nanda-devi paati utsav

चमोली: उत्तराखंड में नंदा देवी विशेष पूज्यनीय है क्योंकि नंदा देवी का मायका उत्तराखंड के चमोली जिले में ही स्थित है। भाद्र मास की अष्टमी को उत्तराखंड के कुछ जिलों में पाती उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस समय नई फसल तैयार हो चुकी होती है और ग्रामवासी गीतों द्वारा अपनी ध्याण नंदा को मायके आने के लिए आह्वान करते है।

चमोली में चांदपुर पट्टी के चमोला गांव में भी तीन दिन के पाती उत्सव का आयोजन किया गया। जिसमे पहले दिन सुबह माँ नंदा के मंदिर में पूजा अर्चना की गई। तत्पश्चात ब्यूडा धोने के लिए गांव के सभी लोग सम्मिलित होकर मांगल गीत गाते हुए गांव के कुएं में एकत्रित हुए। जहाँ विधि-विधान के साथ ब्यूड़ों को धोया गया, फिर लाटू देवता उन्हें लेकर माँ के मंदिर में उसे स्थापित करते हैं। उसके बाद फिर से पूजा प्रारम्भ होती है इसीबीच कई देवता भी अवतरित होते है। और भक्त भक्ति में लीन होकर आनंद सागर में गोते लगाने लगते है। अगले दिन पूजा अर्चना के बाद चमोला ग्राम के लोग दो दिशाओं में जाने के लिए दो गुटों में बंट गए। एक गुट माँ उफ्रें देवी की पूजा के लिए प्रस्थान करता है तो दूसरा गुट केदारु देवता के दर्शनों के लिए निकलता है। वहां पहुंचकर वे उफ्रें देवी व् केदारु देवता की पूजा करने के पश्चात वही तैयार किये गए प्रसाद का भोग लगा उस प्रसाद को खुद भी ग्रहण करते है। वहां बने प्रसाद का स्वाद ही ऐसा होता है कि भक्तगण खुद को देवलोक में होने का अहसास करते है। प्रसाद लेने के बाद सभी लोग फिर से माँ नंदा देवी के मंदिर में हाजिरी लगा विश्राम के लिए अपने अपने घर चले जाते हैं। और फिर रात्रि जागरण के लिए मंदिर में उपस्थित होते हैं। महिलाओं द्वारा माँ नंदा के पौराणिक गीत लगाए जाते हैं। और देवी देवताओं को अवतरित होने का आग्रह करते है। उनके आग्रह व् भक्ति को देख देवलोक से देवता भी धरती पर अवतरित हो नाचने लगते हैं। और अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।  रात के दूसरे पहर में माँ नंदा का रूप धरे व्यक्ति धूप बत्ती लेकर अकेले ही गांव के ऊपर बने ज्वाल्पा देवी के पास जाते है। और फिर वापिस आ अपने स्थान में आकर अन्तर्ध्यान हो जाती है। उसके बाद ग्रामवासी नृत्य के द्वारा सबका मनोरंजन करते है। और महिलाएं लगातार मांगल और पौराणिक गीतों के द्वारा माँ नंदा को मायके की यादें दिलाती रहती है।  रात्रि के तीसरे पहर हित देवता जागृत होते हैं व् अपने रूप लावण्य एवं नृत्य से सबको अकृषित करते है। कुछ पल सबको सम्मोहित कर वे अपनी राह बना कुएं की तरफ निकल पड़ते है। और वहां स्नान कर एक बर्तन में पानी लेकर माँ नंदा और अन्य देवों के रूपों को स्नान करा माहौल को खुशनुमा बना देते है। इसके बाद चमोला ग्राम की महिलाएं व् ध्याणीयां कीर्तन करती है। तथा सुंदर मनाण निर्त्य के द्वारा जागरण को अंतिम चरण तक ले जाती है।nanda-devi

तीसरे दिन यानि नंदा अष्टमी को सभी लोग माता के मंदिर में आरती करने के बाद पयाँ की लकड़ी के साथ गांव के ऊपर एक खेत में जाकर उस लकड़ी पर कौणी ‘एक प्रकार की फसल’  की बालियों को लगा उसे पीले कपडे से ढक कर फिर ऊपर से चुनरी डाल स्त्री रूप दिया जाता है। और फिर उसकी पूजा कर आसमान में गरुड़ देव का इंतज़ार किया जाता है। जैसे ही गरुड़ देव के दर्शन हुए वैसे ही लाटू देवता माता के रूप को गोदी में उठा गांव की तरफ चल पड़ते है। पीछे पीछे तमाम देवता व् ग्रामवासी भी मां को विदा करने चल पड़ते है। फिर माता सभी के द्वार द्वार जाती है और सबको भेंट कर रोती है और अपना आशीर्वाद देती है।

चमोला में ये आयोजन हर तीसरे वर्ष होता है। इस वर्ष पूर्व प्रधान समीर मिश्रा व् वर्तमान प्रधान बबलू चमोली एवं  गांव की युवा ब्रिगेड के अथक प्रयासों से काफी दूर दूर से लोग इस आयोजन में सम्मिलित हुए। और माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर धन्य हुए।  कुल मिलकर आयोजन बहुत ही सफल व आनंदमय रहा।

ग्राम चमोला से द्वारिका चमोली की रिपोर्ट