arvind-pandey-education-minnister-uttarakhand

उत्तराखंड शिक्षा विभाग में तदर्थ नियुक्त और सीधी भर्ती से नियुक्त शिक्षकों के बीच वरिष्ठता विवाद सुलझने से अब शिक्षकों की एलटी एवं प्रवक्ता से प्रधानाध्यापक पदों पर पदोन्नति का रास्ता खुल गया है।  जिसके बाद अब प्रदेश में लम्बे समय से हाईस्कूल प्रधानाध्यापकों के रिक्त चल रहे 637 पदों पर जल्दी ही तैनाती होने जा रही है। शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने शिक्षा महानिदेशक विनय शंकर पांडे को निर्देश देते हुए विभाग में प्रवक्ता पदों, एलटी से प्रधानाध्यापक हाईस्कूल के पदों पर शीघ्र पदोन्नति करने के निर्देश दिए हैं। शिक्षा मंत्री पांडेय के इस निर्देश के बाद लंबे समय से बतौर प्रधानाध्यापक काम कर रहे शिक्षकों के जल्द प्रमोशन की राह आसान हो जाएगी।

अपर निदेशक आर के उनियाल ने बताया कि वर्तमान में हाई स्कूल में प्रधानाध्यापकों के 912 पद स्वीकृत हैं जिनमें 275 शिक्षक काम कर रहे हैं। जबकि 637 पद रिक्त हैं। इसके अलावा प्रधानाचार्यों के कुल 1386 पद स्वीकृत हैं जिनके सापेक्ष 317 प्रधानाचार्य काम कर रहे हैं। जबकि 1069 प्रधानाचार्य के पद रिक्त चल रहे हैं। अपर निदेशक ने बताया कि पिछले 17 साल से चला आ रहा शिक्षकों की वरिष्ठता का मसला आखिरकार सुलझ गया। जल्द इस पर कारवाई की जाएगी।

बतादें कि शिक्षा विभाग में तदर्थ नियुक्त और सीधी भर्ती से नियुक्त शिक्षकों के सीनियर्टी को लेकर बीच लम्बे समय से विवाद चल रहा था। इस मामले में मंगलवार को शिक्षा सचिव की अध्यक्षता में कार्मिक, न्याय और शिक्षा विभाग के अधिकारियों की बैठक हुई थी। बैठक में हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक प्रभावित पक्षों को सुना गया। इसके लिए शासन के निर्देश पर विभाग की ओर से प्रभावित शिक्षकों से प्रत्यावेदन मंगाए गए। तकरीबन 950 आवेदन शासन को प्राप्त हुए थे। शिक्षकों के दोनों पक्षों को विस्तार से जानने के बाद कार्मिक, न्याय और शिक्षा विभाग के अधिकारियों की संयुक्त बैठक में इस पर अंतिम निर्णय लिया गया। इसके बाद शिक्षा सचिव ने तमाम पक्षों का जिक्र करते हुए छह बिंदुओं पर आदेश जारी किया। आदेश में कहा गया कि एक अक्टूबर, 1990 से पहले तदर्थ रूप से नियुक्त शिक्षकों को 14 अक्टूबर, 1999 से प्रवक्ता और 28 दिसंबर, 1999 से एलटी पद पर विनियमित किया गया है। हालाँकि तदर्थ शिक्षकों को नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता का लाभ शासन ने नहीं दिया है, लेकिन एक अक्टूबर, 1990 से उन्हें नियमित मान लिया है। तदर्थ शिक्षकों को सेवानिवृत्ति के मौके पर वित्तीय लाभ मिलना तय है, साथ में लंबे समय से अटकी पदोन्नतियां भी होंगी।