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प्रभु का दिया ये जीवन उसकी अमानत है और उसके बनाये बन्दों की सेवा करना इंसान का धर्म है, किन्तु अपनी भौतिक पिपासा में हम में से बहुत लोग इस बात को भूल जाते है किन्तु कुछ लोग इस जीवन का भरपूर आनद उठाते है वे खुद कष्ट सहकर भी दूसरों के कष्टों को दूर करने में लगे रहते है ऐसी ही एक समाजसेविका उत्तराखंड के श्रीनगर में अनेक समस्याओं के बावजूद भी गरीब बच्चों को शिक्षित करने पे लगी है।

यहाँ में बात कर रहा हूँ श्रीमती संगीता कोठियाल फरासी की, जो उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल में रहती हैं और पेशे से शिक्षिका है। पहाड़ की महिला का जीवन काफी विकट होता है उस विकटता में भी इनके अंदर सेवा भाव कूट कूट कर भरा हुआ है। अपनी प्रारंभिक शिक्षा के दौरान ही इन्होने मन बना लिया था की गरीब बच्चों के लिए उन्हें कुछ करना है। जब वे शिक्षिका बनी और श्रीनगर गढ़वाल में उन्होंने देखा कि वहां छोटे-छोटे बच्चे कूड़ा बीन रहे हैं, तो कुछ कटोरा लेकर सड़कों पर भीख मांगते फिर रहे हैं. शिक्षिका संगीता फरासी का कहना है कि उन्हें शहर में भीख मांगते बच्चों को देखना बेहद तकलीफदेह लगता था। जब भी वह ऐसे बच्चों को भीख मांगते हुये देखती तो मन ही मन बेहद दुखी होती। संगीता नें इन बच्चो से भीख मांगने की आदत छुडाकर इन्हें मुख्यधारा में शामिल करने का संकल्प लेते हुए मलिन बस्ती में जाकर इन बच्चों के माता पिता से मुलाकात की। और इन बच्चो के माता पिता से इन्हें भीख की जगह स्कूल भेजने की बात की। लेकिन वे नहीं माने। जब शिक्षिका संगीता नें बच्चों को निःशुल्क शिक्षा, कापी किताब, स्कूल यूनिफार्म आदि देने का वायदा किया तो उनके घरवालो नें हामी भर दी।

इस तरह संगीता नें कुल 15 बच्चों को सड़कों पर भीख मांगना छुडवाकर उनका स्कूल में दाखिला करवाया और उनके ट्यूशन की व्यवस्था कराई। जिसका खर्च वह खुद वहन करती है। वह सरकारी नौकरी के बाद वो खुद इन बच्चों को दो घटें समय देती है साथ ही इनको हुनरमन्द बनाने के लिए वह एक कर्मचारी को मासिक वेतन देकर इन बच्चों को हुनरमन्द बना रही है।

आज इनके पास ऐसे कई बच्चे है जिन्हे पढ़ाकर वो उनके जीवन में ज्ञान का भंडार भर रही हैं, वो भी बिना किसी सरकारी सहायता के। संगीता कोठियाल पौड़ी में शिक्षिका है और श्रीनगर से ही आना जाना करती है। स्कूल से आने के पश्चात् ही वो इन बच्चों को पढ़ाती है व् हर प्रकार की सहायता देती है जैसे उन्हें पेन पेन्सिल कॉपी किताब इत्यादि का खर्चा भी स्वयं ही उठाती हैं। उनसे बात करने पर वो कहती है कि यदि हम इन बच्चों की सहायता नहीं करेंगे तो इनका जीवन अंधकारमय हो जायेगा और मेरे थोड़े से प्रयास से यदि इन बच्चों को जीवन में कामयाबी मिल जाए तो मेरा जीवन सार्थक हो जायेगा।

आज के दौर में जब व्यक्ति को किसी के विषय में सोचने तक का समय नहीं है ऐसे में संगीता कोठियाल फरासी जी ने अपना जीवन समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया है। इन्होने इस वर्ष से बच्चों को अपनी गढ़वाली कुमाऊनी भाषा भी इन बच्चों को सीखने का निर्णय लिया है। बच्चों के अलावा वह महिला सशक्तिकरण के लिए भी अनेकों कार्य कर रही है। इनकी भावना व् समर्पण को पूरा उत्तराखंड सलाम  करता है।

देवभूमिसंवाद।कॉम के लिए द्वारिका चमोली की रिपोर्ट

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