Navratri after one month of Pitra Paksha

ज्योतिषीय दृष्टि से सितंबर 2020 का महीना पूरे विश्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण होने वाला है कारण यह कि दो छाया ग्रह राहु और केतु राशि परिवर्तन करेंगे साथ ही 160 वर्ष बाद ऐसा दुर्लभ संयोग आ रहा है जब श्राद्ध पक्ष के एक महीने बाद शारदीय नवरात्रि प्रारंभ होंगे जिसका प्रभाव पूरे विश्व के जनजीवन पर पड़ेगा। वैसे तो हर साल पितृ पक्ष के समाप्त होने के अगले दिन से नवरात्र का आरंभ हो जाता है। परन्तु इस वर्ष 17 सितंबर को पितृ मोक्ष अमावस्या के अगले दिन से नवरात्र की शुरुआत नहीं होगी। इसके लिए एक महीने का इंतजार करना होगा। नवरात्र की शुरुआात 17 अक्टूबर को होगी। इसका कारण इस साल अधिमास का होना है।

राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज आईडीपीएल के संस्कृत प्रवक्ता आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल ने बताया 18 महीने बाद 23 सितंबर 2020 को हमेशा वक्र गति में चलने वाले राहु ग्रह मिथुन राशि को छोड़कर दैत्य गुरु शुक्र की वृष राशि में प्रवेश करेंगे तथा केतु उन से ठीक 180 डिग्री के कोण पर मंगल की वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। इस बड़ी खगोलीय घटना का पूरे जनमानस पर असर पड़ेगा। साथ ही 160 वर्ष बाद ऐसा दुर्लभ संयोग आ रहा है, जब श्राद्ध पक्ष के तुरंत बाद नवरात्रि प्रारंभ नहीं होगी। क्योंकि 18 सितंबर से अधिक मास प्रारंभ हो जाएगा जिसकी समाप्ति 16 अक्टूबर को होगी, तब 17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र प्रारंभ होंगे।

उत्तराखंड ज्योतिष रत्न डॉक्टर चंडी प्रसाद आगे बताते हैं कि ऐसा लीप वर्ष होने की वजह से हो रहा है। इसलिए इस बार जो चातुर्मास हमेशा 4 महीने का होता है इस बार 5 महीने का होगा। 160 वर्ष बाद यह दुर्लभ संयोग पड़ रहा है जब लीप वर्ष और अधिक मास दोनों 1 साल में हो रहे हैं। इस काल में पूजा पाठ व्रत उपवास और साधना का विशेष महत्व होता है। इस दौरान देवता सो जाते हैं जो देव उत्थान एकादशी के दिन जागृत होते हैं। इस कारण दीपावली भी इस वर्ष 14 नवंबर को होगी और 25 नवंबर को देवोत्थान एकादशी के साथ ही चातुर्मास  की समाप्ति होगी।

क्या होता है अधिक मास

ज्योतिष शास्त्र में बड़े हस्ताक्षर आचार्य चंडी प्रसाद बताते हैं की एक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है जबकि एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। यह अंतर हर 3 वर्ष में लगभग 1 माह के बराबर हो जाता है। इस अंतर को दूर करने के लिए हर 3 साल में एक चंद्रमास अतिरिक्त बन जाता है। जिससे अतिरिक्त होने की वजह से ही अधिक मास कहा जाता है। इस माह में कोई सूर्य संक्रांति न पड़ने के कारण इसे मलिन मास भी कहा जाता है इसमें शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं।

  क्या है इस मलमास का पौराणिक महत्व

श्रीमद् भागवत व्यास पीठ पर विराजमान होने वाले आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं कि जब पृथ्वी लोक पर हिरण्यकशिपु ने अत्याचार किए और ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि मैं ना तो दिन में मारा जाऊं, ना रात में मारा जाऊं, न पक्ष में मारा जाऊं, न महीने में मारा जाऊं, न किसी मनुष्य अथवा देवता से मारा जाऊं। तब भगवान ने उसे मारने के लिए नरसिंह अवतार लिया और ब्रह्मा जी की बात को रखने के लिए अतिरिक्त एक महीना अधिक मास के नाम से बनाया। भगवान का अवतार होने की वजह से इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। इस महीने में भगवान की कथाएं सुनना सत्संग मंत्र यंत्र की सिद्धि बहुत उत्तम मानी जाती है सिर्फ विवाह मुंडन जनेऊ जैसे शुभ संस्कार वर्जित होते हैं।

मुख्यमंत्री द्वारा ज्योतिष वैज्ञानिक सम्मान से सम्मानित आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं कि राहु के देते गुरु शुक्र की राशि में जाने से तथा केतु के ग्रहों में सेनापति मंगल के घर पर जाने से कई आकस्मिक घटनाएं घटित होंगी। जिससे मिथुन, कर्क, कन्या, मकर और मीन राशि के जातकों के लिए शुभ, जबकि मेष, वृष, सिंह तथा धनु राशि के जातकों के लिए सामान्य, वहीँ वृश्चिक और कुंभ राशि के जातकों के लिए आकस्मिक घटनाओं का योग बनेगा। 18 महीने के लिए हो रहे राहु केतु के इस राशि परिवर्तन से कई राज्यों में सत्ता प्रभावित होगी।