श्रीनगर गढ़वाल: हेमवती नंदन बहुगुणा केन्द्रीय विश्व विद्यालय के शैक्षणिक प्रशिक्षण केन्द्र चौरास में उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली तथा भाषा प्रयोगशाला गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा अखिल भारतीय गढ़वाली भाषा व्याकरण व मानकीकरण कार्यशाला के दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ किया गया। अपने अध्यक्षीय भाषण में गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि हमें नई पीढ़ी को अपनी भाषा भी विरासत में सौंपनी होगी तभी हमारी संस्कृति भी बचेगी। प्रो० महावीर सिंह नेगी, छात्र अधिष्ठाता ने कहा कि गढ़वाल विश्वविद्यालय का सौभाग्य है कि यह कार्यशाला यहां आयोजित किया जा रहा है। प्रो० मंजुला राणा ने गढ़वाली भाषा की बारीकियों पर अपनी बात कही।
गढ़वाल विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यशाला की शुरूआत में कार्यशाला संयोजक, उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक दिनेश ध्यानी और भाषा प्रयोगशाला प्रतिनिधि डा सविता भण्डारी ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया तथा आयोजन के उद्देश्य पर अपनी बात रखी।
डा० विष्णु दत्त कुकरेती की अध्यक्षता में डा० नंदकिशोर हटवाल ने गढ़वाली ध्वनि और वर्णमाला पर अपनी बात रखते हुए कहा कि देवनागरी में जो ध्वनियां गढ़वाली में प्रयुक्त नहीं होती हैं उनको हटाया जा सकता है। ‘ळ’ जैसी नई ध्वनियों को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
दिनेश ध्यानी ने सभी उपस्थित विद्वानों से निवेदन किया कि गढ़वाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु प्रयास और तेज करने होंगे व नई पीढ़ी को अपने भाषा सरोकारों से जोड़ने के लिए काम करना होगा।
गढ़वाली भाषा के संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण पर चर्चा करते हुए बीना बेंजवाल ने हिंदी व्याकरण से किस प्रकार भिन्न है, पर अपनी बात साझा की। आशीष सुंदरियाल ने लिंग, वचन और कारक पर और वीरेंद्र पंवार तथा रमाकान्त बेंजवाल ने क्रिया रूपों पर कार्यशाला को संचालित किया।
कार्यशाला में गिरीश सुन्दरियाल की सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘गढ़वाल की लोक गाथाएं’ का लोकार्पण भी किया गया। ज्ञातव्य हो उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली लगातार की दशकों से गढ़वाली कुमाऊनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु लगातार प्रयास कर रहा है। उत्तराखण्ड सरकार एवं भारत सरकार को मंच द्वारा लगातार ज्ञापन प्रेषित कर रहा है। उत्तराखण्ड समेत देश के की हिस्सों में लगातार भाषा सरोकारो के लिए काम कर रहा है।
इस कार्यशाला में गिरीश सुन्दरियाल, मदन मोहन डुकलाण, कुलानंद घनशाला, संदीप रावत, मनोज भट्ट गढ़वाळि, गणेश खुगशाल ‘गणी’, धर्मेन्द्र नेगी, ओमप्रकाश सेमवाल, ओम बधाणी, पयाश पोखड़ा, डॉ० वीरेन्द्र बर्त्वाल, शांति प्रकाश जिज्ञासु, डॉ० सत्यानंद बडोनी, देवेन्द्र उनियाल, डॉ० प्रीतम अपछ्याण जयपाल सिंह रावत छिप्वडु था, , कमल रावत, दर्शन सिंह नेगी, विमल नेगी, अनूप वीरेंद्र कठैत, राकेश ध्यानी, दर्शन सिंह बिष्ट, दर्शन सिंह रावत, रमेश चन्द्र घिल्डियाल, उमेश ध्यानी,दीनदयाल बंदुनी, भगवती प्रसाद जुयाल गढ़देशी, जयपाल सिंह रावत, अनिल कुमार पंत, प्रदीप रावत खुदेड, अशीष सुन्दरियाल, दर्शन सिंह रावत, गिरधारी रावत, जगमोहन सिंह रावत जगमोरा, प्रदीप रावत, डा अरुषि उनियाल, डा सर्वेश उनियाल, झाबर सिंह रावत, द्वारिका चमोली, शांति प्रकाश जिज्ञासु, ओम बधाणी, आदि साहित्यकार उपस्थित थे।