Uttarakhand Rajya Sthapana Divas : नगपति हिमालय जो कि सम्पूर्ण भारत के गौरव, स्वाभिमान एवं सांस्कृतिक विशिष्टता का प्रतीक रहा है। जिसके अंचल में बसी गढ़ भूमि न केवल अपने अतुलनीय सौन्दर्य से जन जन के मन को आकर्षित करती है, बल्कि पूरे भारत की सबसे विशाल और पवित्रत नदियाँ गंगा, यमुना और सरस्वती देवभूमि उत्तराखंड से निकलती हैं। इसके अलावा पंचबद्री, पंचकेदार, पंचप्रयाग यहां की भूमि को देवतुल्य बनाते हैं।
गुलाब के ताजे ताजे हंसते महकते फूलों में जो सुगंध और सौंदर्य होता है, कागज के अच्छे से अच्छे बनावटी फूलों के गुलदस्ते में कभी नहीं हो सकता। उत्तराखंड में हर पल हर क्षण ताजे फूलों की छटा देखने को मिलती है। निर्मल शुद्ध हवा मन को एक अलौकिक शान्ति प्रदान करती है।
हिमालय की गोद में स्थित उत्तराखंड अपनी विशिष्टता लिए हुए ऋषि मुनियों की तपस्थली के रूप में अपनी नई पहचान और नई पताका लिए हुए भारत के गौरव में श्री बृद्वि करता है। सर्वप्रथम सूर्य की अलौकिक रश्मियों के दर्शन यही पर होते हैं। यह देवभूमि अनेक सरस्वती पुत्रों, क्रांतिकारियों व दिव्य महापुरुषों की जननी भी रहा है। जिन्होंने इसके नाम की सार्थकता को सिद्ध किया। जब हम इसके दिव्य इतिहास पर नजर डालते हैं तो हमारे सामने महाकवि कालिदास, गुरु द्रोणाचार्य, सुमित्रा नंदन पंत, चन्द्र कुंवर वर्त्वाल, वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली, गोबिंद बल्लभ पंत, शहीद श्री देव सुमन, हेमवती नंदन बहुगुणा जैसी दिव्य महाविभूतियों की तस्वीर सामने आती है।
गुरु द्रोणाचार्य ने भी इसी देवभूमि में साधना की है। महाभारत का लेखन महर्षि व्यास ने इसी देवभूमि उत्तराखंड में किया था। इस पवित्र भूमि के कारण भारत वर्ष को जगत गुरु के रूप में प्रतिष्ठा मिली है। इसी कारण भारत माता को शस्य श्यामला, सुजला, सुफला, मलय, जल, शीतलता आदि नाम से जाना जाता है। यहां की औलोकिक सुन्दरता के कारण राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था -यदि कहीं धरती पर स्वर्ग है तो वह उत्तराखंड है।
9 नवम्बर 2000 को इस राज्य की स्थापना हुई। इस राज्य को प्राप्त करने के लिए कई तरह के आन्दोलन हुए, कई माताओं की गोदे सूनी पड गई। कई बहिनों का सिन्दूर मिट गये। इस तरह की कुर्बानियों के बाद अंततः 9 नवम्बर 2000 को 27वें राज्य के रूप में भारत गणराज्य के रूप में स्थापित हुआ।
आज उत्तराखंड बने हुए 22 वर्ष हो गए, क्या हमने जिस उद्देश्य के लिए इस राज्य की मांग की थी, उस लक्ष्य को हमने प्राप्त किया है? क्या देवभूमि की प्रतिष्ठा बनी हुई है? क्या हमें हमारे अधिकार मिल रहें हैं? बहुत सारे प्रश्न है जो चिन्तन के विषय हैं। इसकी प्रतिष्ठा बनाने के लिए हम सब का समग्र दायित्व है कि हम इस राज्य के अनुरूप आचरण करें। अपने कर्तव्यो का समुचित निर्वहन करें, अपने आप को गौरवान्वित महसूस करें, कि हमने देवभूमि उत्तराखंड में जन्म लिया है। इसे नशा मुक्त खुशहाल उत्तराखंड बनाने का संकल्प का लें, इसकी स्थापना दिवस पर हम सबको इसे आदर्श राज्य, खुशहाली, समृद्धशाली, ईमानदारी से कार्य करने की प्रतिज्ञा लेनी चाहिए,फिर जो सपना हमारे शहीदों ने देखा, वह निश्चित रूप से साकार होगा।
हालाँकि उत्तराखंड राज्यगठन को आज 22 साल पूरे हो चुके हैं। और इन 22 सालों में प्रदेश की जनता को अब तक 10 मुख्यमंत्री मिल चुके हैं। लेकिन आज तक उत्तराखंड को स्थायी राजधानी नहीं मिली है। जल, जंगल और जमीन से जुड़े मुद्दे आज भी जस ते तस हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाओं के आभाव में लोगों का पहाड़ों से लोगों का पलायन लगातार जारी है। इस पर सभी को विचार करने की जरुरत हैं।
लेखक: अखिलेश चन्द्र चमोला, नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौड़ी गढ़वाल।