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समय इंसान को कहाँ से कहाँ ले जाता है और क्या से क्या करवाता है इसका जीता जगता उदहारण धर्मनगरी हरिद्वार की सड़कों पर देखने को मिला। कुमाऊं विश्वविद्यालय में वाइस प्रेसीडेंट रह चुकी तथा दो-दो विषयों (अंग्रेजी व राजनीति विज्ञान) में एमए पास हंसी प्रहरी इन दिनों अपने 6 साल के बेटे के साथ धर्मनगरी हरिद्वार की सड़कों पर भिक्षावृत्ति कर पेट पाल रही हैं। हंसी उस समय सभी का ध्यान अपनी तरफ तब खींच लेती हैं, जब बेटे को पढ़ाते समय फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने लगती हैं।

हरिद्वार में अलग-अलग स्थानों पर भिक्षावृत्ति करती हंसी प्रहरी अक्सर जवाहर लाल नेहरू युवा केंद्र पर आती रहती है। रविवार को भी हंसी प्रहरी अपने बेटे के साथ नेहरू केंद्र पर आई थी। जवाहर लाल नेहरू युवा केंद्र के सचिव सुखवीर सिंह के कहने पर मीडियाकर्मियों ने उनसे बातचीत शुरू कर दी। बातचीत में हंसी ने बताया कि वह अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर क्षेत्र के अंतर्गत हवालबाग ब्लॉक के रणखिला गांव की रहने वाली है। वह पांच भाई-बहनों में से सबसे बड़ी बेटी है। उनके पिता छोटा-मोटा रोजगार करते थे। प्राथमिक से लेकर इंटर तक की उनकी पढ़ाई गांव में ही हुई। वह पूरे गांव में अपनी पढ़ाई को लेकर चर्चा में रहती थी। उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा कैंपस में प्रवेश लिया। हंसी ने बताया कि वह पढ़ाई के साथ विश्वविद्यालय की अन्य शैक्षिक गतिविधियों में भी शामिल होती थीं। साल 1998-99 में वह तब चर्चा में आई जब उन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव में भाग लिया और छात्र संघ की वाइस प्रेसिडेंट बनी। हंसी ने आगे बताया कि उसने कुमाऊं विश्वविद्यालय से अंग्रेजी तथा राजनीति विज्ञान में एमए किया है। उन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय की सेंट्रेल लाइब्रेरी में बतौर लाइब्रेरियन करीब चार साल तक नौकरी भी की है। उन्हें नौकरी इसलिए मिली क्योंकि वह विश्वविद्यालय में होने वाली तमाम एजुकेशन से संबंधित प्रतियोगिताओं में भाग लेती थी। चाहे वह डिबेट हो या कल्चर प्रोग्राम या दूसरे अन्य कार्यक्रम, वह सभी में प्रथम आया करती थी। इसके बाद उन्होंने 2008 तक कई प्राइवेट जॉब भी की। 2011 के बाद हंसी की जिंदगी अचानक से बदल गई। उन्होंने साफ-साफ तो कुछ भी नहीं बताया परन्तु इतना कहा कि वह इस वक्त जिस तरह की जिंदगी जी रही हैं, वह शादी के बाद हुई आपसी विवाद का नतीजा है। हंसी का कहना है कि शादी के बाद अचानक उनके जीवन में बदलाव आने लगा। उनका मन घर में नहीं लगा और धर्म के प्रति झुकाव हुआ। इसके बाद वह हरिद्वार चर्ली आईं। मीडिया से बात करते हुए हंसी अपनी कहानी बयां करते-करते रोने लगती हैं। उन्होंने बताया कि वह 2012 के बाद से ही हरिद्वार में भिक्षा मांग कर अपना और अपने 6 साल के बच्चे का पालन-पोषण कर रही हैं। उनकी बड़ी बेटी नानी के साथ रहती है और बेटा उनके साथ ही फुटपाथ पर जीवन बिता रहा है। हंसी बताती हैं कि वह शारीरिक रूप से कमजोर हो गईं तो कहीं नौकरी करने के लायक नहीं रहीं। इसलिए उन्होंने भिक्षावृत्ति का निर्णय लिया। हंसी ने अपने सभी शैक्षिक प्रमाणपत्र साथ रखे हुए हैं। फर्राटेदार इंग्लिश बोलने वाली हंसी को जब भी समय मिलता है तो अपने बेटे को फुटपाथ पर ही बैठकर अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत और तमाम भाषाएं सिखाती हैं। हंसी ने बताया कि उन्होंने अपने बच्चे का दाखिला स्कूल में करवाया है और वह अपने बेटे को अच्छी शिक्षा देकर प्रशासनिक अधिकारी बनाना चाहती है। हंसी उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में सोमेश्वर सीट से विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुकी हैं।