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प्रथम विक्टोरिया क्रॉस स्व. दरवान सिंह नेगी की स्मृति में प्रथम विक्टोरिया क्रॉस दरवान सिंह नेगी वार मेमोरियल फाउण्डेशन समिति द्वारा उनके पैतृक गांव कफारतीर कड़ाकोट, चमोली ग़ढवाल में 23 नवंबर से 25 नवंबर तक आयोजित तीन दिवसीय शौर्य महोत्सव का आज उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा उद्घाटन किया जायेगा।

वी.सी. दरवान सिंह नेगी वार मेमोरियल राजकीय इंटर कॉलेज कर्णप्रयाग के तत्वाधान में कल दिनांक 22 नवंबर को दो शौर्य रथ अलग अलग मार्गों कर्णप्रयाग एवं नंदप्रयाग से कफारतीर खेंतोलीखाल के लिए रवाना हुए। एक रथ का नेतृत्व कर्नल हरेंद्र सिंह रावत और दूसरे रथ का नेतृत्व कर्नल डी. एस. बर्त्वाल ने किया। दोनों रथ अमर शहीदों की गाथा गाते हुए आज 23 नवम्बर को कफारतीर पहुंचे। शौर्य रथ के मार्गों पर लोगों व स्कूली छात्रों-छात्राओं ने सांस्कृतिक व देशभक्ति कार्यक्रमों का आयोजन किया। व रथ के साथ चल रहे वीर सैनिको को पुष्पहारों से सम्मानित किया। प्रथम विश्वयुद्ध से अभी तक शहीद हुए सभी शहीदों के छाया चित्र भी यहाँ लगाएं गए है।

1914 में जब जर्मन सेना को हराना मुश्किल हो रहा था तब अंग्रेजों ने गढ़वाल राइफल की 1/39 बटालियन जिसके नायक दरवान सिंह नेगी थे को युद्ध के लिए भेजा। इस सेना की टुकड़ी ने वहां जाकर जर्मन सेना के साथ बड़ी बहादुरी के साथ मुकाबला किया, जिसके चलते जर्मन सेना पीछे हटने लगी। इसी दौरान नायक दरवान सिंह के सिर व कंधे में गोलियां लगी किंतु वे किंचित भी खबराए नहीं और घायल होते हुए भी लड़ाई लड़ते रहे और अंत 24 नवंबर 2014 को जीत हासिल की। जीत के बाद उनको अस्पताल ले जाया गया जहाँ वे उपचार के बाद ठीक हुए। उनके इस अद्भ्य साहस और वीरता को देखते हुए अंग्रेज सेना ने उन्हें विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया। साथ ही यह भी कहा की आप जो चाहो मांग लो वो आपको मिलेगा। लेकिन इस साहसी व अपनी मातृभूमि के लिए समर्पित सिपाही ने गढ़वाल मंडल के कर्ण प्रयाग में एक इंग्लिश मीडियम स्कूल की स्थापना करने और ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बिछवाने की इच्छा जताई। उस वक्त गढ़वाल राइफल्स की दोनों बटालियन की 87 फीसद आबादी इन इलाकों से आती थी। इसके बाद 1918 में अंग्रेजों ने कर्ण प्रयाग मिडल स्कूल की स्थापना की। उत्तराखंड सरकार ने अब इसे इंटर तक कर दिया है। इसका नाम वीरचक्र दरवान सिंह राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज रखा गया। वहीं, 1918 से 1924 तक रेलवे लाइन बिछाने का सर्वे भी अंग्रेजों द्वारा किया गया। हालांकि तब जमीन की कमी के कारण यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका।

द्वारका चमोली