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उत्तराखंड में सावन हिंदू कैलेंडर से अलग क्यों?

हिंदू कैलेंडर के अनुसार देशभर में सावन का महीना 4 जुलाई से शुरू हो चुका है। लेकिन उत्तराखंड में कल यानी 17 जुलाई से सावन का पवित्र महीना शुरू होगा। उत्तराखंड का सावन, हिमाचली सावन और नेपाल का सावन बाकी राज्यों से अलग क्यों होता है, इसके पीछे की वजह है हिन्दू पंचांग व्यवस्था। देश के उत्तर मध्य और पूर्वी भागों में पूर्णिमा के बाद नए हिन्दू महीने की शुरुआत होती है। इस पंचांग व्यवस्था में, उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश आते हैं। इसलिए उनके सावन पूर्णिमा से शुरू हो कर पूर्णिमा के आस पास खत्म होते हैं।

वहीँ उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र, नेपाल और हिमाचल के कुछ हिस्सों में सौर पंचांग के अनुसार महीने शुरू व खत्म होते हैं। अर्थात जब सूर्य भगवान एक राशि से दूसरी राशि परिवर्तन करते हैं, उस दिन से उत्तराखंड, हिमाचल और नेपाल में महीना शुरू और ख़त्म होते हैं। सूर्य की राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं। यह संक्रांति हमेशा आंग्ल (अंग्रेजी) महीनों के बीच में पड़ती है। अर्थात प्रतिमाह संक्रांति 15 या 16  या 17 तारीख के आस पास पड़ती है। इसलिए हमेशा उत्तराखंड का सावन का महीना 16 या 17 जुलाई के आस पास से 15 , 16  अगस्त में ख़त्म हो जाता है।

इस साल चंद्र मास के अनुसार 04 जुलाई यानी गुरु पूर्णिमा से सावन का महीना शुरू हो गया है। जबकि कल यानी 17 जुलाई को सूर्य मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में प्रवेश करेंगे। इसलिए सूर्य के इसी परागमन के साथ उत्तराखंड में कल से सावन का महीना भी शुरू माना जायेगा।

हरेला से होती है सावन की शुरुआत

उत्तराखंड के लोक पर्वों में से एक हरेला को कुमाऊं मंडल में मनाया जाता है। कुमाऊं में हरेले से ही श्रावण मास और वर्षा ऋतु का आरंभ माना जाता है। इस दिन प्रकृति पूजन किया जाता है। धरा को हरा-भरा किया जाता है।

पांच, सात या नौ अनाजों को मिलाकर हरेले से नौ दिन पहले दो बर्तनों में बोया जाता है। जिसे मंदिर में रखा जाता है। इस दौरान हरेले को पानी दिया जाता है और उसकी गुड़ाई की जाती है। दो से तीन दिन में हरेला अंकुरित होने लगता है। इसे सूर्य की सीधी रोशनी से दूर रखा जाता है। जिस कारण हरेला यानी अनाज की पत्तियों का रंग पीला हो जाता है। हरेला पर्व के दिन परिवार का बुजुर्ग सदस्य हरेला काटता है और सबसे पहले अपने ईष्‍टदेव को चढ़ाया जाता है। अच्छे धन-धान्य, दुधारू जानवरों की रक्षा और परिवार व मित्रों की कुशलता की कामना की जाती है। इसके बाद परिवार की बुजुर्ग व दूसरे वरिष्ठजन परिजनों को हरेला पूजते हुए आशीर्वाद देते हैं। धार्मिक मान्‍यता के अनुसार हरेले की मुलायम पंखुड़ियां रिश्तों में धमुरता, प्रगाढ़ता प्रदान करती हैं।

मान्यता है कि घर में बोया जाने वाला हरेला जितना बड़ा होगा। खेती में उतना ही फायदा देखने को मिलेगा। हरेला पूजन के बाद लोग अपने घरों और बागीचों में पौधारोपण भी करते हैं।