baglamukhi-jayanti-2021

बगलामुखी जयंती हर वर्ष वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष गुरुवार, 20 मई 2021 को मां बगलामुखी जयंती मनाई जा रही है। दस महाविद्याओं में माँ बगलामुखी की श्रेष्ठता समूचे जन समाज में मातृ शक्ति की विशिष्ट उपादेयता मानी जाती है। मातृ शक्ति की प्रेरणा से जीवन में आमूल चूल परिवर्तन आ जाता है। हमारे शास्त्र भी इसी तरह का संकेत देते हैं।

यत्र नार्येस्तु पुज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता अर्थात् जहाँ मातृशक्ति की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। नारी का अपमान करने से सम्पूर्ण कुल का विनाश हो जाता है।इसकी प्रमाणिकता हमारे धार्मिक ग्रन्थ रामायण व महाभारत भी देते हैं। हिन्दी साहित्य के छायावादी काव्य धारा के आधार भूत स्तम्भ माँ शक्ति के अनन्य उपासक महा कवि जयशँकर प्रसाद ने अपने महाकाव्य कामायानी में इस तरह से स्पष्ट किया।

नर से बढकर नारी

भक्तिकाल के प्रमुख कवि तुलसीदास अपनी पत्नी रत्नावली से बहुत प्रेम करते थे, लेकिन रत्नावली को अपने पति का इस तरह से वासनामय प्रेम अच्छा नहीँ लगता था। माँ भगवती की प्रेरणा से अपने पति से बोली।

  • अस्ति चर्म मम देहि मम,
  • तामे ऐसी प्रीति।
  • ऐसे जो श्री राम मँह,
  • होत न भव भीति।।

अर्थात् हे प्राण नाथ इस भौतिक शरीर के प्रति जो आपकाआकर्षण है, वह एक दिन नष्ट हो जाएगा। इससे अच्छा तो आप परम तत्व रुपी राम से प्रेम करें, इससे पूरे कुल का उद्वार हो जायेगा। पत्नी की इस प्रेरणा से तुलसी दास का जीवन बदल गया। साँसारिक मोह माया, भोग विलास से बिरक्त हो गये। उनके हृदय में रामभक्ति की धारा प्रस्फुटित होने लगी। महाकवि कालीदास के सन्दर्भ में भी इसी तरह का आनूठा उदाहरण देखने को मिलता है। कहा जाता है कि कालीदास बचपन में महामूर्ख थे। धोखे से इनका विवाह परम ज्ञानी विदुषी महिला राजकुमारी विद्योत्तमा से हो गया। वास्तविकता का बोध होने पर इन्हेँ घर से निकाल दिया। इस तरह की प्रताडना से कालीदास के जीवन में आमूल चूल परिवर्तन आ गया। उनके हृदय में माँ काली के प्रति असीम भक्ति उदित होने लगी। जिसके फलस्वरुप माँ काली की कृपा से सँस्कृत साहित्य के शिरोमणि तथा कवि कुल गुरु की उपाधि से विभूषित हुये।

नारी के बिना पुरुष की शक्ति अधूरी है। पूरी सृष्टि मे माँ भगवती रुपी एक ही चेतना शक्ति व्याप्त है। जो कि सृष्टि के कण कण में विद्यमान है। एक बार माँ भगवती ने निशुम्भ दैत्योँ का सँहार किया। निशुम्भ के भाई शुम्भ ने इस तरह से अपनी पराजय को देखकर देवी से कहा.. तुम अपने ऊपर मिथ्या ही गर्व कर रही हो। तुम्हारे साथ तो अनेक तरह कि शक्तियां हैं। इन्हीँ शक्तियोँ के कारण तुम्हेँ विजय श्री भी मिल रही है। हिम्मत है तो अकेले ही युद्ध करो। तब हम मान सकते हैं। तब देवी ने कहा…

  • एकैवाहँ जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा ।
  • पश्यैता दुष्ट मय्येव विशिन्त्यो मद्विभूतय:।।
  • तत:समस्तास्ता देव्यो ब्रह्माणीप्रमुखा लयम् ।
  • तस्या देव्यास्तनौ जग्मुरेकैवासीत्तदाम्बिका।।
  • दुर्गा सप्त शती दशमोध्याय-श्लोक 5-6

अर्थात् ओ दुष्ठ मैँ अकेली ही हूँ। इस सँसार में मेरे अतिरिक्त कोई दूसरी शक्ति नही है। ये मेरी ही विभूतियां हैं। मुझ में ही समाहित हो रही हैं। सारी देवियां अम्बिका के ही शरीर में लीन हो गयी। उस समय केवल एक मात्र अम्बिका देबी रह ग्ई।

इस प्रकार माँसर्वोपरि है। माँ के अतिरिक्त किसी अन्य की कोई सत्ता नही है। शास्त्रोँ मे अनेक रुपोँ में स्पष्ट करके अनेको नामोँ से अलँकृत करके माँ के गुणोँ का वर्णन किया गया है। जिसमें साधकोँ द्वारा माँ की कृपा प्राप्त करने के लिये अनेक प्रकार की गूढ रहस्यात्मक महाविद्यायोँ का वर्णन देखने को मिलता है।ये दस प्रकार की महाविद्यायें हैं जिनके नाम इस प्रकार से हैं-

  1. काली, 2. तारा, 3. छिन्नमस्ता, 4. षोडषी, 5. भुवनेश्वरी, 6. त्रिपुर भैरवी, 7. धूमावती, 8. बगलामुखी, 9. माँतगी, 10. कमला.

बगलामुखी जयंती 2021: शुभ मुहूर्त

बगलामुखी जयंती तिथि : 20 मई 2021

पूजा का शुभ समय : सुबह 11 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक.

पूजा की कुल अवधि : 55 मिनट.

दस महाविद्यायोँ में बगला मुखी को आठवीँ महा विद्या के रुप में जाना जाता है। बैसाख माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बगला मुखी जयन्ती मनाई जाती है। शक्ति प्रमोद ग्रन्थ में माँ बगला मुखी के स्वरुप का वर्णन इस प्रकार से देखने को मिलता है.

  • जिह्वाग्रमादाय करेण दिवीँ बामेन शत्रुन परिपीडयन्तीम्।
  • गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराख्याँ द्विभुजा नमामी।।

अर्थात् मैँ उस दो भुजा वाली देवी को नमन करता हूँ, जो अपने जीभ के अगले भाग को बाहर निकालते हुये बाँये हाथ से शत्रुओँ को पीढा पहुँचा रही है। दाँये हाथ में गदा धारण करके शत्रुओँ पर आघात कर रही है।

समय-समय पर बगला मुखी देवी की साधना सप्त ऋषियोँ ने भी की। इस महा विद्या को पीताम्बरा महाविद्या के नाम से भी जाना जाता है। साधकोँ को चाहिये कि पीले वस्त्र पहनकर माँ की अराधाना करें। माँ को पीले रँग के फूल, पीली चन्दन, पीले रँग की वस्तुओँ को अर्पित करें।

बगलामुखी के उत्पत्ति की पौराणिक कथा

शास्त्रोँ में बगला मुखी उत्तपत्ति का विवरण इस प्रकार से देखने को मिलता है- एक बार भगवान शँकर पार्वती से बोले-हे प्रिये! मैँ तुम्हेँ बगलामुखी की उत्पत्ति की कथा सुनाता हूँ. पहले कृत युग में पूरे सँसार का विनाश करने वाला भँयकर तूफान आया। उसे देखकर जगत की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु बडे ही चिन्तित हुये। इस आपदा को दूर करने के लिये सौराष्ट् देश में हरिद्रा सरोवर के समीप बैठकर माँ पीताम्बरा देवी को खुश करने के लिये कठोर तप किया। विष्णु भगवान के कठोर तपस्या से खुश होकर माँ पीताम्बरा ने बगला रुप में प्रकट होकर उस भँयकर आपदा का निवारण किया। इसी रात्रि में अर्धरात्रि के समय बगला मुखी देवी का अवतरण हुआ। यजुर्वेद के काठ सँहिता में इस देवी के बारे में कहा गया है। विराट दिशा को प्रकाशित करने वाली, विष्णु पत्नी, विष्णु की रक्षा करने वाली, वैष्णवी महाशक्ति त्रिलोक की ईश्वरी तथा महान बलशाली तथा मनौता कही जाती है। जिस दिन यह घटना घटी उस दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि थी। तभी से हर साल मां बगलामुखी की जयंती इसी तिथि को मनाई जाने लगी।

बगलामुखी देवी की आराधना करने वाला मनुष्य अपने शत्रु को मनमाना कष्ट पहुँचा सकता है। सभी कार्योँ में अद्भुत सफलता मिल जाती है। लेकिन ज्यादातर युद्व में, वाद विवाद में, शास्तार्थ में, मुकदमें एवँ प्रतियोगिता में विजय प्राप्त करने, शत्रुओँ को शीघ्रता से समन करने के लिये बगलामुखी देवी का अनुष्ठान तत्काल प्रभावशाली माना जाता है। इतिहास में इस बात का वर्णन भी मिलता है कि हैदराबाद के निजाम मुसलमान होते हुये भी माँ बगला मुखी में अगाध श्रद्वा रखते थे। उनके महल में माँ बगलामुखी का पूजा पाठ करने के लिये क्ई पीढियोँ तक ब्राह्मण परिवार नियुक्त रहा।

बगला मुखी का मूल मन्त्र 36 वर्णोँ का है। जो इस प्रकार से है

  • ऊ़ ह्रीँ बगलामुखी सर्वदुष्ठानाँ वाचँ मुखँ पटँ,
  • स्तम्भय जिह्वाँ कीलय बुद्धिँ विनाशय ह्रीँ फट् स्वाहा

साधको को चाहिये की बगला मुखी जयन्ती पर पीला आसान, पीले वस्त् पहनकर उत्तर दिशा की ओर मुँह करके रात्रि के 9 और 12 बजे के बीच बढीबड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ हल्दी की माला से 1100 बार इस मूल मन्त्र का जाप करें। जाप करने के बाद अपने मन ही मन में माँ के स्वरुप का इस प्रकार से ध्यान करें.

माँ पीले रँग की साडी वस्त्र,मुकुट,आभूषण एवँ माला धारण किये हुये है। ये हमारे क्रूर ग्रह, वैरी, दुश्मन, दानव को बाँये हाथ से पकडकर खीँच रही है। तथा दाँये हाथ से अपने शस्त्र से मार रही है। ऐसी दो भुजाओँ वाली देवी भगवती को मेरा नमस्कार है।

पूजा के दौरान इस प्रकार की सावधानियां बरतेँ-

  1. ब्रह्मचर्य ब्रत का पालन करें।
  2. अनावश्यक प्रचार प्रसार से बचेँ।
  3. भूमि में शयन करें।
  4. कम बोलेँ, मौन रहने का प्रयास करें।
  5. साधना की शुरुआत किसी शुभ मुहूर्त या चतुर्दशी से करें।

इस प्रकार बगला मुखी देवी की पूजा करने से सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। अकाल मृत्यु से रक्षा होती है। यश सम्मान में वृद्वि के साथ ही सभी प्रकार की सिद्वियोँ की प्राप्ति हो जाती है।

लेखक : अखिलेश चन्द्र चमोला