने अपने भाइयों की कलाई में राखी बांध सकती है.
उत्तराखंड ज्योतिष रत्न आचार्य घिल्डियाल बताते हैं कि इस दिन पूर्णिमा तिथि रात्रि 9:28 तक रहेगी. चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे, प्रातः 7:19 तक उत्तराषाढ़ा नक्षत्र रहेगा, इसके बाद श्रवण नक्षत्र आरंभ होगा, जो 4 अगस्त प्रातः 8:11 तक रहेगा. इसके साथ ही इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग आयुष्मान योग का भी निर्माण हो रहा है, जो बहन और भाई दोनों के परिवारों के लिए बहुत शुभ है.
सौरमंडल में ग्रहों की हलचल
ज्योतिष वैज्ञानिक डॉक्टर घिल्डियाल बताते हैं कि रक्षाबंधन से पूर्व 1 अगस्त को शुक्र का राशि परिवर्तन हो रहा है. वह अपनी वृष राशि से बुध की मिथुन राशि में जा रहे हैं. तथा 2 अगस्त को बुध मिथुन राशि से कर्क राशि में गोचर करेंगे. दोनों शुभ ग्रह हैं, सौरमंडल में इनके राशि परिवर्तन से भी बहुत शुभ संयोग इस वर्ष रक्षाबंधन पर बन रहा है.
इस विधि से बांधी जाएगी राखी
भाई बहन सुबह स्नान कर भगवान की पूजा करें और रोली अक्षत दूर्वा कुमकुम दीप जलाकर इनका थाल सजाएं. राखी रख बहन भाई के माथे पर तिलक करें, इसके बाद राखी बांधकर भाई का मुंह मीठा करें, इसके बाद भाई बहन का तिलक कर यथा सामर्थ्य दक्षिणा प्रदान करें, इसमें पैसे वस्त्र ज्वेलरी आदि हो सकती है.
रक्षाबंधन का महत्व
श्रीमद्भागवत रत्न आचार्य चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं कि भविष्य पुराण में इंद्राणी द्वारा इंद्र तथा देव गुरु बृहस्पति के मध्य सर्वप्रथम रक्षा सूत्र बंधन की परंपरा प्रारंभ हुई. द्वापर में द्रोपदी ने भगवान श्रीकृष्ण को विधि विधान से राखी बांधी. कौरवों द्वारा भरी सभा में द्रोपदी के चीर हरण के समय उस राखी के वचन की लाज भगवान ने उसकी लाज बचा कर पूरी की. तबसे निरंतर यह त्यौहार हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है.
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