Ginger Seed Production

उत्तराखंड राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में, नगदी फसल के रूप में अदरक का उत्पादन कई दशकों से किया जा रहा है।  विभागीय आकडों के अनुसार उत्तराखंड में 4876 हैक्टियर क्षेत्रफल में अदरक की कास्त की जाती है, जिससे 47120 मैट्रिक टन का उत्पादन होता है। विभागीय आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016 से 2020 तक अदरक उत्पादन में कोई भी बढ़ोतरी नहीं दर्शाई गई है, जिसका मुख्य कारण समय पर उच्च गुणवत्ता का अदरक बीज न मिल पाना है, जबकि विभागीय योजनाओं में अदरक बीज खरीद में धनराशि सैकड़ों गुना बढ़ा दी गई है।

कृषि एवं उद्यान विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र कुकसाल का कहना है कि हिमांचल प्रदेश की तरह उत्तराखंड में उद्यान विभाग द्वारा योजनाओं से अदरक बीज उत्पादन के प्रयास नहीं किए गए। हिमाचल प्रदेश में बाहरी राज्यों से अदरक बीज लाने पर रोक लगी है, जिससे राज्य के कृषकों को अदरक फसल पर लगने वाले कीट व रोगों से बचाव किया जा सके। उत्तराखंड में योजनाओं में अन्य राज्यों से निम्नस्तर का अदरक बीज क्रय कर कृषकों को वितरित किया जा रहा है।

अदरक की उन्नत किस्मों के बीज प्राप्त करने के मुख्य स्रोत हैं

  1. आई.आई.एस.आर प्रयोगिक क्षेत्र, केरल।
  2. कृषि एवं तकनीकी वि. वि. पोट्टांगी उडीसा।
  3. डा० वाइ.एस.परमार यूनिवर्सिटी आफ हार्टिकल्चर, नौणी सोलन, हिमांचल प्रदेश।

भारत सरकार की हार्टिकल्चर टैक्नोलॉजी मिशन योजना व अन्य योजनाओं की गाइडलाइंस के अनुसार योजनाओं में क्रय किए जाने वाला बीज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि शोध संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय से क्रय कर कृषकों को बीज उपलब्ध कराने के निर्देश हैं, जिनसे आने वाले समय में कृषक स्वयं बीज उत्पादन कर आत्मनिर्भर बन सकें।  किन्तु उत्तराखंड में ऐसा नहीं होता, अधिकतर बीज कमिशन के चक्कर में निजी कम्पनियों या दलालों के माध्यम से ही क्रय किए जाते हैं, भले ही बीज क्रय करना समितियों या राष्ट्रीय बीज कम्पनियों के बिलों पर दिखाया जाता हो।

उद्यान विभाग विगत 20-30 वर्षों से पूर्वोत्तर राज्यों असम, मणिपुर, मेघालय व अन्य राज्यों से सामान्य किस्म के अदरक को प्रमाणित / Truthful बीज के नाम पर रियोडी जिनेरियो किस्म बता कर 10 से 15  करौड रुपये का अदरक प्रति वर्ष क्रय कर राज्य के कृषकों को योजनाओं में आधी कीमत या मुफ्त में अदरक बीज के नाम पर बांटता आ रहा है।

अदरक बीज के आपूर्ति करने वाले (दलाल) पूर्वोत्तर राज्यों की मंडियों से 10-15 रुपये प्रति किलो की दर से क्रय करते हैं तथा अदरक बीज के नाम पर उद्यान विभाग- 80 से 100 रुपये प्रति किलो की दर से इन दलालों के माध्यम से क्रय कर, राज्य में कृषकों को योजनाऔं के अंतर्गत वितरित करता आ रहा है, जिस पर 50 -70 प्रतिशत का अनुदान राज्य सरकार द्वारा दिया जाता है। अदरक बीज की खरीद पर कई बार सवाल उठे हैं, तथा विवाद भी हुए हैं,  समय समय पर जब अदरक बीज खरीद पर सवाल उठते है, तो विभाग के एक-दो अधिकारियों को निलंबित कर, या बीज आपूर्तिकर्ता को ब्लेक लिस्ट कर प्रकरण वहीं समाप्त कर दिया जाता है। 

अदरक बीज आपूर्तिकर्ता /ठेकेदार (दलाल) न तो अदरक बीज उत्पादक होते हैं, और न ही किसी बीज आपूर्ति करने वाली कंपनी/ फर्म के अधिकृत विक्रेता। सम्मपरीक्षा /Audit से बचने के लिए इनके पूर्व में इन दलालों द्वारा फ्रुटफैड हल्दानी नैनीताल या अन्य सहकारिता समितियों के बिल का प्रयोग किया जाता था। जिस पर बीज आपूर्ति करने वाले इन समितियों को 5 – 10 % तक कमिशन देते थे। ये समितियां न तो अदरक उत्पादक होते हैं, और न ही बीज आपूर्ति करने वाली संस्था। इस प्रकार अदरक बीज क्रय में /Seed act/उत्तराखंड पर्चेज रूल्स दोनों का उल्लघंन किया जाता रहा है।

समितियां के माध्यम से क्रय करने पर जब सवाल उठने लगे तो वर्तमान में टैन्डर प्रक्रिया से अदरक बीज क्रय किया जाने लगा। अधिकतर अदरक उत्पादकों का कहना है कि स्थानीय उत्पादित अदरक बोने पर उपज ज्यादा अच्छी होती है, विभाग द्वारा प्रमाणित बीज /ट्रुथफुल के नाम पर दिये गये अदरक बीज मै बीमारी अधिक लगती है साथ ही उपज भी कम होती है।

अधिकांश प्रगतिशील कृषक स्थानीय रूप से उत्पादित अदरक बीज से ही अदरक का उत्पादन करते हैं, स्थानीय बीज की मांग अधिक रहती है ,किन्तु उतनी मात्रा में अदरक बीज उत्पादन नहीं हो पाता कृषकों का कहना है कि उद्यान विभाग द्वारा अदरक का बीज समय पर नहीं मिलता इस क्षेत्र में अदरक बीज की बुआई मार्च अप्रैल में हो जाती है, जब कि विभाग द्वारा अदरक बीज की आपूर्ति माह अप्रैल मई तक हो पाती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, साथ ही विभाग द्वारा आपूर्ति अदरक बीज बोने पर कई तरह की बीमारियों व कीट खड़ी फसल पर लगते हैं ।

योजनाओं में जब तक कृषकों के हित में सुधार नहीं किया जाता व क्रियावयन में पारदर्शिता नहीं लाई जाती कृषकों को योजनाओं का पूरा लाभ मिलेगा सोचना बेमानी है। उच्च स्तर पर योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि विभाग को कितना बजट आवंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ।  राज्य में कोई ऐसा सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर   योजनाओं में सुधार ला सके।

कृषकों को योजनाओं का सीधा लाभ मिल सके भारत सरकार के कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय ने अपने पत्रांक कृषि भवन,नई दिल्ली दिनांक फरबरी,28 2017 के द्वारा कृषि विभाग की योजनाओं में कृषकों को मिलने वाला अनुदान डी. वी. टी. के अन्तर्गत सीधे कृषकों के खाते में डालने के निर्देश सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के कृषि उत्पादन आयुक्त, मुख्य सचिव, सचिव एवं निदेशक कृषि को किये गये।

उत्तरप्रदेश, हिमाचल आदि सभी राज्यों में बर्ष 2017 से ही कृषकों को योजनाओं में मिलने वाला अनुदान  डी बी टी के माध्यम से सीधे कृषकों के खाते में जा रहा है। इन राज्यों में पंजीकृत/चयनित कृषक  भारत सरकार/राज्य सरकार के संस्थानो /पंजीकृत बीज विक्रेताओं जो कृषि विभाग से पंजीकृत हों से स्वेच्छानुसार एम आर पी से अनधिक दरों पर नगद मूल्य पर क्रय कर क्रय रसीद सम्बंधित विभाग से भुगतान प्राप्त करने हेतु उपलब्ध कराई जाती है सत्यापन के बाद धनराशि कृषकों के बैंक खातों में विभाग द्वारा डाल दी जाती है।

सचिव कृषि एवं कृषक कल्याण उत्तराखंड शासन के अनु भाग -2 देहरादून के पत्रांक 535 / Xlll-2/ 2021-5(28)/2014 दिनांक 17 मई 2021के अनुसार कृषि एवं कृषक कल्याण विभाग ( कृषि एवं उद्यान विभाग) द्वारा   संचालित समस्त योजनाओं के अंतर्गत समस्त निवेश inputs जो कृषकों को अनुदान पर देय हैं का अनुदान इसी वित्तीय वर्ष 2021 – 2022 से ही प्रदेश के पंजीकृत/चयनित कृषकों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डी०बी०टी०) के माध्यम से कृषकों को बैंक खाते में सीधे आर०टी०जी०एस०के द्वारा  स्थानान्तरित किये जानें के निर्देश कृषि एवं उद्यान निदेशक को हुए हैं किन्तु उद्यान विभाग इस शासनादेश का भी पालन नहीं करता।

योजनाओं में बीडीटी लागू होने से कई लाभ होंगे।

  1. उद्यान / कृषि विभाग में दलाली पर रोक लगेगी।
  2. किसानों को उचित दरों पर अच्छी गुणवत्ता वाला सामान मिलेगा जिससे किसान अधिक उत्पादन कर सकेंगे साथ ही बीज उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर सकेंगें।
  3. क्षेत्र विशेष में दवा बीज खाद आदि कृषि निवेश आपूर्ति हेतु स्थानीय पढ़ें लिखे बेरोजगारों को व्यवसाय करने एवं रोजगार के अवसर मिलेंगे साथ ही कृषकों को उनके मनपसंद कृषि निवेश समय पर व घर पर ही स्थानीय बाजार में उपलब्ध हो पायेंगे।

बीज खरीद में लगातार हो रहे फर्जीवाड़े व उद्यान विभाग की उदासीनता के कारण राज्य नहीं बन पा रहा है अदरक बीज उत्पादन में आत्मनिर्भर जिस कारण कृषकों को समय पर  उपलब्ध  नहीं हो पा रहा है उच्च गुणवत्ता का अदरक बीज।

डॉ. राजेंद्र कुकसाल, कृषि एवं उद्यान विशेषज्ञ।
9456590999