टिहरी डैम: उत्तराखंड के टिहरी जिले में बने एशिया के दूसरे सबसे ऊँचे बांध “टिहरी डैम” में इन दिनों बांध की झील का जलस्तर कम हो गया है। पानी कम होने से पुरानी टिहरी के अवशेष दिखने लगे हैं। इसके साथ ही टिहरी नरेश का 208 साल पुराना राजमहल भी डैम की झील में उभर आया है। टिहरी झील का जलस्तर न्यूनतम 740 आरएल मीटर तक पहुंचने से पुरानी टिहरी का राजमहल दिखने लगता है। टिहरी डैम में पुराना राजदरबार, कौशल राज दरबार, रानी निवास महल, श्री देव सुमन स्मारक, घंटाघर, सेमल तप्पड़, गांधी स्मारक, स्वामी रामतीर्थ समारक समेत कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल डूब चुके हैं, लेकिन जब भी डैम का जलस्तर कम होता है। ये पानी की सतह पर नजर आने लगते हैं।
टिहरी डैम की झील का जलस्तर कम होने पर राजा सुदर्शन शाह के द्वारा बसाई गई पुरानी टिहरी का राजमहल और रानी दरबार के हिस्से दिखने लगे हैं। इसे देखकर लोग भावुक हो गए हैं। हालांकि अब पुरानी टिहरी सिर्फ यादों और इतिहास के पन्नों में है। लेकिन जैसे ही टिहरी डैम की झील का जल स्तर कम हुआ, पुरानी टिहरी राजमहल के कुछ हिस्से दिखने लगे हैं। ये नजारा देखने के लिये लोग पहुंच रहे हैं। टिहरी डैम की झील का जल स्तर कम होने पर पुरानी टिहरी में डूबे खेत खलियान मकान दिखने लगते हैं। जिनको देखने के लिये नई टिहरी, देहरादून और ऋषिकेश में बसाए गए पुरानी टिहरी के लोग आते हैं। पुरानी टिहरी में रहने वाले लोगों के दिलों में इस राजमहल को देखकर पुरानी टिहरी की यादें ताजा हो जाती हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक टिहरी झील में डूबे राजमहल को देखने के लिए आते हैं।
आज भी लोगों को पुरानी टिहरी के प्रति इतना प्रेम है कि वो अपने शहर को याद करते हुये भाव विभोर हो जाते हैं। पुरानी टिहरी के राजमहल को देखने आए पुरानी टिहरी के लोग कहने लगे कि बांध का जलस्तर कम होने से जब पुरानी टिहरी दिखाई देती है तो आंसू आ जाते हैं। लोगों के अनुसार पुरानी टिहरी तो स्वर्ग थी, जिसे त्रिहरी कहते थे। ऐसी मान्यता थी कि इस जगह पर तीनों हरि ब्रह्मा, विष्णु और महेश स्नान करने आते थे। इसलिये इसे त्रिहरी कहते थे।
बता दें कि पुरानी टिहरी शहर को देशहित के लिये जल समाधि लेनी पड़ी थी। पुराना टिहरी शहर तीन नदियों भागीरथी, भिलंगना और घृत गंगा जो विलुप्त हो गई थी, से घिरा हुआ था। इसीलिए इसको त्रिहरी नाम से पुकारते थे। बाद में इसे टिहरी नाम से जाना जाने लगा। टिहरी शहर को राजा सुदर्शन शाह ने 28 दिसम्बर 1815 में बसाया था। कहा जाता है कि जब टिहरी शहर को बसाया गया था तो उस समय ज्योतिषि ने कहा कि ये शहर अल्पायु होगा।
1972 में निर्माण, 2006 में शुरू हुआ उत्पादन
बता दें कि साल 1965 में तत्कालीन केंद्रीय सिंचाई मंत्री के.राव ने टिहरी डैम बनाने की घोषणा की। साल 1972 में टिहरी बांध के निर्माण को मंजूरी मिली थी और 1977-78 में बांध का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। लेकिन आर्थिक, पर्यावरणीय आदि प्रभाव के कारण इसमें देरी हुई। 29 जुलाई 2005 को टिहरी शहर में पानी घुसा, करीब सौ परिवारों को अंतिम रूप से शहर छोड़ना पड़ा। 29 अक्टूबर 2005 को टिहरी बांध की आखिरी सुरंग बंद हुई और पुराने टिहरी शहर में जल भराव शुरू होने के साथ ही झील बननी शुरू हुई। 30 जुलाई 2006 में टिहरी डैम से बिजली का उत्पादन शुरू होने लगा।
बांध के निर्माण में डूबे थे 37 गांव
इस जल विद्युत परियोजना के लिए पुराने टिहरी शहर को जलमग्न होना पड़ा था। इसमें 125 गांवों पर असर पड़ा था। इस दौरान 37 गांव पूर्ण रूप से डूब गए थे जबकि 88 गांव आंशिक रूप से प्रभावित हुए थे। इन इलाकों में रहने वाले लोगों को नई टिहरी और देहरादून के आस-पास के क्षेत्रों में विस्थापित किया गया था।
टिहरी बाँध भारत का सबसे ऊँचा तथा विशालकाय बाँध
टिहरी बाँध भारत का सबसे ऊँचा तथा विशालकाय बाँध है। भागीरथी नदी पर बने टिहरी बाँध की ऊँचाई 261 मीटर है जो इसे विश्व का पाँचवा सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। टिहरी बांध का झील क्षेत्र 42 वर्ग किमी लंबा है। जबकि बांध दीवार की शीर्ष पर लंबाई 575 मीटर है। बांध दीवार की शीर्ष पर चौड़ाई 25.5 मीटर से 30.5 मीटर तक फैलाव है। बांध दीवार की तल पर चौड़ाई 1125 मीटर है। इसका उपयोग सिंचाई तथा बिजली पैदा करने हेतु किया जाता है।
दिल्ली और यूपी को बिजली के साथ साथ पेयजल भी उपलब्ध कराता है बांध
वर्तमान में इसकी स्थापित क्षमता 2400 मेगावाट है। इस बाँध से 2400 मेगावाट विद्युत उत्पादन, 2,70,000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखण्ड को उपलब्ध कराना है। ‘भारत सरकार’ ने यहाँ अतिरिक्त 1000 मेगावाट की इकाई लगाने की मंज़ूरी दे दी है। टिहरी बाँध परियोजना पर केंद्र सरकार ने 75 प्रतिशत व राज्य सरकार ने 25 प्रतिशत धन व्यय किया है।
टिहरी जल विद्युत परियोजना के अंतर्गत तीन मुख्य इकाइयाँ स्थापित की गयी हैं-
- टिहरी बाँध और जल विद्युत इकाई – 1000 मेगावाट
- कोटेशवर जल विद्युत परियोजना – 400 मेगावाट
- टिहरी पम्प स्टोरेज परियोजना – 1000 मेगावाट
इस खबर को लिखते समय गढ़रत्न सुरसम्राट नरेन्द्र सिंह नेगी की टिहरी डूबने के दौरान लिखी कालजई रचना सहसा मेरे जेहन में आई तो सोचा कि आदरणीय नेगी जी के इस कर्णप्रिय लोकगीत को भी इस मौके पर आप लोगों के साथ शेयर कर दूँ।
डाम का खातिर
“अबारी दाँ तू लम्बी छुट्टी लेकी आई, ऐगे बगत अखीर
टेहरी डुबण लग्युं चा बेटा, डाम का खातिर
भेंटी जा, यूं गौला ग्विडौं जौं मा, खेलि की सयाणु ह्वेवे तू,
ग्वाया लगेनी, जै डण्ड्याली, जै चौक, जौं बाटौं आणु जाणु रै तू…..”
लहसन प्याजे की बाडी सगोड़ी, सेरा दोखड़ी पुंगुड़ी
डूबी जाली पानी मा भोळ , बाब दादों की कूड़ी
आंखयों मा रींगणी राली सदानी, हमारी तीबारी सतीर
टेहरी डुबण लग्युं चा बेटा, डाम का खातिर..
पितृओं कु बसायुं गौंऊँ, सैंत्युं पाल्युं ब्वाण,
धारा मंगरा, गोठ्यार, चौक, कन क्वे की छुडण
कंठ भोरिक आंदु उमाळ, औ बंधे जा धीर
हे नागराज, हे भैरों तुम्हार , हमुंन क्या जी ख्वायी
हे बोलांदा, बदरी त्वेना, कख मुक लुकाई
कख मूक लुकाई. हे विधाता कन रूठी नी हम्कू , देब्तों का मन्दिर
टेहरी डुबण लग्युं चा बेटा, डाम का खातिर…
राज्जा को दरबार, घंटाघर, आमों का बागवान
कन डूबलों यो टेहरी बाजार , सिंगोरियुं की दूकान
सम्लोंया रह जाली भोळ, साखीयो पुरानी जागीर
टेहरी डुबण लग्युं चा बेटा, डाम का खातिर…