Gandhi of Uttarakhand Indramani Badoni : पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन की शुरुआत करने वाले पहाड़ के गांधी स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी की पुण्यतिथि पर आज मसूरी में इंद्रमणि बडोनी विचार मंच के सदस्यों ने उनकी मूर्ति पर पुष्प अर्पित किए। इस मौके पर उत्तराखंड आंदोलनकारी मंच के सदस्य जय प्रकाश उत्तराखंडी द्वारा इंद्रमणि बडोनी की मूर्ति विधानसभा में स्थापित किए जाने की मांग की गई। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के गांधी कहे जाने वाले इंद्रमणि बडोनी की लगातार राज्य सरकार उपेक्षा करती रही है, जो अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि अगर 2 अक्टूबर से पहले विधानसभा में इंद्रमणि बडोनी की मूर्ति स्थापित नहीं की गई तो बड़ा आंदोलन किया जाएगा।

वहीँ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने  स्व. इंद्रमणि बडोनी की पुण्य तिथि पर मुख्यमंत्री आवास में उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी जी की उत्तराखण्ड राज्य निर्माण आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही। पर्वतीय विकास की संकल्पना और उत्तराखण्ड राज्य निर्माण में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। उत्तराखण्ड आंदोलन को नेतृत्व प्रदान कर स्व। बडोनी ने राज्य निर्माण के लिये मजबूत आधार तैयार करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम सबको स्व।बडोनी जी के सपनों के अनुरूप राज्य का विकास करने हेतु अपना अहम योगदान देना होगा, यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

इंद्रमणि बड़ोनी को यूं ही नहीं कहा जाता है उत्तराखंड का गांधी

अलग उत्तराखंड राज्य बनाने के लिए आंदोलन की शुरुआत करने वाले इंद्रमणि बड़ोनी को उत्तराखंड का गांधी यूं ही नहीं कहा जाता है, इसके पीछे उनकी महान तपस्या व त्याग रही है। राज्य आंदोलन को लेकर उनकी सोच और दृष्टिकोण को लेकर आज भी उन्हें शिद्​दत से याद किया जाता है। इंद्रमणि बड़ोनी आज ही के दिन यानी 24 दिसंबर, 1925 को टिहरी जिले के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गांव में पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम सुरेश चंद्र बडोनी था। साधारण परिवार में जन्मे बड़ोनी का जीवन अभावों में गुजरा। उनकी शिक्षा गांव में ही हुई। देहरादून से उन्होंने स्नातक की उपाधि हासिल की थी। वह ओजस्वी वक्ता होने के साथ ही रंगकर्मी भी थे। लोकवाद्य यंत्रों को बजाने में निपुण थे।

वर्ष 1953 में  जब बड़ोनी गांव में सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यों में जुटे थे। इसी दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की शिष्या मीराबेन टिहरी भ्रमण पर पहुंची थी। बड़ोनी की मीराबेन से मुलाकात हुई। इस मुलाकात का असर उन पड़ा। वह महात्मा गांधी की शिक्षा व संदेश से प्रभावित हुए। इसके बाद वह सत्य व अहिंसा के रास्ते पर चल पड़े। पूरे प्रदेश में उनकी ख्याति फैल गई। लोग उन्हें उत्तराखंड का गांधी बुलाने लगे थे।

उत्तराखंड को लेकर इंद्रमणि बडोनी का अलग ही नजरिया था। वह उत्तराखंड को अलग राज्य चाहते थे। वर्ष 1979 में मसूरी में उत्तराखंड क्रांति दल का गठन हुआ था। वह इस दल के आजीवन सदस्य थे। उन्होंने उक्रांद के बैनर तले राज्य को अलग बनाने के लिए काफी संघर्ष किया था। उन्होंने 105 दिन की पद यात्रा भी की थी।

तब उत्तराखंड क्षेत्र में बडोनी का कद बहुत ऊंचा हो चुका था। वह महान नेताओं में गिने जाने लगे। सबसे पहले वर्ष 1961 में अखोड़ी गांव में प्रधान बने। इसके बाद जखोली खंड के प्रमुख बने। इसके बाद देवप्रयाग विधानसभा सीट से पहली बार वर्ष 1967 में विधायक चुने गए। इस सीट से वह तीन बार विधायक चुने गए। हालांकि उन्होंने सांसद का भी चुनाव लड़ा था। कांटे की टक्कर हुई थी। अपने प्रतिद्वंद्वी ब्रहमदत्त से 10 हजार वोटों से हार गए थे। संघर्ष करते हुए बड़ोनी का 18 अगस्त, 1999 को देहावसान हो गया।