वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए दुनियाभर में किये गए लॉकडाउन के चलते लाखों लोगों की नौकरियां चली गई हैं। जिसका सबसे बुरा असर उन लोगों पर पड़ा है जो रोजगार के लिए अपने वतन को छोड़कर विदेशों में गए हैं। लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार होटल व्यवसाय पर पड़ी है। उत्तराखंड से नौकरी के लिए विदेशों में गए ज्यादातर युवा होटल व्यवसाय से ही जुड़े हैं। जिनमे में अधिकतर की नौकरी जा चुकी है। ऐसे में अपने मुल्क से दूर सात समुंदर पार रह रहे इन लोगों पर दो वक्त की रोटी का संकट पैदा हो गया है। बीते चार महीने से बिना नौकरी के परेशान उत्तराखंडी प्रवासी लगातार उत्तराखंड सरकार एवं केंद्र सरकार से वतन वापसी की गुहार लगा रहे हैं। हालाँकि इन लोगों की मदद के लिए “उत्तराखंड एसोसिएशन ऑफ़ यूएई” नामक सामाजिक संस्था आगे आई है, संस्था के सदस्य दीपक ध्यानी ने बताया कि संस्था द्वारा सबसे पहले सभी पीड़ित उत्तराखंडी भाईयों को व्हाटसऐप ग्रुप के माध्यम से संपर्क कर एकत्रित किया गया। साथ ही जिनके पास खाने के लिए भी पैसे नहीं बचे हुए थे उनको भोजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई। उसके बाद भारतीय दूतावास तथा विदेश मंत्रालय से बात कर उनकी वतन वापसी के लिए दुबई एयरलाइन्स की फ्लाइट तक की व्यवस्था की गई, परन्तु सिविल एविएशन मंत्रालय की अनुमति नहीं मिलने के कारण हम इन लोगों को फ़्लाइट से भारत नहीं भेज पा रहे हैं।
उत्तराखंड एसोसिएशन ऑफ़ यूएई के सदस्य दीपक ध्यानी ने बताया कि करीब 500 से ज्यादा होटल में काम करने वाले उत्तराखंडी बिना नौकरी के भूखे प्यासे दुबई में फंसे है। ऐसोसिएशन उनको प्राइवेट चार्टर्ड से निकाल कर उत्तराखंड लाने की कोशिश कर रही है। खर्च भी होटेलियरस, हम सब मिलकर उठा रहैं है। भारतीय दूतावास और विदेश मंत्रालय इस पर मोहर लगा चुका है क्योंकि उन्होनें यंहा की हालात देखी है।
उन्होंने बताया कि हमारे सदस्य दीपक ध्यानी, शैलेन्द्र नेगी, हेमु नयाल, गौतम चौधरी, अरविंद पंत, मनवीर गुसाईं आदि ने रात दिन लगकर इन सभी लोगों की वतन वापसी के लिए डाटा और फ़ाइल बनाकर हर एक प्रोसेस को फ़ोलो किया गया। परन्तु अंत मे सिविल एविएशन मंत्रालय न जाने क्यों इनकी फाइल को रोक के बैठा है।
शायद सिविल एविएशन मंत्रालय लगता है कि हमने इसके लिए यूएई की फ्लाइट दुबई एयरलाइन्स को क्यों चुना, या फिर ये गरीब उत्तराखंडी भारत देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। अगर सिविल एविएशन मंत्रालय, दुबई के कैरियरस को अप्रूवल नही देना चाहता तो नियम निकाल दे, हम अप्लाई ही नही करेंगे। दुबई एयरलाइन्स इन गरीब होटेलियरस को बाकी अन्य एयरलाइन्स के मुकाबले सस्ती पड रही है। आज 10 दिन तक मामला लटकाकर आप उन बेचारे गरीब भारतीय का मजाक उड़ा रहे हैं जो अपने देश से बाहर काम की तलाश में यहाँ आये थे। शायद उस देश की सरकार का एक मंत्रालय मानवीय आधार पर फैसले नहीं लेता। 7 जुलाई की फ्लाइट थी और कई लड़के जो दुबई से कई सौ किलोमीटर दूर रह रहे थे, कल रात ही एयरपोर्ट आ गए थे। पर गरीब की किस्मत भी गरीब होती है। सुबह तक भी मिनिस्टरी ने फाइल को रोककर रखा, पता नहीं क्यों।
अब उन लोगों के पास ना तो नौकरी है, और ना रहने का स्थान, ना खाना और ना पैसे पर सिविल एविएशन मंत्रालय का दिल नहीं पसीजता। जैसे तैसे हमने एक-दो दिन के लिये इन लडकों की रहने की, खाने की व्यव्स्था की है। पर आखिर कब तक?
हमारी यही मांग है की जल्द से जल्द सिविल एविएशन मंत्रालय हमें अनुमति दें और हम फ़्लाइट को यंहा से भारत भेंजें। व्यवसायिक चार्टर्ड सारे चल रहें है पर मानवता वाले मिशन से ना जाने सिविल एविएशन मंत्रालय को क्या दिक्कत है। वन्दे भारत मिशन कि फ़्लाइट्स महीने में एक बार है, और भारतीयों की संख्या यूएई में लाखों में है। वन्दे भारत की एक फ़्लाइट में 150 से 200 तक ही लोग जा सकते हैं। अब अगर ऐसे में हम कुछ कोशिश करे हैं तो हमें सिविल एविएशन मंत्रालय का सहयोग नहीं मिल रहा है। उन्होंने भारत सरकार तथा उत्तराखंड सरकार से मांग की है कि जल्द से जल्द सिविल एविएशन मंत्रालय से हमें अनुमति दिलायें ताकि हम दुबई में फंसे इन 500 से ज्यादा प्रवासियों को भारत भेंज सकें।