देहरादून: उत्तराखण्ड लोक समाज के बैनर तले विभिन्न संगठनों द्वारा लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी के जन्मदिवस पर दिया जाने वाला ‘नरेन्द्र सिंह नेगी संस्कृति सम्मान’ इस वर्ष सितम्बर माह में प्रदान किया जाएगा। यह निर्णय उत्तरकाशी (धराली) में हाल ही में आई दैवीय आपदा को देखते हुए लिया गया है।
सुशीला देवी फेलोशिप के मुखिया डॉ. ईशान पुरोहित और उत्तराखण्ड लोक समाज के प्रतिनिधि गणेश खुगशाल ‘गणी’ ने यह जानकारी देते हुए बताया कि इस वर्ष यह प्रतिष्ठित सम्मान हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकार संत राम हरनोट को प्रदान किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि ‘नरेन्द्र सिंह नेगी संस्कृति सम्मान’ हिमालयी राज्यों में भाषा, साहित्य, संस्कृति और सामाजिक सरोकारों के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्तित्व को प्रदान किया जाता है। पहला ‘नरेन्द्र सिंह नेगी संस्कृति सम्मान’ वर्ष 2024 में उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध लोकगायक गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी को प्रदान किया गया था। इस सम्मान में प्रशस्ति और दो लाख इक्यावन हजार रुपए (₹ 2,51,000/-) की धनराशि प्रदान की जाती है।
उत्तराखंड के सांस्कृतिक ध्वजवाहक माने जाने वाले नरेन्द्र सिंह नेगी उत्तराखंड (पहाड़ी लोक गायन) में वह नाम है जिसे उत्तराखंड का हर इंसान पहचानता है। उत्तराखण्ड की लोकसंगीत परंपरा के सबसे सम्मानित और लोकप्रिय कलाकारों में गिने जाने वाले “गढ़ रत्न” नरेंद्र सिंह नेगी एक गायक के साथ ही कवि, संगीतकार और लेखक भी हैं। पिछले पाँच दशकों में उन्होंने हजारों गीतों की रचना और गायन के माध्यम से पहाड़ी समाज, लोक संस्कृति, राजनीति, पर्यावरण और लोकजीवन के हर पहलू को स्वर दिया है। उनकी रचनाएं न केवल मनोरंजन करती हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना भी जगाती हैं। ‘गढ़वाली लोकगीतों के सम्राट’ के रूप में प्रसिद्ध नेगी जी को गढ़रत्न, उत्तराखण्ड गौरव सम्मान सहित अनेकों सम्मान मिल चुके हैं। उनका संगीत पहाड़ की बोली-भाषा, रीति-रिवाज और संघर्ष की सजीव दस्तावेजीकरण का अनमोल माध्यम है।
डॉ. ईशान पुरोहित ने बताया कि इस वर्ष “नरेन्द्र सिंह नेगी संस्कृति सम्मान” के लिए चयनित हिमाचल के वरिष्ठ साहित्यकार संत राम हरनोट देश के विख्यात साहित्यकार हैं, जिन्हें अब तक अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। हरनोट जी की 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके साहित्य पर 8 शोध और 10 एम.फिल. पूर्ण हो चुके हैं, जबकि 11 शोध कार्य प्रगति पर हैं। उनकी तीन कहानियों पर लघु फिल्में बनी हैं, सात कहानियों का नाट्य मंचन हुआ है और उनकी रचनाओं का जर्मन, पंजाबी, अंग्रेज़ी व मलयालम में अनुवाद हो चुका है। देश के आठ विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में उनकी कहानियां और उपन्यास शामिल हैं।