विज्ञान यानी साइंस के लिए आज का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है। 7 नवंबर को जन्में दो महान वैज्ञानिकों ने पूरी दुनिया को अपने आविष्कारों से नई राह दिखाई। दोनों वैज्ञानिकों के किए गए आविष्कार आज भी लोगों के लिए वरदान बने हुए हैं। इनमें से एक भारतीय और दूसरी पोलैंड की महिला वैज्ञानिक थीं। पहले बात करेंगे भारतीय वैज्ञानिक सीवी रमन की। विज्ञान का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले भारत के महान वैज्ञानिक सीवी रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 को मद्रास प्रेसीडेंसी में हुआ था।
सीवी रमन का पूरा नाम चन्द्रशेखर वेंकटरमन था, वे बचपन से ही तीव्र बुद्धि के थे, उन्होंने 11 साल की उम्र में मैट्रिक पास कर ली थी, इतना ही नहीं सीवी रमन ने तत्कालीन एफए परीक्षा स्कालरशिप के साथ 13 साल की उम्र में पूरी की थी, जो कि आज की इंटरमीडिएट के बराबर होती है। रमन ने रामायण, महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया। इससे इनके हृदय पर भारतीय गौरव की अमिट छाप थी। उन्होंने 1902 में मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया, इसी कॉलेज में उनके पिता प्रोफेसर थे। सन 1917 में डा. सीवी रमन ने सरकारी नौकरी से त्याग पत्र दे दिया।
त्यागपत्र देने के बाद वो कोलकाता के एक नए साइंस कॉलेज में भौतिक विज्ञान के अध्यापक बन गए। दरअसल यहां उनके पास भौतिकी से जुड़े रहने का मौका था। भौतिकी के प्रति उनके इसी जुड़ाव ने उन्हें भौतिकी के क्षेत्र में सम्मान दिलाया। डा. रमन ने साबित किया कि जब किसी पारदर्शी वस्तु के बीच से प्रकाश की किरण गुजरती है तो उसकी वेव लेंथ (तरंग दैर्ध्य) में बदलाव दिखता है। इसे रमन इफेक्ट कहा जाता है। अपने इसी आविष्कार के लिए उन्हें 1930 में विज्ञान का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। इसी इफेक्ट की वजह से आकाश का रंग नीला दिखाई देता है।
1954 में भारत सरकार की ओर से उन्हें भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया। इसके बाद साल 1957 में लेनिन शांति पुरस्कार प्रदान किया गया था। डा. सीवी रमन की मृत्यु 21 नवंबर 1970 को हो गई थी। वो युवाओं में विज्ञान के प्रति ललक जगा गए। डा. रमन आज हर युवा में महसूस किए जा सकते हैं। आज उनकी मौजूदगी नहीं है, लेकिन अपने शोध कार्य ‘रमन प्रभाव’ की वजह से युवाओं के दिलों में मौजूद हैं।
अब बात करेंगे दुनिया की पहली महान महिला वैज्ञानिक मैडम क्यूरी की। मैडम क्यूरी का भी जन्म 7 नवंबर आज के दिन 1868 को पोलैंड की राजधानी वार्सा में हुआ था।
प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री और रसायनशास्त्री थी। मैडम क्यूरी ‘रेडियम’ की खोज के लिए प्रसिद्ध है। मैडम क्यूरी ने ताउम्र लैब में ही काम करना पसंद किया था और वे अपना अधिकांश समय लैब में ही गुजारती थीं। क्यूरी 2 नोबेल पुरस्कार जीतने वाली इकलौती महिला वैज्ञानिक हैं। उन्होंने पति के साथ मिलकर रेडियो एक्टिविटी की खोज की, जिसके लिए 1903 में उन्हें संयुक्त नोबेल पुरस्कार मिला। मैडम क्यूरी ने 1911 में केमिस्ट्री में रेडियम के शुद्धिकरण और पोलोनियम की खोज के लिए अपना दूसरा नोबेल प्राइज जीता। रेडिएशन के संपर्क में आने की वजह से अपलास्टिक एनीमिया का शिकार होकर 4 जुलाई 1934 को उनकी मौत हो गई।
खास बात यह था कि मैरी क्यूरी की बेटी आइरिन ने भी 1935 में केमिस्ट्री का नोबेल प्राइज जीता। 4 जुलाई 1934 को उनकी मौत रेडिएशन के कारण अप्लास्टिक एनिमिया से हुई थी. वे नाभकीय भौतिकी और रसायन शास्त्र में अतुलनीय योगदान के लिए जानी जाती हैं उनकी रेडियो एक्टिविटी के खोज के बाद ही रेदरफोर्ड उसका उपयोग कर परमाणु की संरचरना की खोज कर सकते और परमाणु भौतिकी का नया आयाम खुल सका। मैडम क्यूरी का कहना था कि उन्हें जो पुरस्कार और सम्मान दिए जा रहे हैं उसे उन संस्थानों के दिए जाएं जिनमें वे काम कर रही थीं। साल 1955 में उनकी बेटी आइरीन ने भी नोबेल पुरस्कार जीता है। इस तरह वे इकलौती ऐसी महिला हैं जिनकी संतान ने नोबेल पुरस्कार जीता है।