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नई दिल्ली: उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली द्वारा रविवार को उत्तराखंड की वरिष्ठ साहित्यकार स्व. वीणापाणी जोशी को याद करते हुए DPMI, अशोक नगर, दिल्ली में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई। इस अवसर पर काव्यात्मक श्रद्धांजलि के साथ-साथ भाषा साहित्य पर विचार विमर्श भी किया गया। स्व. वीणापाणी की साहित्य उपलब्धियों को वहां मौजूद साहित्यकारों, समाजसेवियों एवं बुद्धिजीवियों ने विस्तार पूर्वक बताया।

इस मौके पर डॉ. विनोद बछेती ने कहा कि इतनी भाषाओँ की ज्ञाता मृदुभाषी आदरणीय वीणा उत्तराखंड की एक धरोहर हैं उनके आदर्शों पर ही हमें आगे बढ़ना है साथ ही उन्होंने भाषा के लिए चलाई जा रही कक्षाओं के जरिये भी अपने साहित्य व भाषा को अपनी नई पीठि तक पहुंचाने के लिए मिलकर काम करने की बात कही। दीवान नयाल ने कहा कि सबने अपनी भाषा अकादमी के लिए जो प्रयास मिलकर किये वही प्रयास अब अपनी भाषा को संविधान के 8वी सूचि में सम्मिलित करने के लिए करना चाहिए और साहित्यकारों को अधिक से अधिक साहित्य अपनी भाषा में ईजाद करना चाहिए। वही चारु तिवारी ने कहा कि गढ़वाली, कुमाऊनी व जौनसारी भाषा एक समृद्ध भाषा है इसके अंदर शब्दों का जो समावेश है वह किसी और अन्य भाषा में नहीं है। इसलिए हमें अपनी भाषा को और अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए अपने लोक भाषा साहित्य को अपनी नई पीढ़ी तक पहुँचाना होगा। इसके लिए हम भाषा अकादमी से भी बात कर साहित्य के लिए कार्य कर सकते है। इसके अलावा कई अन्य वक्ताओं ने अपने अपने विचार रखे। सभी ने अपने लोक साहित्य के लिए अपने सुझाव भी दिए और अपनी रचनाओं से वीणा  को काव्यांजलि दी। सभागार में वरिष्ठ साहित्यकार चन्दन प्रेमी, रमेश हितैषी, हंसमुख जी, भगवती प्रसाद जुयाल, जगमोहन रावत, नीरज बावरी, वीरेंद्र जुयाल ऊपरी, अनूप रावत,  गोविंदराम साथी, आप नेता दीवान सिंह नयाल, वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी, हरीश असवाल, सतेंद्र सिंह रावत, विमल सजवाण, अनिल पंत एवं अनेकों बुद्धिजीवी और सामाजिक लोग उपस्थित थे।

कार्यक्रम का संचालन उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच के संरक्षक व साहित्यकार दिनेश ध्यानी ने किया। उन्होंने कहा कि वीणापाणी जी ने हमारे लोक साहित्य को ऊंचाई तक ले जाने में अथक प्रयास किया उनको साहित्य जगत कभी भुला नहीं पायेगा।

83 वर्षीय श्रीमती वीणापाणी जोशी का निधन बीते 6 मार्च 2020 को देहरादून में उनके निवास पर हुआ, उनका जन्म 10 फरवरी 1937 को देहरादून में हुआ था। उनका पैतृक गांव पोखरी जनपद पौड़ी में है। उनकी हिंदी, गढ़वाली, कुमाउनी, संस्कृत, अंग्रेजी, पंजाबी, ब्रज व अवधि आदि भाषाओँ पर गहरी पकड़ थी। उन्होंने उत्तराखंड राज्य आंदोलन सहित अनेक सामाजिक गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। साहित्यिक गतिविधियों में पहाड़ से दूर रहने के बावजूद उन्हें पहाड़ से बेहद लगाव था। पहाड़ में व्यतीत अपने बचपन को वो अपने ज़हन में हमेशा रखे हुए थी। उनकी एक सुंदर रचना निम्नलिखित हैं।

कलम ने डाँट लगायी-
सँभाल मुझे, ठीक से सँभाल।
कलम-कुटली साथ-साथ
कभी आगे, कभी पीछे
दौड़ रही हैं, मेरे हाथ
साथ चलेगी मेरी कुटली
संग-संग लेखनी लिखेगी।
कलम-कुटली वाली पहाड़ी कवयित्री के रूप में वे हमेशा याद रहेंगी।
रिपोर्ट द्वारिका चमोली