बोलांदा बदरीश टिहरी महाराज करते हैं कपाट खोलने की तिथियों का निर्धारण
देश के चार धामों में एक उत्तराखंड के विश्व प्रसिद्ध धाम श्री बदरी विशाल के द्वार शीतकाल में बंद किये जाने और ग्रीष्म काल में एक नियत तिथि को खोले जाने की सदियों पुरानी सनातन परम्परा है। पूर्व की भांति इस वर्ष भी मंदिर के कपाट नियत तिथि को बंद किये जा चुके थे। लेकिन इस बार जब मंदिर के कपाट खोलने का समय निकट आया तो वैश्विक महामारी कोरोना का वायरस पूरे देश में अपने पैर पसार चुका है। हालात यह हैं कि देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से भगवान बदरी विशाल के कपाट खुलने की तिथि में आंशिक बदलाव करना पड़ा। लेकिन कपाटोउद्घाटन की तिथि में हुआ परिवर्तन कुछ लोगों के गले नहीं उतर पा रहा है।
उत्तराखंड ज्योतिष रत्न आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल का इस संदर्भ में कहना है कि भगवान बदरी विशाल के द्वार खोलने की 15 मई की तिथि महाराजा टिहरी द्वारा तय की गई सर्वोत्तम तिथि है। हमारी सनातन परम्परा और संस्कृति के अनुसार महाराज टिहरी द्वारा तय तिथि 15 मई में किसी प्रकार का कोई भी दोष नहीं है। इस तिथि में शुभ ही शुभ संकेत मिल रहे हैं। भगवान बदरीनाथ धाम की परम्पराएं, बदरीनाथ जी की पूजा के संदर्भ में एक श्लोक है।
भगवान बदरीनाथ धाम की परम्पराएं, बदरीनाथ जी की पूजा के संदर्भ में एक श्लोक है।
वैशाखे मासि ते देवाः गच्छन्ति निज मंदिरम्।
कार्तिके तु समागत्य पुनरर्चां चरन्ति च।।
ततो वैसाखमारभ्य मानवा: हिम-संक्षयात्।
लभन्ते दर्शनं पुण्यं पाप कर्म विवर्जिता:।
षण्मास दैवतैः पूज्या षण्मासं मानवैस्तथा।
अर्थात वैशाख मास से कार्तिक मास तक भगवान मनुष्यों के द्वारा पूजित होते हैं तथा तत्पश्चात नारद जी द्वारा बदरीनाथ जी देवताओं की ओर से पूजित होते हैं। श्लोक में ध्यान दिया जाए तो वैशाखे शब्द में सप्तमी विभक्ति एकवचन है जिस के दो अर्थ होते हैं यानी वैशाख में या वैशाख बीतने पर और पुनः मासि शब्द में भी सप्तमी एकवचन का प्रयोग किया गया है जिससे स्पष्ट होता है कि प्रथम “वैशाख मास में” के लिए प्रयोग किया गया है और पुनः वैशाख मास बीतने पर” अर्थात जेष्ठ मास के लिए प्रयोग किया गया है और यही अर्थ “कार्तिके” यानी कार्तिक बीतने पर अर्थात मार्गशीर्ष मास में देव पूजन प्रारंभ होता है और प्रत्यक्ष तह देखा जाता है कि कभी भी कार्तिक मास में आज तक कपाट बंद नहीं हुए हैं मार्गशीर्ष मास में कपाट संक्रांति से लेकर 15 दिन तक (15 नवंबर से 30 नवंबर पर्यन्त) कपाट बंद करने की परंपरा है।
वृश्चिकार्धे गतेसूर्ये बैखानस समाह्वया।
तीर्थांदुपरिनवस्तव्यं समस्ते: विष्णुवल्लभै:।
वैशाख एवं कार्तिक सौरमान का अभिप्राय सूर्य संक्रांति से है, आज भी कपाट बंद की प्रक्रिया में कार्तिक मास पूर्ण होने पर मार्गशीर्ष माह में संक्रांति के दिन या इससे ऊपर कुछ दिनों तक मनुष्यों द्वारा भगवान बद्रीनाथजी पूजित होते हैं।
जिस प्रकार कार्तिक बीतने पर मार्गशीर्ष में भगवान की पूजा होती है उसी प्रकार वैशाख मास बीतने पर जेष्ठ में भी भगवान की पूजा कई बार प्रारंभ हुई है।
उपरोक्त श्लोक में हिम-संक्षयात् का भाव यह है कि बहुत अधिक बर्फ होने पर या कोई कठिन परिस्थिति होने पर श्रीधाम के कपाट वैशाख बीतने पर खोले जाएं। राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज आईडीपीएल में संस्कृत के प्रवक्ता डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल कहते हैं कि अब जो लोग कह रहे हैं कि जेष्ठ मास में कपाट कभी नहीं खुले हैं और यह परंपरा तोड़ी जा रही है उनकी जानकारी के लिए कुछ आंकड़े इस प्रकार हैं।
1983 – 15 मई कपाट खुले
1991 – 18 मई कपाट खुले
1994 – 15 मई कपाट खुले
2002 – 17 मई कपाट खुले
2010 – 19 मई कपाट खुले
उपरोक्त तिथियों पर इतिहास में जब भी कपाट खुले हैं तब जेष्ठ संक्रांति के बाद ही खुले हैं। ज्योतिष में बड़े हस्ताक्षर डॉक्टर घिल्डियाल बताते हैं कि वर्ष 1996 में 25 अप्रैल को और वर्ष 1992 में 30 अप्रैल को कृष्ण पक्ष में भी कपाट खोले गए हैं। अतः सर्वाथा गलत है कि कृष्ण पक्ष में कपाट कभी नहीं खोले गये। श्री बद्रीनाथ जी की परंपरा सौरमान से बद्ध है। वृश्चिक का सूर्य होने पर कपाट बंद की परंपरा लिखी गई है।
वस्तुतः आज भी जोशीमठ श्री नरसिंह मंदिर में संक्रांति पर्व पर ही विशेष हवन पूजन होता है एवं बद्रीनाथ में लक्ष्मी जी की कढ़ाई (विशेष पूजन) संक्रांति में ही परंपरा अनुसार संपूर्ण उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में व नेपाल में सौरमान ही प्रचलित था जिसे गते या प्रविष्टा कहते थे। इसी से माह के दिनों की गणना होती थी आज भी दूरस्थ गांव में परंपरा यथावत है। जैसा कि आज की गणना अंग्रेजी माह एवं तारीखों में होती है अतः संक्रांति से संक्रांति तक माह गिनती रही है और सौरमान से ही दिनों का निर्धारण गते के रूप में होता था। इसी परंपरा में श्री बद्रीनाथ जी के कपाट खोले जाते हैं और बंद किए जाते हैं। बद्रीनाथ जी की परंपरा निश्चित रूप से सौरमान की है।।
चंद्रमास की स्थिति दो प्रकार से देखी जाती है पूर्णिमांत कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तक पूर्णिमांत चांद्रमास प्रचलित है जिसके अनुसार वैशाख कृष्ण पक्ष इस वर्ष 9 अप्रैल से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक यानी 7 मई तक चंद्रमास है।
शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या पर्यन्त अमांत चांद्रमास होता है इसी से वर्ष प्रारंभ व समाप्त होता है जैसे इस वर्ष संवत्सरारंभ वर्ष प्रतिपदा 25 मार्च 2020 को थी। वर्ष का राजा भी बुध इसी प्रतिपदा का वार होता है और इस प्रकार अमांत चैत्र मास 23 अप्रैल को समाप्त हुआ। अमांत वैशाख 24 अप्रैल से 22 मई तक है। महीनों के नाम भी इसी अमांत के मध्य जो पूर्णिमा होती है उसी नक्षत्र से बनते हैं जैसे पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में होने से चैत्रमास, पूर्णिमा विशाखा नक्षत्र में होने से वैशाख मास पूर्णिमा जेष्ठा नक्षत्र में होने जेष्ठ मास…।
यदि तिथियां देखें तो पूर्णिमा की संख्या 15 अर्थात आधा माह एवं अमावस्या की संख्या 30 लिखी जाती है यही पंचांग की परंपरा है।।
इस दृष्टि से 15 मई को अमांत वैशाख अष्टमी तिथि है अतः इस तिथि को वैशाख नहीं मानने का कोई कारण नहीं रह जाता है। 14 मई को सूर्य वृष राशि में सायं 5:16 पर प्रवेश कर रहे हैं यही संक्रांति काल है। सूर्य उदय के समय जो दिन हो वही तिथि, वार और नक्षत्र का होता है।
क्योंकि संक्रांति के बाद सूर्य उदय 15 तारीख को होंगे। सूर्योदय संक्रांति काल तक संक्रांति पर्व ही होगा। सूर्य उदय के बाद ही दो गते कही जाएगी। जबकि कपाट प्रातः काल 4:30 बजे उषाकाल में अर्थात सूर्योदय से पूर्व खोले जा रहे हैं। गुरुवार एवं अष्टमी तिथि के संयोग से विष योग कहा गया है किंतु प्रथम दृष्टया उदयकालिक सप्तमी तिथि का प्रभाव अग्रिम सूर्योदय तक होगा सूर्योदय के पश्चात अष्टमी तिथि कहलाई गई है। विष योग का प्रभाव 14 तारीख मध्यान्ह के बाद समाप्त हो जाता है।
यमघण्टे त्यजेदष्टौ मृत्यौ द्वादशनाडिका: अन्येषां पापयोगानां मध्याह्नात् परत: शुभम्। दोषास्तवेते न रात्रिषु।।
अतः 14 मई 2020 को मध्यान्ह के बाद कोई भी दोष नहीं रह जाता है। लग्न शुद्धि पर पूर्ण ध्यान दिया गया है अतः विष योग का कोई मतलब ही नहीं रह जाता है। अपितु यहां अमृतयोग कि प्राप्ति दिखाई देती हैं।
गुरुवार को जया तिथि का प्राप्त हो जाना अमृत योग होता है अतः कपाट अमृत योग में खोले जा रहे हैं। कपाट उद्घाटन के समय धनिष्ठा और गुरुवार के संयोग से श्रीवत्स योग भी बन रहा है जो अतिशुभ योग है।।
प्रथम गवर्नर सम्मान से सम्मानित आचार्य घिल्डियाल आगे बताते हैं कि कपाट खोलते समय चंद्रमा कुंभ राशि का है और द्वार पूजन के समय सन्मुख चंद्रमा सारे दोषों का निवारण करने वाला होता है बद्रीनाथ जी मुख्य द्वार पूर्वाभिमुख होकर है और पूजन करते समय पूजार्थी पश्चिमाभिमुख द्वार पूजन करते हैं अतः पश्चिम का चंद्रमा सन्मुख हो जा रहा है जो सारे दोषों को नाश कर दे रहा है। संक्रांति पर्व 1000 दोषों को नष्ट करने वाला बताया गया है।