Teacher-Kusum-Lata-Garia

जीवन की शिक्षा घर से निकल विद्यालय से आरम्भ होती है। जहाँ ज्ञान के साथ-साथ मानसिक विकास भी किया जाता है। लेकिन सही वातावरण व शिक्षक न मिले तो नीव कमजोर रह जाती है। उत्तराखंड के अधिकांश स्कूल पहले ज़र्ज़र हालत में थे और माहौल भी पढाई लायक नहीं था। किन्तु अब कुछ शिक्षकों के प्रयास से हालत सुधर रहे हैं। शिक्षा के कारण पलायन झेल रहे गांवों को इन शिक्षकों के अथक प्रयासों से एक आस जगी है कि उनके बच्चों को भी अब एक आदर्श विद्यालय गांव में ही प्राप्त हो जायेगा और उनकी शिक्षा भी उत्तम मानक पर होगी जिससे वे भविष्य में एक आदर्श स्थापित कर सकें।

उत्तराखंड में चमोली जिले के नागनाथ पोखरी ब्लॉक के वीणा (ब्योणा) गांव के उच्चतर प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका कुसुम लता गरिया ने वो कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। जब उनकी नियुक्ति इस स्कूल में हुई तो स्कूल बड़ी ही दयनीय स्थिति में था चूंकि शिक्षिका कुसुम को चुन्नौतियों से लड़ना अच्छा लगता है। इसलिए उन्होंने इसे भी एक चुन्नौती के रूप में लिया और स्कूल की हालत बदलने का मन बना लिया। लेकिन इसके लिए सरकारी मदद मिलना एक टेढ़ी खीर थी तो उन्होंने निर्णय लिया कि वे स्वयं के खर्चे पर अपने इस स्कूल का कायाकल्प करेंगी। फिर उन्होंने इसके लिए अपने स्टाफ से बात की और धीरे-धीरे सबके साथ मिलकर स्कूल प्रांगण में सुंदर पुष्प लगाने शुरू किये और बिल्डिंग की मरम्मत करवाकर उसमें लिपाई-पोताई कराकर तथा बच्चों के साथ मिलकर स्वयं ही दीवारों को पेंटिंग से सजाया। चूँकि वो खुद मंडाला आर्ट की अच्छी जानकार है, तो बच्चों को वो पेंटिंग में भी निपुण करने का काम कर रही है। उनसे बात करने पर मालूम हुआ कि शुरू में उन्होंने खुद के 80,000 रूपये लगाकर स्कूल में मामूली सुधार किया और इसमें उनके सहयोगी विनोद कुमार मैखुरी व भोजन माता तथा बच्चों ने उनको भरपूर सहयोग दिया। उनकी मेहनत व कार्यप्रणाली को देखते हुए SMC आगे आई, जिन्होंने स्कूल के विकास के लिए 20,000 रूपये और जिला पंचायत ने 3,50000 रूपये प्रदान किए। दैवी आपदा एवं जिला योजना से भी उन्होंने अपने निजी प्रयासों से स्कूल के लिए चार लाख की राशि उपलब्ध करवाई। जिसका परिणाम है कि आज स्कूल एक आदर्श विद्यालय की तरह नज़र आता है। यही नहीं बच्चों को शिक्षित करने के साथ-साथ वह उनके मानसिक व शारीरक स्वास्थ्य के लिए नियमित योगा कराने के साथ साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों व कविताओं के माध्यम से अच्छे संस्कार भरने के अलावा बौद्धिक क्षमता बढ़ाने का पूरा प्रयास जारी रखे हुए है। जिसका नतीजा ये है कि विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्कूल की उपलब्धि के विषय में लिखा भी गया है। शिक्षिका कुसुम लता अपने सहयोगियों के साथ मिलकर कोरोना काल में भी जरुरत मंदों को सहायता मुहैया कराने का कार्य जारी रखे हुए है।

शिक्षिका कुसुम लता गैरिया की तरह सोच यदि हर शिक्षक व नागरिक रख ले तो उत्तराखंड से न केवल पलायन रुकेगा अपितु गांवों का विकास भी निश्चित होगा। हम उम्मीद करते हैं कि शिक्षिका कुसुम लता से प्रेरणा लेकर अन्य लोग व विद्यार्थी अपने प्रदेश को उन्नत बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगे।

रिपोर्ट: द्वारिका चमोली (डीपी)