पौड़ी : कभी ढाकर यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव रहे पौड़ी गढ़वाल के अदवाणी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से पर्यटन के क्षेत्र में कार्य करने वाली “पलायन एक चिंतन टीम” द्वारा एक अभिनव पहल की गई है। पलायन एक चिंतन टीम” के रतन असवाल, गणेश काला और अजय रावत द्वारा पौड़ी मण्डल मुख्यालय से महज 17 किलोमीटर दूर बांज-बुरांस के घने जंगल के बीच बसे आदवाणी में “रसोई द ढाकर” गेस्ट हाउस बनाया गया है। जहाँ पर पर्यटक/यात्री घर जैसे खाने का लुफ्त उठा सकते हैं, इसके अलावा गेस्ट हाउस में पर्यटकों के ठहरने की भी व्यवस्था है। “रसोई द ढाकर” की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहाँ पर पर्यटक अगर चाहें तो अपना भोजन स्वयं बना सकते हैं, इसके लिए उन्हें किचन, लकड़ी, गैस, वर्तन आदि जरुरी वस्तुएं उपलब्ध कराई जाएगी। शुक्रवार को जिला पंचायत सदस्य गढ़कोट संजय डबराल ने “रसोई द ढाकर” गेस्ट हाउस का रिबन काटकर विधिवत उद्घाटन किया।
“पलायन एक चिंतन टीम” की पहल पर शुरू की गई ढाकर यात्रा को पहचान दिलाने के लिए यह कार्य योजना तैयार की गई है। जिसमें की गढ़वाल की भौगोलिक परिस्थितियों में जीवन यापन करने वाली पिछली पीढ़ियों की जीवटता का अवलोकन आने वाली पीढियां भी कर सकेंगी। स्थानीय निवासियों की यह पहल पर्यटन की दृष्टि से काफी अहम है। वहीं टीम से जुड़े सदस्यों ने इसे ढाकर यात्रा रूट का पड़ाव बताते हुए कहा कि नई पीड़ी को यहां की पिछली पीढ़ियों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले स्थानीय रूट से रूबरू कराने का काम किया जाएगा। उन्होंने बताया कि पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए “रसोई द ढाकर” के अंदर स्थानीय उत्पादों से बने व्यंजन बनाए जाएंगे।
उल्लेखनीय है कि मण्डल मुख्यालय पौड़ी से 17 किलोमीटर दूर अदवाणी रानीगढ़ पर्यटन स्थल एक ज़माने में ढाकर यात्रा का अहम पड़ाव हुआ करता था। सैकड़ों वर्ष पूर्व जब गढ़वाल एवं कुमाऊँ के पहाड़ी क्षेत्रों में सड़कें नहीं थी और सिर्फ दुर्गम पैदल पथ थे, तब सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग जरुरत सामान के लिए इन्हीं दुर्गम रास्तों से कई दिनों तक मीलों पैदल यात्रा करते हुए मंडियों में पहुँचते थे। असल में उस समय के लोग कृषि के क्षेत्र में तो आत्मनिर्भर थे। खाने पीने के लगभग सभी वस्तुएं अपनी खेती से ही हो जाती थी, परन्तु नमक, गुड़, कपड़ा आदि कुछ सामान के लिए मंडियों में जाना पड़ता था।
कहा जाता है कि उस समय गढ़वाल की मुख्य मंडी दुगड्डा हुआ करती थी। जहाँ पूरे गढ़वाल क्षेत्र के लोग सामान लेने के लिए जाते थे। और अपनी जरूरत का सामान सर पर या कंधे पर ढो कर लाते थे। असल में सामान “ढो कर” लाने से ही ढाकर शब्द की उत्पति मानी गई है। जिसके चलते इस यात्रा को “ढाकर यात्रा” तथा इन यात्रियों को “ढाकरी” कहा जाता था।दुगड्डा से ढाकर लाने वालों को ‘ढाकरी’ कहा जाता था। दुगड्डा से गुमखाल,द्वारीखाल होते हुए कभी ढाकरी बांघाट होते हुए अदवाणी, टेका,गंगोट्यूं पहुंचते थे।
कई किलोमीटर और कई दिनों की इस पैदल यात्रा के दौरान रात होने या दिन में ढाकरियों के विश्राम के लिए करीब 10-12 किलोमीटर की दूरी पर जगह-जगह पढ़ाव होते थे जहाँ पर ढाकरियों (यात्रियों) के लिए खाने-पीने से लेकर ठहरने तक की व्यवस्था होती थी। कोटद्वार-दुगड्डा-पौड़ी-बद्रीनाथ-मार्ग पर बने इन्ही पड़ावों में से एक अहम पढ़ाव अदवाणी में भी हुआ करता था। जहाँ पैडुलस्यूं, पौड़ी से लेकर आगे तिब्बत तक जाने वाले ढाकर यात्री/ व्यापारी विश्राम करते थे। हालाँकि अंग्रेजों ने जब पहाड़ों में सड़कें बनानी शुरू की और मोटर वाहन चलने लगे तो इस ढाकर यात्रा का अंत हो गया। आजाद भारत के कुछ वर्षों पहले ही पौड़ी में ढाकर लाने की व्यवस्था खत्म हो चली थी लेकिन आज भी असवालस्यूं और मनियारस्यूं के कई गांवों में बड़े-बूढ़े यह गुनगुनाते मिल जाते हैं कि एक पतेली ढके सौं, द्वी पतैली ढके सौं…….”
ढाकर यात्रा का अहम पड़ाव रहे अदवाणी को एक बार फिर से पर्यटन के रूप विकसित करने तथा नई पीढ़ी को ढाकर से रूबरू कराने के लिए “पलायन एक चिंतन टीम” ने पहल की है। इस मौके पर उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक कलाकार घनानंद “घना भाई” सहित पौड़ी के कई पत्रकार शामिल रहे।
जगमोहन डांगी