UTTARAKHAND LAND LAW: विधानसभा सत्र के चौथे दिन आज उत्तराखंड में भू-कानून संशोधन पारित कर दिया गया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड भू-कानून को लेकर उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था संशोधन विधेयक 2025 सदन के पटल पर रखा। जिस पर विपक्ष ने चर्चा की मांग की। चर्चा के बाद भू-कानून को पारित कर दिया गया।
इससे पहले भू कानून पर सीएम धामी ने जानकारी दी। सीएम धामी ने सदन में जानकारी देते हुए कहा उनकी सरकार ने ऐतिहासिक निर्णय लिये हैं। लोगों की जनभावनाओं के अनुरूप निर्णय लिये जा रहे हैं। उत्तराखंड के संसाधनों को भू माफिया से बचाने के लिए कोशिशें की जा रही हैं। सीएम धामी ने कहा उत्तराखंड में पहाड़ी इलाकों के साथ ही मैदानी इलाके भी हैं। जिनकी भौगोलिक परिस्थितियां अगल अलग हैं। इसके साथ ही इन्वेस्टर्स को भी ध्यान में रखा जा रहा है। इन सभी मुद्दों को समाहित करते हुए सरकार ने भू सुधार की नींव रखी है। सीएम धामी ने कहा ये एक शुरुआत है। इसके बाद इसमें आगे भी काम किया जाएगा।
सीएम धामी ने कहा पिछले कुछ सालों में बाहरी लोगों ने जमीनें खरीदी। जिसका उपयोग नहीं किय़ा जा रहा था। इस कानून के लागू होने के बाद ये समस्या नहीं होगी। इससे भू माफिया को पहचानने में मदद मिलेगी। सीएम धामी ने कहा प्रदेश सरकार लगातार अतिक्रमण हटाने का काम कर रही है। उन्होंने कहा प्रदेश सरकार इकोनॉमी और ईकोलॉजी को ध्यान में रखकर काम किया जा रहा है। सीएम धामी ने सदन में भू कानून को लेकर विस्तार से जानकारी दी।
ये हैं नए प्रावधान
- इसमें 2018 में तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार के 12.50 एकड़ से अधिक भूमि खरीद के प्रावधान को भी समाप्त कर दिया।
- इस कानून के लागू होने के बाद राज्य से बाहर के लोग हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जिले को छोड़ बाकी 11 जिलों में कृषि और बागवानी की भूमि नहीं खरीद पाएंगे।
- भूमि खरीद की अनुमति में जिलाधिकारी के अधिकार को सीमित कर दिया है। अब जिलाधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से भूमि खरीद की अनुमति देने का अधिकार नहीं होगा। भूमि खरीद की अनुमति अब शासन ही देगा।
- सभी मामलों में सरकार के बनाए गए पोर्टल के माध्यम से प्रक्रिया पूरी करनी होगी।
- राज्य के बाहर के लोगों को घर बनाने के लिए निकाय क्षेत्रों से बाहर 250 वर्ग मीटर जमीन खरीदने की अनुमति होगी, लेकिन एक परिवार का एक सदस्य जीवन में एक बार ही भूमि खरीद सकेगा।
- भूमि खरीद के समय यह शपथपत्र देना अनिवार्य होगा कि उसके या उसके परिवार के किसी भी सदस्य ने भूमि नहीं खरीदी है। नगर निकाय सीमा के अंतर्गत आने वाली भूमि का उपयोग केवल निर्धारित भू उपयोग के अनुसार ही किया जा सकेगा। यदि किसी व्यक्ति ने नियमों के खिलाफ जमीन का उपयोग किया तो वह जमीन सरकार में निहित हो जाएगी।
- विधेयक में यह प्रावधान भी किया गया है कि सभी जिलाधिकारियों को राजस्व परिषद और शासन को नियमित रूप से भूमि खरीद से जुड़ी रिपोर्ट सौंपनी होगी।
- कृषि भूमि का भू-उपयोग परिवर्तन तभी संभव होगा, जबकि सरकार इसकी अनुमति देगी।
- कृषि भूमि पर प्लॉटिंग करने वालों पर हो सकेगी कड़ी कार्रवाई।
23 साल में कई बदलावों से गुजरता रहा उत्तराखंड का भू-कानून
उत्तराखंड राज्य गठन के दो साल बाद बना भू-कानून 23 साल में कई बदलावों से गुजर चुका है। उत्तर प्रदेश से अलग होकर राज्य बनने के बाद भी उत्तराखंड में यूपी का ही कानून चल रहा था, जिसके तहत उत्तराखंड में जमीन खरीद को लेकर कोई पाबंदियां नहीं थीं। वर्ष 2003 में एनडी तिवारी की सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधार अधिनियम, 1950 (अनुकूलन एवं उपांतरण आदेश 2001) अधिनियम की धारा-154 में संशोधन कर बाहरी लोगों के लिए आवासीय उपयोग के लिए 500 वर्गमीटर भूमि खरीद का प्रतिबंध लगाया। साथ ही कृषि भूमि की खरीद पर सशर्त प्रतिबंध लगा दिया था। जिस एनडी तिवारी सरकार ने 2002 में भू-कानून बनाया था, उसने ही 2004 में इसे सख्त करते हुए संशोधन किया था। तिवारी सरकार ने यह प्रतिबंध भी लगाया था कि जिस परियोजना के लिए भूमि ली गई है, उसे दो साल में पूरा करना होगा। बाद में परियोजना समय से पूरी न होने पर कारण बताने पर विस्तार दिया गया।
उसके बाद जनरल बीसी खंडूड़ी की सरकार ने वर्ष 2007 में भू-कानून में संशोधन कर उसे और सख्त बना दिया। सरकार ने आवासीय भूमि खरीद की सीमा 500 से घटाकर 250 वर्गमीटर कर दिया। कानून में सबसे ज्यादा छूट 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने बढ़ाई थी। 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने कानून में संशोधन कर, उद्योग स्थापित करने के उद्देश्य से पहाड़ में जमीन खरीदने की अधिकतम सीमा और किसान होने की बाध्यता खत्म कर दी थी। साथ ही, कृषि भूमि का भू-उपयोग बदलना आसान कर दिया था। पहले पर्वतीय फिर मैदानी क्षेत्र भी इसमें शामिल किए गए थे।