पौड़ी: उत्तराखंड के प्रत्येक गांव अपनी विशिष्ठ बनावट व वैभवशाली संस्कृति के लिए देश दुनिया में जाना जाता है। लेकिन पौड़ी गढ़वाल का एक ऐसा गांव है। जिसमें साल में दो तीन दिन ही इंसान देखने को मिलते हैं। बाकी दिनों में गांव में बीरानी और सन्नाटा पसरा रहता है।
पौड़ी मंडल मुख्यालय से करीब 27 किलोमीटर दूर मनियारस्यूं पट्टी का बलूनी गांव जो अक्सर मैग्रेसन के लिए अखबार के पन्नो की सुखिया में रहता था। लेकिन हर वर्ष जून के प्रथम सप्ताह से लेकर करीब 10, 12 तारीख को हमेशा चमक जाता है। बलूनी गांव ग्राम देवता के नाम पर फिर एक दिन के लिए आबाद हुआ। इस गांव में पलायन की मार ऐसी पड़ी कि पूरा गांव पलायन कर गया। इस गांव में एक भी इंसान नही रहता है। कुछ को शहरो की चमक धमक पलायन करा गई, तो कुछ शिक्षा के नाम पर चले गए। कुछ परिवार जो गांव में रहते थे वह भी पानी की किल्लत को देखकर बनेख में बस गए। दुर्भाग्य पूर्ण बात यह है कि इस गांव के करीब सभी पुस्तेनी मकान भी गुजरे जमाने की बात हो गए हैं। हालांकि कुछ पक्के भवन अभी भी पूरी तरह सुरक्षित है।
गौरतलब है कि बलूनी गांव के लोग विभिन्न महकमों में उच्च पदों पर विराजमान है। इस गांव की एक और खासियत है कि इस गांव का एक भी परिवार बीपीएल श्रेणी का नही है। धार्मिक महत्व के नजरिए से देखें तो गांव में सिद्धबली बाबा का विशाल मंदिर बना हुआ हैं। जिसकी बजरंग बली के रूप में गांववासी पूजा अर्चना करते हैं। हैरानी की बात यह है कि इस गांव में एक भी परिवार नही रहता है। यह राजस्व गांव शून्य जनसंख्या वाला गांव हैं। 2011-12 में गांव में सड़क आने और सोशल मीडिया के माध्यम से समस्त प्रवासियों एवं गांववासियों को एकत्रित कर समिति गठित की गई। तब से हर वर्ष जून के प्रथम एवं द्वितीय सप्ताह में गांव में सिद्धबली बाबा का अनुष्ठान, मंडाण, भजन कीर्तन एवं भंडारा आयोजित होता है।
गांव के रिटायर्ड डीएसपी एवं मंदिर समिति के अध्यक्ष आरपी बलूनी बताते हैं कि बलूनी गांव ढाकर का आम रास्ता हुआ करता था। नजदीकी पांचाली गांव के ढकारी हमारे गांव के समीप अल्प विश्राम किया करते थे। एक बार पांचाली गांव के ढाकरी ने हमारे गांव के पास थकान मिठाने के लिए अल्प विश्राम किया। विश्राम के बाद जब उसने अपने लूण यानि नमक का कट्टा उठाना चाहा तो नमक का कट्टा इतना भारी हो गया कि उससे उठाया नहीं गया। इसमें बाद उसने कट्टा खोला और उसके अंदर से एक पत्थर जिसे गंगलोड़ी भी कहते हैं, उसको बाहर फेंक दिया। उसके बाद वह नमक का बोरा पहले जैसे ही हल्का हो गया और ढाकरी उसे लेकर अपने घर आ गया। उसी रात उसके सपने में बाबा सिद्धबली आये। तब से हमारे पूर्वजो ने उस स्थान पर सिद्धबली बाबा की स्थापना कर दी।
वर्ष 2010-12 में गांव के प्रवासियों ने एकत्रित होकर एक समिति गठित की। तब से हर साल जून के दूसरे सप्ताह में गांव में सिद्धबली बाबा का अनुष्ठान और रातभर कीर्तन भजन भंडारा आयोजन किया जाता है। इस धार्मिक अनुष्ठान कराने का मकसद नई पीढ़ी को विरासत में गांव की अनमोल धरोहर संस्कृति से वाकिफ करना है, ताकि नई पीढ़ी को भी पूजा के बहाने गांव आने का अवसर प्राप्त हो सके। सिद्धबली बाबा के अनुष्ठान का सभी बच्चे महिलाए बेसब्री से इंतजार करते रहते हैं। इस बार भी बड़ी संख्या में प्रवासी परिवार सहित गांव पहुंचे हैं। गांव के मकान रहने लायक नही हैं। इसलिए प्रवासी नजदीकी कस्बे बनेख या मंदिर में बनी धर्मशाला को ही अपना ठोर ठिकाना बनाते हैं। कहने का मतलब यह है कि इस गांव में साल में केवल तीन दिन ही इंसान दिखते हैं बाकी सालभर सन्नाटा रहता है। बताते हैं कि गांव के एक युवा की आकस्मिक मौत के चलते इस बार अनुष्ठान केवल एक दिन का ही किया गया। वाद्य यंत्रों का प्रयोग नहीं किया। गांव के कुल पुरोहित मां भुवनेश्वरी मंदिर के पीठाधीस गणेश प्रसाद शैलवाल द्वारा पूजा अर्चना यज्ञ-हवन आदि करवाया गया। वही स्थानीय महिलाओं द्वारा कीर्तन भजन किए गए।
इस अवसर पर पूर्व प्रधानाचार्य कुशलानन्द बलूनी, सीओ टिहरी एसपी बलूनी, ग्राम प्रधान धारी मदन सिंह रावत, ग्राम प्रधान पंचाली संतोषी रावत, समाजिक कार्यकर्ता अशोक रावत, विकास बलूनी, सुनीता वेदवाल बलूनी, महिला मंगल दल अध्यक्ष पुंडेरी लक्ष्मी देवी, जसवंत सिंह नेगी, डॉक्टर गिरीश चंद्र नैथानी, विजय बलूनी, धर्मानंद बलूनी आदि मौजूद थे।
रिपोर्ट जगमोहन डांगी