उत्तराखंड में सावन 2025: हमारी सनातनी संस्कृति अपने आप में सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय के भाव को समाहित किए हुए हैं। वहीं दूसरी ओर धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के पुरुषार्थ को आगे बढ़ाने का मार्ग बताया गया है। वेदों में मन्त्र, तन्त्र, स्वास्थ्य, संगीत, ज्योतिष, परा मनो विज्ञान जैसे गूढ़ रहस्यात्मक तथ्यों के बारे में विश्लेषण कर समाज को सही दिशा की ओर इंगित किया गया है।

हमारे धार्मिक ग्रंथों में प्रत्येक महीने का महत्व स्पष्ट किया गया है। इसी तरह से श्रावण मास का भी अपने आप में प्रभाव कारी महत्व है। भले इस माह में विवाह, वास्तु पूजन जैसे शुभ कार्य सम्पादित नहीं किए जाते, लेकिन यह माह अनुष्ठान, तन्त्र, मन्त्र, दिव्यता प्राप्त करने के लिए बड़ा ही शुभकारी माना जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार देशभर में सावन का महीना 11 जुलाई से शुरू हो चुका है. लेकिन उत्तराखंड, हिमाचल और नेपाल के पर्वतीय क्षेत्रों में श्रावण मास 16 जुलाई की संक्रांति से शुरू होगा।

क्यों अलग है हिंदू कैलेंडर से?

उत्तराखंड, हिमाचल और नेपाल के पर्वतीय क्षेत्रों में सावन बाकी राज्यों से अलग क्यों होता है, इसके पीछे की वजह है हिन्दू पंचांग व्यवस्था। दरसल देश के उत्तर मध्य और पूर्वी भागों में चंद्र पंचांग (चन्द्र मास) के अनुसार पूर्णिमा के बाद नए हिन्दू महीने की गणना होती है। इस पंचांग व्यवस्था में, उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश आते हैं। इसलिए यहाँ सावन पूर्णिमा से शुरू होकर पूर्णिमा के आस पास खत्म होते हैं।

वहीँ उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र, नेपाल और हिमाचल के कुछ हिस्सों में सौर पंचांग के अनुसार महीने शुरू व खत्म होते हैं। अर्थात जब सूर्य भगवान एक राशि से दूसरी राशि परिवर्तन करते हैं, उस दिन से उत्तराखंड, हिमाचल और नेपाल में महीना शुरू और ख़त्म होते हैं। सूर्य की राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं। यह संक्रांति हमेशा आंग्ल (अंग्रेजी) महीनों के बीच में पड़ती है। अर्थात प्रतिमाह संक्रांति 14,15,16  या 17 तारीख के आस पास पड़ती है। इसलिए हमेशा उत्तराखंड का सावन का महीना 16 या 17 जुलाई के आस पास से लेकर 15 , 16 अगस्त में ख़त्म हो जाता है।

इस साल चंद्र मास के अनुसार 11 जुलाई यानी गुरु पूर्णिमा से सावन का महीना शुरू हो गया है। जबकि 16 जुलाई को सूर्य मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में प्रवेश करेंगे। इसलिए सूर्य के इसी परागमन के साथ उत्तराखंड में कल से सावन का महीना भी शुरू माना जायेगा।

हरेला से होती है सावन की शुरुआत

उत्तराखंड के लोक पर्वों में से एक हरेला को कुमाऊं मंडल में मनाया जाता है। कुमाऊं में हरेले से ही श्रावण मास और वर्षा ऋतु का आरंभ माना जाता है। इस दिन प्रकृति पूजन किया जाता है। धरा को हरा-भरा किया जाता है।

भोले बाबा की अभीष्ट कृपा प्राप्ति करने का मास है “श्रावण”

श्रावण की मास में अनवरत रूप से शिव भगवान की पूजा की जाती है। नियमित शिवलिंग में जलाभिषेक और बेलपत्र अर्पित करने से मनोकामना पूर्ण होती है। भक्तों को शिवालय में जाकर के प्रत्येक सोमवार को शिव सहस्त्रनाम का पाठ करते हुए 1100 बार ओम नमः शिवाय का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से उनकी अकाल मृत्यु से रक्षा होती है। कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिल जाती है। साथ ही यह भी जरूरी है किस माह में रुद्राक्ष की माला धारण करनी चाहिए ।इस विषय में शिव पुराण में कहा गया है -जो भक्त रुद्राक्ष की माला धारण करता है। ललाट पर त्रिपुंड लगता है, और पंचाक्षर मंत्र का जाप करता है, वह परम पूजनीय श्रेणी में आ जाता है ।वह यमलोक नहीं जाता।

श्रावण मास में शिव की पूजा के लिए बेलपत्र जरूरी है बिना बेलपत्र की शिव की पूजा अधूरी मानी जाती है। शिव महापुराण में इस तरह का उल्लेख मिलता है कि जो व्यक्ति दो अथवा तीन बेलपत्रि शुद्धता पूर्वक भगवान शिव को श्रद्धा पूर्वक अर्पित करता है ,उसे निसंदेह भवसागर से मुक्ति मिल जाती है ।बेलपत्र के दर्शन स्पर्श से ही संपूर्ण पापों से मुक्ति मिल जाती है ।बेलपत्र को चौथ ,अमावस्या ,अष्टमी ,नवमी और सोमवार के दिन नहीं तोड़ना चाहिए ।उक्त दिनों में बेलपत्र तोड़ने से अच्छे फल की प्राप्ति नहीं होती है।

श्रवण की मास में सोमवार के साथ ही मंगलवार के व्रत की भी अपनी अलग उपादेयता है ।यह व्रत उन लड़कियों के लिए बड़ा ही मंगलकारी व शुभता को लिए हुए है, जो मंगली हैं और जिन्हें योग्य वर की प्राप्त नहीं हो रही है या जिनका दांपत्य जीवन सही नहीं चल रहा है। यह व्रत मां पार्वती के नाम से लिया जाता है। शास्त्रों में इसे मंगला गौरी के व्रत के नाम से भी जाना जाता है। मां पार्वती की पूजा करने से शिव भगवान बहुत जल्दी खुश हो जाते हैं। इसलिए भक्तों को श्रावण मास में भगवान शिव के साथ मां पार्वती की पूजा भी अनिवार्य रूप से करनी चाहिए।

ध्यान देने योग्य बातें –

1-शिव भगवान की पूजा में कभी भी क्रोध नहीं करना चाहिए।

2-शिव भगवान की पूजा अपने घर में ईशान कोण या फिर उत्तर दिशा की ओर बैठ कर करें।

3-शिव भगवान की पूजा शिव परिवार के साथ करें।

4-शिव भगवान की पूजा के साथ नंदी और हनुमान जी की पूजा भी जरूर करें।

5-कटे फटे बेलपत्र शिव भगवान को अर्पित न करें।

6-शिव भगवान को हल्दी ,तुलसी, शंख चंदन और केतकी के फूल बिल्कुल भी न चढ़ाएं।

इस प्रकार सच्चे समर्पण के साथ शिव भगवान की पूजा करने से सच्चे मनोरथ के फल की प्राप्ति हो जाती है। भक्तों को अपना आशीर्वाद देने में शिव भगवान किसी तरह का मतभेद नहीं करते। इतिहास साक्षी है कि देवताओं के साथ राक्षसों ने भी शिव पूजा की तो शिव भगवान ने उन्हें भी श्रेष्ठ वरदान दिया। इस प्रकार श्रावण मास शिव भगवान की भक्ति का पवित्र मास है, इस मास में सात्विकता का भी ध्यान रखना जरूरी है। इस माह में शुद्ध सात्विक भोजन का ही प्रयोग करना चाहिए।

अखिलेश चन्द्र चमोला, श्रीनगर गढ़वाल।