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श्रीनगर गढ़वाल: अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन सभागार श्रीनगर गढ़वाल में लोक संस्कृति और सामाजिक सरोकारों से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओ की पहल पर शुक्रवार को पारम्परिक चैती गायन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मंच और आयोजन में ही सही उत्तराखंडी जनजीवन की गौरवशाली परम्परायें लौटकर आती दिखाई दे रही है। पहाड़ी जीवन शैली की यह विशिष्टता और विशेषता है कि वह पहाड़ों की भौगोलिक और मौसमी विविधताओं के अनुसार अपना रंग-रूप निखारती रहती है।

आज सारे पहाड़ में ‘फूलदेई’ का त्योहार मनाया गया है। ‘फूलदेई’ प्रकृति द्वारा आम जनमानस की खुशहाली के लिए शुभ-संदेशों के शुभारंभ का पवित्र दिन माना जाता है। चैत्र मास की संक्रांति के दिन से ही पहाड़ों के ‘परंपरागत चैती गायक’ बेटियों और बहुओं की ससुरालों में उनके मायके के कुशल-क्षेम के संदेश ‘चैती गीत’ के रूप में गांव-गांव में जाकर सुनाते हैं। यह दौर पूरे चैत्र मास में चलता रहता है।dr.-sanjay-pandey

श्रीनगर में प्रात:काल नगर में बच्चों की फूलदेई यात्रा और शाम को अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के सभागार में डॉ. संजय पांडेय, डॉ. लता तिवारी पांडेय, डॉ. सुभाष पांडेय और अन्य प्रसिद्ध कलाकारों ने पारम्परिक चैती गीतों से बारिश में भीगती शाम को और भी खुशनुमा बना दिया। इसके बाद लोक गायको ने पहाड़ो में गाए जाने वाले होली गीतों भी सुनाए। कार्यक्रम का संचालन वीरेन्द्र रतूड़ी ने किया।

इस आयोजन में अनूप बहुगुणा, महेश गिरी, जगमोहन कठैत, राजीव खत्री, गिरीश पैन्यूली, प्रदीप अथंवाल, गणेश बलूनी, मनोज कंडियाल, सुधीर जोशी, गंगा असनोड़ा, विनीत पोस्ती, अंजना भट्ट, दिनेश असवाल, दीपक उनियाल, उपासना भट्ट, राजीव विश्नोई, अजय सेमवाल, पीयूष धस्माना, शंकर कैथोलिक ने सहयोग दिया।

ऐगै बसन्त,मैना यु स्वाणु
ऐगै चैते बहार
सरसों फूलिगे,हरिया खेतों मा
छैगे चैते पहाड
हाँ भै हाँ, ॠतु ऐगै हेरी फेरी
हाँ भै रंगीली चैत की
याद मैते भौत ऐगे अपणा मैते की
भिटोली कु मैणा मेरी बैणा नी रैणा
ऐगे ॠतुरैणा ऐगै ॠतु रैणा
ये ॠतुरैण गीत है।।
हे चित्त रचणा तिन रचि,
हाँ भै हरि गोविन्दा
हे रामा कैन रचि यु सकल संसार भै हो।।
ये सदैई गीत है।।

अरुण कुकसाल

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