देहरादून: हिंदी भवन देहरादून में शनिवार को उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट) के सहयोग से उत्तराखंडी भाषा न्यास (उभान) द्वारा उत्तराखंडी लोक भाषाओं के समानार्थी शब्दों का प्रयोग एवं समरूप साहित्य का निर्माण विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के सूत्रधार प्रोफेसर दुर्गेश पंत महा निदेशक यूकॉस्ट, मुख्य अतिथि पद्मकल्याण सिंह रावत मैती संगठन, डॉ सबिता मोहन, नीलांबर पांडेय, डॉ. मुनिराम सकलानी तथा विषय प्रवर्तक डॉ बिहारीलाल जलन्धरी ने अपने विचार रखे। इस विषय पर कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल और गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर में दो दिवसीय कार्यशाला संपन्न हो चुके हैं।
डॉ सबिता मोहन ने कहा कि गढ़वाली, कुमाऊनी, जौनसारी से पृथकता का आभास होता है. इससे अच्छा हम पहाड़ी भाषा कहें। उन्होंने कहा जो भाषा प्रचलन में रही हैं, वही भविष्य में प्रतिष्ठित भाषा का स्वरूप लेती है। नीलांबर पांडेय ने कहा कि हमारी भाषा में बहुत शब्द बाहर से आए हैं, हम अपने शब्दों का प्रयोग कर विनिमय कर सकते हैं। डॉ सकलानी ने कहा कि भाषा से ही प्रदेश की पहचान है। उत्तराखंड है तो उत्तराखंडी भाषा उसकी पहचान की द्योतक है। डॉ राम बिनय सिंह ने कहा कि उतराखंडी भाषा की बात हो रही है तो उसके साथ शब्दों के स्वरूप और संस्कार की स्थिति यथावत रहे। हमें स्वयं अपनी भाषा का प्रयोग करना चाहिए। प्रोफ़ेसर दुर्गेश पंत ने कहा कि भाषा स्थिर रहती हैं जबकि बोलियों में हर कोष पर भिन्नता होती है। वर्तमान दौर में साइंटिफिक आधार पर कला संस्कृति व लोक भाषाओं का संवर्धन होना चाहिए। हमें विश्वास है कि एक दिन उतराखंडी भाषा रोजगार का विषय बनेगी।
पद्म कल्याण सिंह रावत ने कहा कि इस वैज्ञानिक युग में उभान् जिस काम को कर रहा है उस पर सरकार को काम करना चाहिए। आज हमारे बीच गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी नहीं बोल रहे हैं क्यों कि यह भाषाएं कहीं पठन-पाठन में नहीं हैं। हमें एक ऐसी भाषा पर काम करना चाहिए जिसे हमारे बच्चे पढ़ सकें और उन्हें उसके माध्यम से रोजगार भी मिल सके।
इस विषय पर निरंतर काम करने वाले डॉ बिहारीलाल जलन्धरी का कहना है कि हम अस्कोट से आराकोट तक एक ही भाषा की बात कर रहे हैं। वह हिंदी की तरह उतराखंड के लिए उत्तराखंडी भाषा प्रतिपादित करने की बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि क्या गढ़वाल का बच्चा कुमाऊनी नहीं पढ़ सकता इसी तरह कुमाऊं का विद्यार्थी गढ़वाली पढ़ सकेगा। इससे गढ़वाल कुमाऊं का भेद खत्म होगा।
यह विषय रोजगार का एक आयाम सृजित करने वाला विकल्प है। कार्यशाला में उपस्थित होने वाले लोगों में डॉ नीता कुकरेती, डॉ कंचन डोभाल, ममता जोशी, सुभाष सिमल्टी, हेमवती नंदन कुकरेती, सुनीता चौहान, राम सिंह तोमर, विष्णु सैनी, दयानंद सिल्वल, पूनम तोमर, शिवम ढोंडियाल, सुल्तान सिंह तोमर, प्रो राम विनय सिंह, गणिनाथ मनोड़ी, दर्द गढ़वाली और कांता घड़ियाल आदि लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की।