पौड़ी: देश अपनी आजादी का 75वां स्वतंत्रता दिवस यानी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। यानी हमारे देश को आजाद हुए 75 वर्ष हो चुके हैं। इसके अलावा हम अपने प्रदेश उत्तराखंड की बात करें तो यह भी अब 22 वर्ष का वयस्क हो चुका है। परन्तु आज भी उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में कई गाँव ऐसे हैं जहां लोग सड़क और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। और अगर देखा जाये तो पहाड़ों से पलायन का यह भी एक बड़ा कारण है।
हालाँकि पूरे उत्तराखंड में सैकड़ों ऐसे गाँव हैं जो आज तक सड़क सुविधाओं से वंचित हैं। परन्तु आज हम बात करेंगे पौड़ी गढ़वाल के रिखणीखाल प्रखंड के बनगढ़ गांव की। लैंसडाउन विधानसभा के अंतर्गत आने वाले बनगढ़ गांव के ग्रामीण आजादी के 75 साल और राज्य गठन के 22 साल बाद भी सड़क के अभाव में बीमार ग्रामिणों को इलाज के लिए कंधे पर बैठाकर ले जाने को मजबूर हैं। हालाँकि ग्रामीणों का कहना है कि यहाँ सड़क के लिए सैद्धान्तिक मंजूरी साल 2006 में मिल चुकी थी। परन्तु आज तक सड़क नहीं बन सकी। आज भी ग्रामीणों को सर्दी, गर्मी तथा बरसात के मौसम में किसी बीमार या गर्भवती को चारपाई या पालकी में 3 से 5 किलोमीटर पैदल ऊबड़खाबड़ पगडंडियों से होते हुए कंधों पर नजदीकी मोटर मार्ग तक ले जाना पड़ता है।
कई बार तो बीमार व्यक्ति की मुख्य सड़क मार्ग तक पहुँचते पहुंचते ही हालत काफी बिगड़ जाती है और कुछ मरीजों की इस दौरान जान तक चली जाती है। अब सोचिये गर्भवती महिलाओं का क्या हाल होता होगा। कैसे वो समय-समय पर की जाने वाली जरूरी जांच के लिए किसी अस्पताल तक पहुंच पाती होंगी। यही कारण है कि पहाड़ों में अक्सर गर्भवती महिलाओं के लिए डिलीवरी के समय काफी जोखिम भरा हो जाता है।
हाल ही में गाँव की एक बृद्ध बीमार महिला को बारिश से बेहाल रास्ते पर लगभग तीन किलोमीटर चल कर बेहद ही पीड़ादायक स्थिति में मुख्य सड़क तक कंधे पे उठाकर लाना पड़ा। इस दौरान बारिश के चलते फिसलन भरे चढ़ाई वाले रास्ते पर बीमार को कन्धों पर उठाकर ले जा रहे लोगों की हालत ख़राब हो गयी। बुरी तरह थकने के कारण वे लोग जगह जगह विश्राम करने को मजबूर थे जिसके चलते बीमार महिला को भी काफी तकलीफ झेलनी पड़ी।
इस घटना के बाद ग्राम बनगढ़ के ग्रामीण काफी आक्रोशित है। उनका कहना है कि हमारी यह वर्षों पुरानी मांग आखिर कब पूरी होगी। हालांकि कुछ ग्रामीणों का कहना था कि सड़क बनने की वजह जनप्रतिनिधि, प्रसाशन व विभागों की कमी नहीं बल्कि हमारे बीच का कोई व्यक्ति है। उनके मुताबिक जब भी गांव में सड़क निर्माण कार्य की दिशा में कोई कार्यवाही होनी शुरू होती है वो अलग अलग नामों से इस पर अपनी आपत्ति दर्ज कर देता है। इसलिए हमारी प्रसाशन से विनती है कि वो हमारी तकलीफों को नज़र अंदाज़ न करे और सरकारी काम में बाधा डालने वाले इस प्रकार के व्यक्ति पर कोई ठोस कार्यवाही करें ताकि इलाज के लिए मजबूर व्यक्ति रास्ते में दम न तोड़े।
इससे करीब 2 महीने पहले 12 जून को भी इस तरह गाँव के एक बीमार बुजुर्ग को इलाज के लिए उबड़ खाबड़ पगडंडियों और जंगल के रास्ते से होते हुए गाँव से 4 किलोमीटर दूर मुख्य मोटर मार्ग तक स्वनिर्मित पालकी पर बैठाकर ले जाना पड़ा था।
जो प्रदेश सन 2025 तक नंबर वन बनने की दिशा में हो उस प्रदेश में इस तरह की घटना विचलित करती है।