पौड़ी गढ़वाल : दुनियाभर में महामारी का रूप ले चुकी कोरोना बीमारी से हमारा देश भी अछूता नहीं है। देशभर में अबतक 14 हजार से ज्यादा लोग इस बीमारी की चपेट में आ चुके है। कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए देशभर में पिछले कई दिनों से लॉकडाउन चल रहा है। ऐसे में दिहाड़ी मजदूरों, गरीब एवं असहाय लोगों पर दो जून की रोटी का संकट आ गया है। साथ ही बेजुबान, बेसहरा मवेशियों पर ही इसका बुरा असर पड़ा है। आपदा की इस घड़ी में शासन/प्रशासन से लेकर विभिन्न सामाजिक संस्थाओं एवं समाज के जागरूक लोग आगे आकर जरूरत मंदों की मदद कर रहे हैं। इसमें अग्रणी भूमिका अदा कर रहे हैं समाज के शिक्षक वर्ग के लोग व बुद्धिजीवी, जिससे यह साबित होता है के एक बुद्धिजीवी ही समाज का सही ढंग से प्रतिनिधित्व कर सकता है, आपदा की इस घड़ी में शनिवार को पौड़ी ब्लॉक ऑफिस के निकट निवास कर रहे बुज़ुर्ग शिक्षक दम्पति यशवंत सिंह नेगी (81 वर्ष) और उनकी धर्मपत्नी पत्नी चंपा नेगी (69 वर्ष) ने शनिवार को अपनी पेंशन से एक-एक लाख रुपये के चेक पौड़ी के जिलाधिकारी धीरज गर्ब्याल को सौंपे हैं। नेगी दम्पति ने कुल 2 लाख रुपये की यह धनराशि मुख्यमन्त्री राहत कोष में कोरोना संकट से लड़ने और गरीब एवं लाचार लोगों की मदद के लिये दी है। इसके अलावा नेगी दम्पति बेजुबान मवेशियों के लिए जो कर रहे हैं। वह बेमिसाल है।
उल्लेखनीय है कि पिछले करीब 20 वर्षों से निस्वार्थ भाव से गौ सेवा में लगे हुए बुजुर्ग नेगी दम्पति पूरे इलाके में चर्चा में रहते है। मूल रूप से कल्जीखाल ब्लॉक के अंतर्गत असवालस्यूं पट्टी के ग्राम बगवानू के मूल निसासी यशवंत सिंह नेगी राजकीय इंटर कॉलेज कल्जीखाल से प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्ति के बाद पौड़ी में बस गए हैं। वहीँ उनकी धर्मपत्नी श्रीमती चम्पा नेगी भी जीजीआईसी एकेश्वर से प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त हैं।
वर्तमान भौतिकवादी दौर में ख़ास कर शहरी क्षेत्रों में लोग अक्सर दूध अर्जित करने के बाद बाँझ हो चुकी एवं अनुपयोगी गायों को बेसहारा छोड़ देते हैं। पौड़ी शहर के आसपास लोगों द्वारा त्यागी गई ऐसी ही बाँझ एवं अनुपयोगी गायों को अपने निवास पर आश्रय देने का काम किया रिटायर्ड शिक्षक दम्पति ने। उन्होंने सेवानिवृत्त के कुछ समय बाद वर्ष 2000 में आसपास के कुछ के बेसहारा/ निराश्रित मवेशियों को अपने बहुमाजिला मकान में आश्रय देना शुरू किया था। और देखते ही देखते उनके निवास पर करीब 40 से 50 निराश्रित गायों/गोवंशो ने आश्रय लेना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे इन दम्पति को गौ सेवा की ऐसी लत लग गई कि इन्होने रिटायरमेंट के बाद का अपना सारा जीवन गौ सेवा में समर्पित कर दिया। पिछले 20 वर्षों से बिना किसी सरकारी मदद के वे निरंतर इन बेजुबान, बेसहारा मवेशियों के लिए आसपास के गांवों से घास के ट्रक भर-भर कर मंगवाते हैं। साथ ही हर माह करीब 25 से 30 हजार रुपये तक का भूसा भी खरीदते हैं और बीमार गायों के लिए अपने खर्च पर पशु चिकित्सकों से गायों का इलाज करवाते हैं। यही नहीं। पौड़ी की बर्फीली शर्दियों में जब घास या चारा नहीं मिल पाता है तो आटे की भरी थैलियाँ ही गायों के आगे रख देते हैं।
इनके अन्दर गौ सेवा का ऐसा जुनून सवार है कि इन्होने अपने बहुमंजिला मकान को निराश्रित गायों को आश्रय देने के लिए समर्पित किया हुआ है, आज भी इनके घर के पास निराश्रित मवेशियों का जमावड़ा लगा रहता है क्योंकि दम्पति वृद्धावस्था और ख़राब स्वास्थ्य के बाबजूद इन्हें चारा-पानी देने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। दिल के मरीज होने के साथ ही वृद्धावस्था में स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद भी श्री नेगी अपने इलाज के लिए पौड़ी से बाहर इसलिए नहीं जाना चाहते हैं कि उनकी अनुपस्थिति में इन बेजुबान मवेशियों की देखरेख कौन करेगा।
दोनों बुजुर्ग शिक्षक दम्पति ने कोरोना महामारी से मानवता पर संकट की इस घड़ी में बड़ी धनराशि की मदद कर शिक्षकों को एक बार फिर समाज में अग्रणी लाकर खड़ा कर दिया है।